ये 'आकर्षक' चुड़ैलें हमेशा 'भोले-भाले' पुरुषों को क्यों बर्बाद करती हैं?

चुड़ैलें: फिल्मों से लेकर जीवन तक.

कहते हैं चुड़ैल की आंखें पूरी सफ़ेद होती हैं. उसमें पुतलियां नहीं होतीं. जीभ काली होती है. पांव उलटे होते हैं. नाखून बड़े होते हैं. पर किसी भी सुंदर लड़की के भेस में वो आपको रिझाने, अपने वश में करने आ सकती है.

कहते हैं सुंदर और तीखे नैन-नक्श वाली लड़की से बचकर रहना चाहिए. वो तेज़ होती हैं. सीधे पुरुषों को अपने वश में कर लेती हैं.

चुड़ैलें हमारे समाज में आम हैं. आम इसलिए नहीं कि हमें उनके होने पर भरोसा है. इसलिए नहीं कि वो हमारे पेड़ों पर रहती हैं. बल्कि इसलिए क्योंकि हम बुनियादी तौर पर एक स्त्री-विरोधी समाज हैं. एक समाज के तौर पर हमें यकीन है कि एक औरत की बुरी नज़र सबको बर्बाद करने का दम रखती है. वो घर तोड़ सकती है. पत्नी बनकर बेटे को परिवार से अलग कर सकती है. रूप का जादू चलाकर प्रेमिका बनेगी और लड़के की सारी दौलत लूट लेगी.

हमारी फ़िल्में और टीवी

भूत की पॉलिटिक्स देखिए. अच्छे भूत हुए 'भूत अंकल', 'भूतनाथ', 'चमत्कार' का 'मार्को'. और चुड़ैलें हुईं राज़ वाली, 1920, रागिनी MMS, भूल-भुलैया, स्त्री, वगैरह. या फिर टीवी की ओर बढ़ें तो 'नज़र', 'अनामिका' या 'क़यामत की रात' की डायनें. डायन/चुड़ैल परिभाषा से ही बुरी होती है. अगर वो 'फिल्लौरी' जैसी होती है, तो उसे चुड़ैल नहीं कहते. चुड़ैलों के बारे में जितनी भी फ़िल्में देख लीजिए, कुछ समानताएं हमेशा मिलेंगी:

1. वो बेहद 'सुंदर' होती है. इतनी, कि पुरुष उसके आकर्षण में बेबस महसूस करते हैं. खुद को रोकने की कोशिश करते हैं पर रोक नहीं पाते.

raaz-movie-ghost-750x400_041719090630.jpg'राज़' फिल्म में चुड़ैल के रोल में मालिनी शर्मा.

2. उसे प्रेम में धोखा हुआ होता है. चूंकि पुरुष से धोखा मिलता है, वो पुरुष से ही बदला लेने वापस आती है. जो प्रेम उसे नहीं मिला, उसकी भूखी होती है. भले ही चुड़ैल का होना अंत में जस्टिफाई हो जाए और उसके मानवीय पास्ट से हमें सहानुभूति हो, पर उसका मकसद किसी को बर्बाद करना ही होता है.

3. बदला लेने के लिए वो अक्सर शारीरक संबंधों का इस्तेमाल करती है.

फिल्म का प्लॉट कैसा भी हो, ये तीन बातें कहीं भी फिट हो सकती हैं. फिल्म में सेंसेशन डालने के लिए सेक्स सीन बहुत काम आते हैं. चाहे वो 'राज़' के दोनों भाग हों या 'रागिनी MMS' के दोनों. फ़िल्में इरॉटिक हॉरर के नाम से बिकती हैं.

टीवी पर एक सीरियल है 'नज़र' नाम का. सीरियल का कॉन्सेप्ट ये है कि डायन की शक्तियां उसकी चोटी में हैं. डायन की उम्र 250 साल है. एक मासूम से आदमी को अपनी खूबसूरती से रिझाकर उसके घर में घुसती है और उसका परिवार बर्बाद करने लगती है. डायन को अपनी उम्र दूसरों की उम्र खींचकर मिलती है. एक बार डायन की बुरी नज़र लग गई तो परिवार कई साल तक कष्टों को झेलता रहता है.

nazar-750x400_041719090824.jpg'नज़र' में डायन के किरदार में एक्ट्रेस मोना लीसा. कहते हैं चुड़ैल की जान उसकी चोटी में बसती है.

एक लंबे समय से बाल, स्त्रीत्व का परिचय देते आए हैं. बालों का बंधा होना, बंधे हुए स्त्रीत्व का बिंब हैं. खुले बाल एक यौन रूप से उन्मुक्त, या यूं कहें, यौन संबंध के लिए तैयार स्त्री का परिचय देते हैं. इसको हमने अक्सर देखा है. जैसे दुशासन ने चीरहरण के पहले द्रौपदी को बालों से घसीटा था क्योंकि ये द्रौपदी की यौनिकता पर भी हमला था. या फिर फिल्मों में दिखने वाले कई सुहागरात के दृश्यों में पुरुष को स्त्री के बाल खोलते दिखाया जाता है.

डायन के बाल हमेशा लंबे होते हैं. उनकी जान उनकी चोटी में होने को इस तरह भी देखा जा सकता है कि उनकी जान ही उसकी यौनिकता में है. चुड़ैल कभी वैसे फ्रॉड नहीं करती जैसे भूत करते हैं. उसका तो अस्तित्व ही उस बात से है कि वो लैंगिक तौर पर औरत है.

चूंकि वो पुरुष को सुंदर लगती है, पुरुष उसको पाना चाहता है और उसके साथ सेक्स के लिए तैयार हो जाता है. असल में चुड़ैल को पुरुष से प्रेम नहीं होता.

जो औरतें पुरुषों से प्रेम नहीं करतीं

पुरुषवादी फैमिली सेटअप में औरतों के लिए प्रेम का मतलब प्रेम नहीं, वफ़ादार और आज्ञाकारी होना है. पति के प्रति प्रेम भाव मात्र सेवा-भाव से ज़ाहिर होता है. वहीं पुरुष के लिए प्रेम की परिभाषा औरत की रक्षा करना, उससे हुए बच्चों को पालना है. जो पुरुष ऐसा नहीं कर पाता उसे 'स्त्री की तरह बिना किसी काम का' पुकारा जाता है. और स्त्री अपना रोल नहीं निभा पाती तो उसे चुड़ैल या डायन कहा जाता है.

विच-हंटिंग यानी चुड़ैल बताकर मार डालना, दुनिया की सबसे पुरानी परंपराओं में से एक है. कबीलाई सभ्यता में, जहां न्याय गांव के ही किसी पुरुष मुखिया के पास होता था, विच हंटिंग आम थी. औरतों से डरना, उसके पीरियड, लंबे बाल या बच्चा पैदा कर सकने की ताकत से डरना कितना आम था--ये लोरेन्ज एस लेश्निक नाम के एक स्कॉलर के एक निबंध से पता चलता है. निबंध इंडिया के आदिवासियों में लाशों को दफ़नाने की परम्पराओं पर 1967 में लिखा गया था.

'छोटा नागपुर की उरांव परंपरा में चुड़ैल सबसे ज्यादा घातक होती है. इसलिए ये ध्यान रखना जरूरी है कि कोई भी मृत औरत चुड़ैल बनकर वापस न आए. जो औरत गर्भावस्था में या बच्चा जनते हुए मरती है, वो सबसे बुरी चुड़ैल बनती है. इनके शव को इस तरह दफनाते हैं: उसकी आंखों को बंद कर कांटो से सिल देते हैं. हाथ-पांव की हड्डियां तोड़ देते हैं. लाश को मुंह और पेट के बल जमीन में रखते हैं. हथेलियों और तलवों में कांटे चुभो देते हैं. और दफ़नाने के बाद ओझा कब्र से गांव तक सरसों के दाने डालता हुआ आता है. ऐसा माना जाता है कि चुड़ैल गांव तक तभी पहुंच सकती है, जब वो सरसों के सभी दाने चुन ले. जो कि एक असंभव काम है.'

इसी से मिलती जुलती परंपराएं गोंड और भूमिया समुदायों में भी थीं.

cersei-walk-of-shame-750x400_041719090949.jpg'गेम ऑफ़ थ्रोंन्स' में सरसी लैनिस्टर की 'वॉक ऑफ़ शेम'. सरसी को अपने भाई के साथ शारीरिक संबंध रखने के लिए वेस्टेरोस के 'हाई सेप्टन' में कैद रखा गया था. 'सेप्ट' आधुनिक 'धर्म' का ही एक रूप है. जिस औरत की हरकतें अनैतिक हों उसके खिलाफ हिंसा करना नैतिक हो जाता है. इस सीन में सरसी को नग्न कर महल तक ले जाते हैं. लोग उसपर थूकते हैं, गोबर फेंकते हैं. ये सब इसके बावजूद है, कि वो राजा की मां है. 

औरतों का डर केवल उनके मृत होने तक सीमित नहीं था. न अब है. कई गांवों, खासकर बिहार और मध्य प्रदेश के कई समुदायों में मान्यता है कि किसी के घर कोई कष्ट-बाधा हुई है तो उसे किसी औरत की बुरी नज़र ने ही किया होगा. कुछ वाकयों पर गौर कीजिए:

साल 2018: भोजपुर में एक औरत को उसके घर से दरवाजा तोड़कर निकाला गया, घसीटते हुए बाहर लाए और नग्न कर उसे पीटा. उसके बाद परेड करवाई. सही समय पर पुलिस आ गई वरना महिला की जान चली जाती. गांव में रेलवे ट्रैक पर एक आदमी का शव मिला था. गांव वालों को यकीन था कि औरत ने ही उस आदमी की जान ली है. महिला को इतना पीटा गया था कि बार-बार बेहोश हो रही थी. (दैनिक जागरण)

साल 2014: भुवनेश्वर में 60 साल की महिला को नग्न कर पीटा गया, फिर उसे बिजली के खंभे से बांध दिया गया. गांव में 18 साल का एक लड़का मर गया था. लोगों का कहना था कि महिला चुड़ैल है और उसी ने काला जादू किया है. जांच में पता चला कि लड़का मलेरिया से मरा था. (रॉयटर्स)

साल 2012: गुजरात के दाहोद में दो बहनों को डाकन (गुजराती में डायन) बताकर पाइप से बांधकर पीटा गया. विवाद ऐसे शुरू हुआ था कि कुछ पुरुष रिश्तेदार आपसी रंजिश के चलते उनके मकई के खेतों में मलत्याग कर जाते थे. सुशीलाबेन और मधुबेन ने इससे परेशान होकर उनके खिलाफ आवाज उठाई. तो उनका पौरुष बड़ा हर्ट हुआ. उन्होंने आकर पहले इन औरतों को पीटा और लगभग 10 दिन घर नहीं आने दिया. फिर यूं हुआ कि परिवार के दो लड़के बीमार पड़ गए. एक की किडनी फेल हो गई, दूसरे को कैंसर हो गया. पुरुषों ने ये मान लिया कि जो हुआ, इन्हीं औरतों के काले जादू की वजह से हुआ.

with-hunting-750x400_041719091456.jpgसुशीलाबेन और मधुबेन, घटना के 5 साल बाद. तस्वीर: पुलित्जर सेंटर

साल 2010: ओडिशा के ही सुंदरगढ़ में एक महिला को कथित तौर पर घर से निकालकर पीटा गया. नग्न कर पेड़ से बांध दिया गया. आरोप ये था कि वो काला जादू करती हैं. (न्यू इंडियन एक्सप्रेस)

साल 1996: देवघर में 40 साल की चंपा के 6 बच्चे थे. पड़ोस की बच्ची से उसकी बच्ची की दोस्ती हुई. पड़ोसी की बच्ची एक दिन घर से भाग गई. सबने कहा, चंपा और उसकी बेटी का किया-कराया है. पड़ोसी के परिवार में फिर कोई बीमार पड़ गया. ओझा ने आकर बताया कि उसे काला जादू करने वाले का चेहरा बीमार के चेहरे में दिखता है. ओझा ने देखते ही चंपा को दोषी बता दिया. गांव वालों ने चंपा को नग्न कर पीटा. हाथ-पांव बांधकर गोबर खिलाया. जिससे उसकी शुद्धि हो सके. नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक़ 21वीं सदी में अबतक, यानी साल 2000 से लेकर अबतक इंडिया में 2500 से ज्यादा विचहंटिंग के केस रिपोर्ट हो चुके हैं. ये वो केस हैं जो रिपोर्ट हुए हैं.

अपने निबंध 'सैंक्शन्ड वायलेंस: डेवेलपमेंट एंड पर्सिक्यूशन ऑफ़ वीमेन इन साउथ बिहार' (1998) में पूजा रॉय लिखती हैं:

'जब भी औरतों ने पुरुषों के खिलाफ कुछ किया है- जैसे उनसे सेक्स के लिए मना करना, विधवा होते हुए प्रॉपर्टी रखना या अपना हक़ मांगना. ऐसे में उनके साथ विचहंटिंग हुई है. विचहंटिंग का मकसद ही यही है कि औरतें अपनी जगह याद रखें. रिसर्च में हमें पता चला है कि जहां से विचहंटिंग के सबसे ज्यादा केस सामने आते हैं, वो वैसे इलाके हैं जहां औरतों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. गांव के किसी भी बड़े फैलसे को लेने से पहले औरतों से कोई पूछता नहीं. और इसी वजह से इन गांवों में सभी फैसले महिलाओं के खिलाफ होते हैं. चाहे वो हिंसा का मामला हो या मजदूरी पर दिहाड़ी मिलने का.'

ragini-mms-2-750x400_041719092153.jpgहॉरर और इरॉटिक का मेल क्या होता है और यौनिकता किसी चुड़ैल का सबसे जरूरी हिस्सा है, इस बात को भुनाती है रागिनी एमएमएस.

बिहार (1999), झारखंड (2001), छत्तीसगढ़ (2005) और राजस्थान (2006) में विचहंटिंग के खिलाफ पक्के कानून हैं. बाकी राज्यों में पक्के कानून नहीं हैं. पर IPC की कई धाराओं के अंतर्गत महिलाएं शिकायत कर सकती हैं जिसमें हिंसा, यौन हिंसा और रेप शामिल हैं. मगर औरतों के खिलाफ होने वाली हिंसा के दूसरे रूपों की तरह विचहंटिंग की भी बुनियाद सालोंसाल से पैठी स्त्रीविरोधी मानसिकता में है.

क्या गरीब और अनपढ़ लोगों में ही होती हैं 'डायनें'?

साल 2016 में हृतिक रोशन और कंगना रनौत के बीच हुई लड़ाई हम भूले नहीं हैं. ये भी नहीं भूले हैं कि उस वक़्त हृतिक के बचाव में कंगना के एक्स बॉयफ्रेंड अध्ययन सुमन कूद पड़े थे. उन्होंने डीएनए अखबार से बातचीत करते हुए बताया था कि कंगना उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करती थीं. फिर वो एक कदम आगे गए और अपनी बात को पुख्ता करने के लिए उन्होंने कहा:

'कंगना मुझे ज्योतिषी के पास ले जाती थी. वो ज्योतिषी हमेशा कंगना से पॉजिटिव बातें बताती और मुझसे नेगेटिव. फिर एक दिन कंगना ने मुझे अपने अपार्टमेंट में रात 11.30 बजे बुलाया. उसने पूजा की तैयारी की थी. गेस्ट रूम पूरा काला था, काले पर्दों में ढंका. अंदर आग जल रही थी. अजीब मूर्तियां और डरावनी चीजें रखी थीं. उसने मुझसे कुछ मंत्र पढ़ने को कहा. मैंने झूठ ही कहा कि मैंने मंत्र पढ़ लिए हैं. और वहां से भाग गया.

फिर मैं अपनी टैरो रीडर के पास गया. उसने मेरे कार्ड्स देखकर बताया कि मेरे ऊपर किसी पहाड़ी लड़की का साया है. जो मुझपर काला जादू कर रही है. मुझे कंगना की याद आई. इसके पहले मैंने राज़-3 की थी जो खूब चली थी. मगर उसके बाद सभी फ़िल्में फ्लॉप होने लगीं.'

अध्ययन सुमन, शेखर सुमन जैसे सक्सेसफुल व्यक्ति के बेटे हैं. उन्होंने लंदन में पढ़ाई की है. फिर भी उन्हें लगता है कि उनके करियर के फ्लॉप होने का दोष उनका नहीं, उनकी एक्स-गर्लफ्रेंड का है.

kangana-adhyayan-750x400_041719091652.jpgकंगना और अध्ययन सुमन. कंगना, हृतिक के साथ बड़ी लड़ाई में थीं जब अध्ययन सुमन ने उनपर काला जादू करने का आरोप लगाया.

विच हंटिंग को अगर थियरी में देखा जाए तो जरूरी नहीं कि हर बार महिला को नग्न कर घुमाया जाए. अक्सर औरतों को मुंहफट होने, खुले बाल रखने या जोर से हंसने के लिए डायन या राक्षसी की उपमाएं दी जाती हैं. सोशल मीडिया पर ये बेहद आम है.

इसका नमूना साल 2018 में दिखा सब राज्य सभा में रेणुका चौधरी वेंकैया नायडू की ये बात सुनकर हंसीं कि आधार कार्ड अटल सरकार के समय शुरू हुए थे. इसके जवाब में वेंकैया नायडू ने कहा कि रेणुका को संसद में पेश आने की तमीज नहीं है. और उन्हें दिमाग का इलाज करवाना चाहिए. तभी मोदी ने टोकते हुए कहा, 'रहने दीजिए, रामायण के दिनों के बाद अब ऐसी हंसी सुनने को मिली है.' मोदी का इशारा शूर्पणखा की ओर था. बीजेपी के आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने इस वाकये के बाद ट्विटर पर शूर्पणखा का वीडियो भी लगाया. ताकि किसी को कोई भ्रम न रह जाए.

shurpanaka-750x400_041719091902.jpgरामानंद सागर की 'रामायण' में शूर्पणखा

पॉपुलर कल्चर में शूर्पणखा का चित्रण एक ऐसी औरत के तौर पर है जो अपनी यौनिकता को लेकर खुली हुई है. इसलिए शादीशुदा राम के पास जाकर अपने मन की बात कहने में उसे कोई हिचक न हुई. वाल्मीकि रामायण में शूर्पणखा को बड़े पेट वाली, भैंगी, पतले भूरे बाल वाली और कर्कश आवाज़ वाली बताया है.

हमें सीता चाहिए

अच्छे चरित्र की औरतों से ये अपेक्षित नहीं होता कि वो अपनी यौनिकता ज़ाहिर करें. इसलिए सीता के अपोजिट शूर्पणखा जैसा चरित्र गढ़ा जाता है. 'गेम ऑफ़ थ्रोंस' में मेलिसांद्रे (रेड वुमन) स्टैनिस बराथियन (सिंहासन का दावेदार) को अपने वश में कर लेती है. वो काला जादू करती थी. स्टैनिस के को अपने मोह में बांधकर वो उसके बच्चे से प्रेगनेंट हो गई थी. और एक ऐसी छाया को जन्म दिया था जो रेनली (स्टैनिस का भाई, सिंहासन का दूसरा दावेदार) को नष्ट कर देती है. मेलिसांद्रे असल में 400 साल बूढ़ी है और दिखने में शूर्पणखा के करीब है.

melisandre-750x400_041719091946.jpgगेम ऑफ़ थ्रोन्स में मेलिसांद्रे का किरदार अपने असल रूप में

चीखती, अट्टहास करती, जोर से खिलखिलाती, खुले बालों वाली, तीखी आवाज़ वाली लड़कियों को हम बिना सोचे चुड़ैल पुकारते हैं. काली या मोटी लड़की को 'चुड़ैल सी दिखती है' कहने से नहीं चूकते. जो लड़कियां पुरुषों से नहीं दबतीं उन्हें चुड़ैल कहने से नहीं चूकते.

पुरुषवादी समाज में लड़कियों के लिए मन-मुताबिक़ जीने का एक ही तरीका है तो एक ही सही. एक दिन सभी लड़कियां चुड़ैल हो जाएंगी. आमीन.

 

 

 

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