हिजाब-डे गैरज़रूरी तो है ही, लेकिन उसके खिलाफ तस्लीमा का ट्वीट और भी ज्यादा बकवास है

उससे ज्यादा गंदगी लोगों ने रिप्लाई में दिखा दी.

लालिमा लालिमा
फरवरी 02, 2019
तस्लीमा नसरीन (लेफ्ट), हिजाब पहने पुतले (राइट). फोटो- फेसबुक/रॉयटर्स

1 फरवरी को मनाया जाता है वर्ल्ड हिजाब-डे. साल 2013 में इसे मनाने की शुरुआत हुई. नजमा खान ने शुरू किया. मकसद था, ये बताना कि जो महिलाएं हिजाब पहनती हैं, उनके लिए ये बहुत अहम है. एक लाइन में हिजाब की अहमियत बताने के लिए शुरू किया गया. इस दिन गैर-मुस्लिम महिलाओं को एक दिन के लिए हिजाब पहनकर इसका एक्सपीरियंस करने के लिए उन्हें इनवाइट किया जाता है.

खैर, हिजाब-डे मनाना कितना सही है, या कितना गलत, जरूरी है या गैर-जरूरी. ये एक अलग मुद्दा है. फिलहाल, हम इस वक्त उस ट्वीट पर बात करना चाहते हैं, जिसने हिजाब-डे को लेकर एक लंबी बहस छेड़ दी है. ट्वीट है लेखिका तस्लीमा नसरीन का. मशहूर बांग्लादेशी लेखिका हैं. लेकिन वहां से निर्वासन पर हैं. साल 1994 से ये बांग्लादेश में नहीं रह रही हैं.

31180049_1307593812718407_2030371332927103369_n_750x500_020219080816.jpgतस्लीमा नसरीन. फोटो- फेसबुक

इन्होंने एक ट्वीट किया. जिसमें इन्होंने हिजाब-डे को लेकर अपनी राय रखी. अब राय रखने का हक हर किसी को है, इसमें कुछ गलत नहीं है. लेकिन इसके चलते आप कुछ भी उल्टा-पुल्टा बोल दें, ये तो कतई सही नहीं कहा जा सकता. राय रखने के चलते आप किसी भी सेंसिटिव मैटर पर, बकवास कर दें, ये भी कतई सही नहीं है.

ऐसा ही कुछ तस्लीमा ने अपने ट्वीट में कहा और किया. उन्होंने हिजाब-डे के विरोध में लिखा, 'आज वर्ल्ड हिजाब-डे है! इसके अलावा अब और क्या देखना बचा है? वर्ल्ड बुर्का डे? वर्ल्ड एफजीएम डे? वर्ल्ड ब्रेस्ट आयरनिंग डे? वर्ल्ड स्टोन विमन टु डेथ डे? वर्ल्ड डोमेस्टिक वायलेंस डे? वर्ल्ड गैंगरेप डे?'

tasleema_750x500_020219080839.jpgतस्लीमा नसरीन का ट्वीट.

इस ट्वीट में तस्लीमा ने हिजाब-डे का विरोध करने के चक्कर में कई सेंसिटिव मामलों की खटिया खड़ी कर दी. एक-एक कर बताते हैं.

एफजीएम- फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन, यानी महिलाओं का खतना. इस प्रोसेस में महिलाओं के जननांग के बाहरी भाग का कुछ हिस्सा या पूरा हिस्सा हटा दिया जाता है. अफ्रीका, एशिया, मध्य पूर्व इराकी कुर्दिस्तान, यमन जैसी जगहों में ये अभी भी होता है. लोग इसे प्रथा मानते हैं. इसके चक्कर में आए दिन कितनी ही लड़कियों की मौत हो जाती है. कितना भयानक होता है ये, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. तस्लीमा नसरीन ने बड़ी ही आसानी से पूछ लिया कि अब क्या वर्ल्ड एफजीएम डे मनाया जाएगा? भले ही तस्लीमा हिजाब-डे का विरोध कर रही थीं, लेकिन वो ये भूल रही थीं कि हिजाब से कोई औरत मरती नहीं है. एफजीएम से मर जाती हैं.

एक बात नोट कर लें- 6 फरवरी का दिन एफजीएम से रिलेटेड है. लेकिन ये दिन है- इंटरनेशनल डे ऑफ ज़ीरो टॉलरेंस फॉर फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन. यानी एफजीएम के विरोध का दिन.

गैंगरेप- वो घटना, वो अपराध, जो अगर किसी लड़की के साथ होता है, तो वो हर रोज़ मरती है. हर रोज़ घुटती है. तस्लीमा ने बड़ी आसानी से इसे हिजाब से कम्पेयर कर दिया.

वर्ल्ड ब्रेस्ट आयरनिंग- वो प्रथा, जिसमें स्तनों को गर्म पत्थर से दबाया जाता है. मसाज की जाती है, ताकि उनके उभार का पता न चले. जरा सोचिए, जिस लड़की के साथ ऐसा होता है, उसे कितना टॉर्चर सहन करना पड़ता होगा. ब्रेस्ट आयरनिंग की वजह से इन्फेक्शन, ब्रेस्ट कैंसर तक हो जाता है. ये प्रथा हिजाब से तो ज्यादा ही खतरनाक है.

औरतों के साथ बहुत कुछ हिंसक होता है. हिजाब पहनने से कहीं-कहीं-कहीं ज्यादा कष्ट इन सारी बकवास प्रथाओं और अपराधों की वजह से होता है. कृपया करके तस्लीमा जी, एक हिजाब-डे का विरोध करने के चक्कर में, इन संवेदनशील मामलों का मजाक न बनाएं. आप हिजाब को गैंगरेप, खतना और ब्रेस्ट आयरनिंग से कैसे कम्पेयर कर सकती हैं?

अब बात करते हैं, हिजाब-डे की. इसे मनाना कोई जरूरी नहीं है. ऐसा नहीं है, कि इसे मनाने से महिलाओं का सशक्तिकरण हो रहा है. जो भी हो, हिजाब पहनना, न पहनना धर्म से जुड़ा हुआ है. आप इसे सशक्तिकरण से जोड़कर कतई नहीं देख सकते. ऐसा भी नहीं है, कि जो औरतें हिजाब पहनती हैं, वो सशक्त नहीं हैं. कई हिजाबी महिलाएं काफी सशक्त हैं, और गर्व के साथ इसे पहनती हैं. लेकिन फिर वही बात, आप इसका सपोर्ट नहीं कर सकते. लेकिन फेमिनिज्म ऑफ इंडिया ने ऐसा किया है. हिजाब को सपोर्ट किया है. क्यों? ऐसे मामलों में आप अगर किसी तरह की कमी नहीं कर सकते हैं, तो आप उन्हें बढ़ावा भी नहीं दे सकते.

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तीसरी जरूरी बात- उन ट्रोल्स की, जिन्होंने तस्लीमा नसरीन के ट्वीट में रिप्लाई किया है. उन्होंने भी अपनी बात ही रखी, लेकिन बहुत गंद मचाते हुए रखी. ट्रोल्स से आप संवेदनशील होने की उम्मीद तो कर ही नहीं सकते. हां, उन्हें भी अपनी बात रखने का हक है, लेकिन संवेदनशील विषयों पर उन्हें संवेदनशील होना चाहिए. जो भाषा का वो इस्तेमाल करते हैं, उस पर थोड़ा विचार कर लें, तो उनका कुछ बिगड़ नहीं जाएगा. ज़रा इन ट्रोल्स की भाषा का नमूना देख लीजिए-

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