पहली लड़की जो गांव के बाहर पढ़ने गई, और अफसर बनकर लौटी

जब शहर आईं, 'माइसेल्फ कमिंग फ्रॉम विलेज एरिया' वाला हाल था.

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
जुलाई 20, 2018
सुरभि को पढ़ना हमेशा से पसंद है. फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम

'मुझे आईएएस ऑफिसर बनना है.'

'मुझे यूपीएससी करना है.'

'मुझे सिविल सर्विसेज़ में जाना है.'

'मुझे कलेक्टर बनना है.'

ये कुछ जवाब हैं जो मैंने अपने कॉलेज के पहले दिन होने वाली क्लास में सुने थे. कॉलेज के पहले दिन की पहली क्लास. इस क्लास में सबका परिचय हो रहा था. सबको बताना था कि वो क्या करना चाहते हैं या कॉलेज से निकल कर क्या बनेंगे. हम सब अभी-अभी स्कूल से निकले थे. अधिकतर बच्चे ऑफिसर बनना चाहते थे. उम्र के साथ सपने छोटे हो गए और अब हम सब सो हैं सो हैं ही.

मगर मध्यप्रदेश की एक इंजीनियर हैं जिन्होंने इस सपने को न सिर्फ सच किया है बल्कि वो इसे जी रही हैं. इस इंजीनियर का नाम है सुरभि गौतम. सुरभि सतना जिले की रहने वाली हैं. अपने गांव से वो पहली लड़की हैं जो पढ़ने के लिए बाहर गईं. राजधानी भोपाल के एक कॉलेज से सुरभि ने इंजीनियरिंग की.

कॉलेज के पहले दिन मेरे कॉलेज की ही तरह उनकी भी इंट्रोडक्टरी क्लास हुई. अब इस क्लास में उनसे ये तो नहीं पूछा कि वो क्या बनना चाहती हैं. मगर अपने परिचय के साथ उन्हें फिसिक्स के कुछ टर्म्स समझाने थे. सुरभि ने अपने स्कूल की पूरी पढ़ाई हिन्दी माध्यम से की है. तो वो उन टर्म्स को जानती तो थीं, समझा भी सकती थीं लेकिन अंग्रेज़ी भाषा के कारण नहीं समझा पाईं. वो लोगों को देखती रहीं. अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान उन्हें अपने जीवन में बहुत ज़रूरी लगा. इस घटना के बाद सुरभि को लगा कि उन्हें सबकुछ छोड़कर वापस अपने माता-पिता के पास गांव लौट जाना चाहिए. लेकिन फिर याद आया कि अगर वो वापस चली गईं तो गांव की तमाम लड़कियों के लिए पढ़ने और बाहर निकलकर अपनी शर्तों पर जीवन जीने के दरवाज़े पर हमेशा के लिए ताला पड़ जाएगा. अपनी हिम्मत जुटाई, अंग्रेज़ी सीखी, मेहनत की और अपने कॉलेज में टॉप किया. साथ ही यूनिवर्सिटी से चांसलर स्कॉलरशिप भी हासिल की.

फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम

सिविल सर्विसेज़ का पेपर देने के लिए आपकी उम्र 21 साल होनी चाहिए लेकिन सुरभि छह महीने छोटी थीं. इस बीच उन्होंने कई पेपर दिए. गेट(GATE), इसरो(ISRO), सेल(SAIL), एमपीपीएससी(MPPSC) और छह महीने बाद उन्होंने आईईएस(IES) का पेपर भी दिया था. आईईएस के पेपर में सुरभि ने पूरे भारत में पहली रैंक हासिल की.  

ये सभी परीक्षाएं भारत के सबसे बेहतर कोर्सेस और सबसे इज़्ज़्तदार पदों के लिए होती हैं. हममें से बहुत से लोग इसमें से शायद एक भी न निकाल पाएं पर सुरभि ने इन सभी परीक्षाओं को बेहतर अंकों से पास किया है. इसके बाद भी उन्होंने किसी भी पद या कोर्स को जॉइन नहीं किया. बल्कि अपने सपने को पूरा किया, आईएएस बनने के सपने को. सुरभि यूपीएससी के लिए तैयारी कर रही थीं और साथ ही रेलवे में जॉब भी कर रही थीं.

द बेटर इंडिया को दिए साक्षात्कार में सुरभि बताती हैं- ‘अधिकतर लोग ड्रॉप लेकर यूपीएससी की तैयारी करते हैं ताकि पूरी तरह इस ही पर फोकस कर सकें लेकिन मुझे ये लक्सरी नहीं थी. मैं दिन में रेलवे के साथ काम करती थी और शाम को बचे चार-पांच घण्टों में पेपर के लिए तैयारी करती थी. मैं यूपीएससी देना चाहती थी. मैंने सभी तरह के स्टडी मटेरियल डाउनलोड किए और जितना भी, जब भी समय मिलता मैं उन्हें पढ़ती रहती थी. मैं हमेशा समय चुराने की कोशिश करती रहती थी.’ 

सुरभि को आईएएस बनना था ताकि वो अपने गांव तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचा सकें. फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम सुरभि को आईएएस बनना था ताकि वो अपने गांव तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचा सकें. फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम

सामान्यतः अगर कोई इस तरह का एक पेपर भी निकाल ले तो चैन की सांस लेगा. आराम से अपनी नौकरी करेगा और खुश रहेगा. लेकिन सुरभि के सपने अलग थे. उन्हें आईएएस ऑफिसर बनना था. और वो इसलिए ताकि वो अपने गांव में बुनियादी सुविधाएं पहुंचा सकें. स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर कर सकें, हर घर तक बिजली पहुंचा सकें. यूपीएससी की तैयारी के दौरान सुरभि कई दफ़ा परेशान हो जाती थीं. इन मुश्किल क्षणों में उनकी मां उनका हौसला बनीं. सुरभि की मां ने उन्हें कहा –

‘23 साल की उम्र में मेरे तीन बच्चे थे. जिनमें से सबसे छोटा केवल 10 महीनों का था. एक परिवार था जिसकी ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर थी. परिवार के लोगों के लिए खाना बनाना था और घर से 10 किमी दूर नौकरी करने जाना था. इस सबके बाद भी मैंने कोई शिकायत नहीं की. तुम्हारे ऊपर सामाजिक या पारिवारिक किसी तरह की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है. तुम्हें सिर्फ अपने सपनों को सच करने के लिए मेहनत करना है. अपने देखने का नज़रिया बदलो.’

सुरभि की मां की इस बात ने उनका नज़रिया सचमुच बदल दिया. उन्होंने खूब मेहनत की और यूपीएससी की परीक्षा में 50वीं रैंक हासिल की. सुरभि अभी गुजरात में डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत हैं. 

इस फोटो के कैप्शन में सुरभि लिखती हैं- 'गुजरात सीएम कॉल्स.' फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम इस फोटो के कैप्शन में सुरभि लिखती हैं- 'गुजरात सीएम कॉल्स.' फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम

सुरभि जब दसवीं कक्षा में थीं तब ही उन्होंने सोच लिया था कि वो आईएएस ऑफिसर बनेंगी. तब उन्हें नहीं पता था कि आईएएस बनते कैसे हैं. और इस पेपर को पास करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है. सुरभि बताती हैं- ‘मुझे सिर्फ़ इतना पता था कि एक कलेक्टर को लोग बहुत इज़्ज़त देते हैं. यही मैं चाहती थी.’

सुरभि बचपन से ही पढ़ने लिखने वाली विद्यार्थी थीं. वो जिन्हें हम पढ़ाकू या किताबी कीड़ा कहते हैं. सुरभि की पढ़ाई के प्रति यह ललक ही उन्हें जीवन की हर परीक्षा में काम आई. सुरभि ने बहुत से पेपर दिए और अधिकतर को पास भी किया. पांचवी कक्षा में गणित में 100 में से 100 अंक पाने वाली सुरभि को उस समय बहुत प्रशंसा मिली. इस प्रशंसा का लाभ ये हुआ कि सुरभि और अधिक पढ़ने लगीं. उन्हें लगने लगा कि अच्छे अंक पाने का मतलब है लोगों में अपनी पहचान बनाना. सुरभि का ये भ्रम बिल्कुल सही है. अब देखिए न, अच्छे अंक लाने के कारण उन्होंने यूपीएससी का एक्साम क्वालिफाई किया. और इस वजह से लोगों में उनकी पहचान बनी.

फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम

पढ़ाई के अलावा आपको क्या करना पसंद है? इस प्रश्न के जवाब में सुरभि कहती हैं-

‘अब तो मुझे थोड़ा भी खाली समय नहीं मिल पाता. जो भी मिलता है उसमें मैं अपनी पुरानी हॉबीज़ को जीने की कोशिश करती हूं. मुझे किताबें पढ़ने का शौक है. कविताएं लिखने का शौक है. कभी-कभी ब्लॉग भी लिखती हूं. लेकिन पिछले एक साल से सबकुछ छूट गया है. अब कोशिश कर रही हूं कि अपनी हॉबीज़ को फिर से समय दे सकूं.’

सुरभि बताती हैं कि उनका बचपन शहरों के बच्चों के बचपन की तरह नहीं था. गांव में बहुत अधिक करने को कुछ था नहीं. साल 2000 से 2010 के बीच तकनीक भी इतनी विकसित नहीं थी. आज तो हम कहीं भी रहकर कोई भी जानकारी मिनटों में जान सकते हैं. लेकिन तब इंटरनेट की उपलब्धता नहीं थी. सुरभि कहती हैं – ‘कला के प्रति मेरा झुकाव रहा है. मैं बचपन में वॉटर कलर पैंटिंग किया करती थीं, कविताएं लिखा करती थी.’ वो हंसते हुए बताती हैं कि जैसी भी सही, कविताएं लिखा ज़रूर करती थी.

कॉलेज के समय में भी किताबें ही उनकी साथी रही हैं. जो लोग भोपाल और वहां के इंजीनियरिंग कॉलेजेस से परिचित हैं वो जानते हैं कि वहां कितनी और कैसी पढ़ाई होती है. हर दो कदम पर एक इंजीनियरिंग कॉलेज है. खैर, इस माहौल में सुरभि ने किताबों से दोस्ती की और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया. सुरभि कहती हैं कि यही उनकी ज़रूरत भी थी. कॉलेज के दिनों में की गई मेहनत ही है जो वो आज इस जगह तक पहुंच पाई हैं.

सुरभि को पैंटिंग करना, कविताएं लिखना पसंद है. फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम सुरभि को पैंटिंग करना, कविताएं लिखना पसंद है. फोटो कर्टसी- फेसबुक/सुरभि गौतम

अपनी प्रेरणा के बारे में उनका कहना है कि प्रेरणा स्त्रोत आपके जीवन में समय के साथ बदलते रहते हैं. एक समय पर जो घटनाएं, जो लोग आपको प्रेरित करते हैं ज़रूरी नहीं कि भविष्य में भी वो लोग, वो घटनाएं आपको उस तरह प्रभावित करें. सबके जीवन में कुछ-न-कुछ ज़रूर होता है जो हमेशा उन्हें हौसला देता है. कुछ लोग जिनके पास आप जीवन के किसी भी पड़ाव पर जा सकते हैं, किसी भी हालत में जा सकते हैं. ये लोग आपको हर हालत में स्वीकार करते हैं. कभी आपके फैसलों को जज नहीं करते. ये लोग सुरभि के जीवन में उनके परिवार के सदस्य हैं. उनके माता-पिता, उनके भाई ने हमेशा उनकी हिम्मत बढ़ाई है. साथ ही किताबों ने भी उन्हें हर कदम प्रेरणा दी है.

तो यह कहानी है सुरभि गौतम की. एक लड़की जो अंग्रेज़ी भाषा के ज्ञान को अपने समग्र ज्ञान से बेहतर समझती थी. लेकिन भाषा उनके जीवन की अड़चन नहीं बनी. उन्होंने अंग्रेज़ी भाषा सीखी, सभी विषयों पर मेहनत की और अपने जीवन में वो सबकुछ हासिल किया जिसका उन्होंने सपना देखा था. एक छोटे से गांव से निकलकर आज सुरभि एक जिले की ज़िम्मेदारी सम्भाल रही हैं. आपकी ये कहानी तमाम लड़कियों और लड़कों को भी प्रेरित करेगी. हम सब सपने तो देखते हैं लेकिन उन सपनों को सच करने के लिए मेहनत करना कोई आप से सीखे.   

 

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