डिप्रेशन और मैं: काम करते करते बीच में खो जाती थी और पता भी नहीं चलता था
मेंटल हेल्थ सीरीज की आखिरी क़िस्त #MentalHealthWeek
मेरे लिए ये सब एक रिलेशनशिप के साथ शुरू हुआ. मुझे बहुत दिक्कतें आने लगी थीं. जिस लड़के के साथ मैं रिलेशनशिप में थी उसने मेरे साथ एक फ्यूचर इमेजिन कर लिया था. मैं उसके लिए तैयार नहीं थी. इस वजह से मुझे काफी बुरे तरीके से उसके साथ ब्रेकअप करना पड़ा. इमोशनल वायलेंस बहुत हुआ उस ब्रेकअप में.
इस ब्रेकअप ने मुझे तोड़ कर रख दिया. इस वजह से नहीं कि मैं उस लड़के से बहुत प्यार करती थी, बल्कि इस वजह से कि मैं एक डर में जीने लगी थी. लगता था क्या होगा अगर सामने खड़ा वो दूसरा बन्दा मेरा एक्स बॉयफ्रेंड हुआ तो? कहीं उसने मेरा पीछा किया तो? इस डर की वजह से मैंने रातों को सोना बंद कर दिया था. मुझे पता था कि वो मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. बस उसके आमने-सामने आने की हिम्मत नहीं थी मेरी. मैं उसका सामना कैसे करूंगी, यही चीज़ डरा देती थी.
मैं काम करते करते बीच में खो जाती थी. एकदम ब्लैंक. अचानक से चौंकती तो पता चलता आधे घंटे से इअरफोन लगा कर बैठी हुई हूं बस. पहले लगा ये एक फेज है. लेकिन बार-बार ऐसा होता रहा. जहां जॉब कर रही थी वहां पर भी लगने लगा कि मैं एक मिसफिट हूं. इस बीच एक और रिलेशनशिप हुई मेरी. जिस लड़के से हुई उसने एक दिन मुझसे पूछा ,
‘कितने महीने हो गए तुम्हें रोते-रोते थक कर सोते हुए?’
मैंने ध्यान नहीं दिया था. सोचा तो ध्यान आया. जवाब दिया उसको.
‘6 महीने’.
मैंने उससे पूछा , ‘क्या ये नार्मल है?’
उसने मुझसे वापस पूछा, ‘क्या तुम्हें लगता है ये नार्मल है’.
मैंने पहले कभी इस दिक्कत को मेंटल इशू की तरह लिया ही नहीं था. हमेशा डिनायल में रहती थी. पीरियड के समय पेन होता था तो लगता था मैंने कुछ बहुत बुरा किया है उसका ही हिसाब चुकता कर रही हूं. लगता था ये पेन डिजर्व करती हूँ मैं.
मेरा नेचर ही ऐसा है कि मैं खुश रहती हूँ. इस तरह की उदासी और दुःख मेरे लिए बिल्कुल नया था. मैंने डिसाइड किया कि मैं डॉक्टर के पास जाऊंगी. खुशकिस्मती मेरी ये रही कि मेरा परिवार काफी सपोर्टिव रहा. मेरे घर में मेरी दादी को डिप्रेशन रहा था. इसलिए सबको पता था इससे डील कैसे करना है. किसी ने मेरा मज़ाक नहीं बनाया. मेरे डॉक्टर ने मेरी दिक्कत सुनी. दवाइयां दीं. ऐसा नहीं कि उसके बाद मुझे इशूज नहीं हुए. बिल्कुल हुए.
जब आप अंदर से टूटते हैं, जुड़ने में समय लगता है. दरारें फिर भी रह जाती हैं. कोई आसान काम नहीं खुद पर मलहम लगाना. मुझे कई बार लगता था कि कहीं मैं अपने बॉयफ्रेंड पर बोझ तो नहीं हूं. कहीं वो मुझसे तंग तो नहीं आ गया क्योंकि मैं हर समय उससे अपना दुखड़ा रोती रहती हूं.
मेरे डॉक्टर को जब मैंने ये बात बताई, उन्होंने मुझे झिड़क दिया. कहा पागल हो क्या. जो इंसान तुम्हें छोड़ना चाहेगा वो यों भी छोड़ देगा. उसको किसी वजह की ज़रूरत नहीं होगी. अगर उसने तुम्हें नहीं छोड़ा है, तो नहीं छोड़ेगा.
लोग तो कई बार चीज़ें इसलिए भी बोल जाते हैं क्योंकि उनको पता ही नहीं होता कि आप किन चीज़ों से जूझ रहे हैं. जाने देना चाहिए. किसी को इग्नोरेंट होने की सजा थोड़े ही देंगे. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आपको बताना ज़रूरी हो जाता है कि आप किन हालात से गुज़र रहे हैं. अगर कोई चीज़ परेशान कर रही है, तो साफ़-साफ़ बता दीजिए. बेहतर रहता है.
-आशिमा, दिल्ली* * पहचान छुपाने के लिए नाम बदल दिए गए हैं
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