जिस आदमी की शंभूलाल रेगर ने फावड़े से मार हत्या की थी, उसकी पत्नी की बात सुनकर कलेजा कांप जाता है
धर्म के नाम पर निर्ममता से हत्या का वीडियो बनाने वाले शंभू को लोकसभा चुनाव का टिकट मिल रहा है.
यह चेहरा याद है? यही है राजस्थान के राजसमंद में रहनेवाला शंभुलाल रैगर. जिसने कैमरे के सामने एक बूढ़े दिहाड़ी मज़दूर को बेरहमी से मारा था. पिछले साल 6 दिसंबर को यह बंगाल के मालदा से आए मुहम्मद अफ़राज़ुल को नौकरी दिलाने के बहाने अपने साथ ले गया. फिर एक फावड़े से उसे मारने के बाद उसकी लाश जला दी. हत्या के बाद कैमरे की तरफ़ देख उसने ‘जिहादियों’ को ‘लव जिहाद ख़त्म करने की’ कड़ी चेतावनी दी, वरना ‘यह तुम्हारी हालत होगी’. उसने ‘हिंदू बहनों’ को भी सावधान किया किसी ‘जिहादी के प्रेमजाल’ में फंसने से. कैमरे पर यह सबकुछ रेकर्ड शंभुलाल के 14 साल के भतीजे ने किया.
शंभु अभी जोधपुर जेल में है लेकिन ख़बर आई है जल्द ही राजनीति में आएगा. ‘उत्तर प्रदेश नवनिर्माण सेना’ नाम की पार्टी ने उसे लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट दिलवाया है. पार्टी अध्यक्ष अमित जानी का कहना है कि आगरा से लोकसभा की सीट के लिए पार्टी का उम्मीदवार शंभु रैगर होगा. वह कहते हैं, ‘मैं बहुत दिनों से उनके संपर्क में रहा हूं. कहते हुए ख़ुशी हो रही है कि वह आगरा से हमारे उम्मीदवार बनने को मंज़ूर हैं. हमें सिर्फ़ हिंदुत्ववादी चेहरे चाहिए और इनसे बेहतर कोई नहीं.’
ऑडनारी ने मुहम्मद अफ़राज़ुल की पत्नी गुलबहार बीबी से संपर्क किया. पति के मरने के बाद से इनके घर अंधेरा छाया हुआ है. तीन बेटियों में से एक दसवीं में है, एक बेरोज़गार है, और एक की हाल ही में नौकरी लगी है जिसके सहारे घर का गुज़ारा चल रहा है. बंगाल सरकार की तरफ़ से इन्हें तीन लाख रूपये मिले हैं और दक्षिण मालदा के सांसद अबू हाशिम ख़ान से एक लाख और. मगर यह काफ़ी नहीं है. और पति की कमी को पूरी करने के लिए तो कुछ भी काफ़ी नहीं है.
शंभुलाल के शुरू होनेवाले राजनैतिक सफ़र के बारे में गुलबहार ने कहा, ‘मेरे पति की कोई ग़लती नहीं थी. वह दुखियारा था. बेक़सूर था. फिर भी उसे मारा गया. जिसने मारा, वह चुनाव में खड़ा होने जा रहा है किसी पार्टी की मदद से. क्योंकि वह कायर अपने बलबूते पर तो खड़ा हो नहीं सकता. मैं उसे फाँसी पर लटकते देखना चाहती हूं. उसके बच्चों को वैसे ही रोते देखना चाहती हूँ जैसे मेरे बच्चे रो रहे हैं. उस आदमी ने मेरी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है और उसके लिए फाँसी से कम कोई सज़ा काफ़ी नहीं है.’
सरकार से मिली मदद के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता. किसने कितने लाख रुपए दिए इससे मेरी ज़िंदगी में कोई सुधार नहीं आनेवाला है. मुझे इंसाफ़ चाहिए. जिसने मेरी ज़िंदगी बर्बाद की मुझे उसके लिए फाँसी चाहिए.’
हम एक अजीब दौर से गुज़र रहे हैं जहां कैमरे पे किसी का ख़ून करनेवाले को राजनेता बना दिया जाता है. जहां दहशतगर्द गुंडों को माला चढ़ाया जाता है. रोज़ कितने अफ़राजुल मारे जा रहे हैं, कितनी गुलबहारों की ज़िंदगी उजड़ रही है उसका हिसाब नहीं दिया जा सकता.
हम सब इसके भागीदार हैं. हम सबके हाथ अफ़राजुलों, अख़लाकों, पहलुओं के ख़ून से सने हैं. यह समाज, यह राष्ट्र कितनी भी कोशिशें कर ले, गुलबहार बीबी की क्षतिपूर्ति नहीं कर पाएगा. उनकी माफ़ी के लायक नहीं हो पाएगा.
यह स्टोरी ईशा ने लिखी है
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