रोज सुबह 3 बजे उठकर कुएं से पानी भरने जाती थीं, आज महारष्ट्र स्टेट बोर्ड की अध्यक्ष हैं
14 की उम्र में ब्याह हुआ, फिर संघर्ष और सफलता आते गए.
शकुंतला काले चौथी क्लास में थीं जब उनके पिता गुज़रे. घर की माली हालत बहुत ख़राब थी. कोई कमाने वाला नहीं था. मजबूरी में उनकी मां को खेतों में मज़दूरी का काम शुरू करना पड़ा. इतनी मुसीबतों के बाद भी शकुंतला ने पढ़ाई नहीं छोड़ी. जैसे-तैसे कर दसवीं का एग्जाम दिया. उस समय वो 14 साल की थीं. पर उससे आगे पढ़ने के लिए शकुंतला के पास पैसे नहीं थे. ऊपर से पुणे के जिस छोटे से गांव में वो रहती थीं, वहां कोई जूनियर कॉलेज भी नहीं था. मां के पास कोई और चारा नहीं बचा था. 14 साल की छोटी सी उम्र में उनकी शादी करवा दी गई.
आप सोच रहे होंगे कि बाल विवाह की शिकार इस छोटी सी लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद हो गई होगी. जल्दी बच्चे पैदा हो गए होंगे. ग़लत. वो दो बच्चो की मां ज़रूर बनीं पर उनके सुसरालवालों ने उनके सपनों को मरने नहीं दिया. हां आस-पास के लोगों ने बहुत मुंह बनाया. जिस जगह वो रहती थीं, वहां लड़कियों को आगे पढ़ाने का कोई चलन नहीं था. पर उनके पति और ससुर ने उनका साथ दिया.
सबसे पहले तो शकुंतला ने सावित्रीबाई फूले पुणे यूनिवर्सिटी से 'एजुकेशन' की पढ़ाई की. डिप्लोमा लिया. फिर मराठी में BA और MA किया. पढ़ाई ख़त्म करने के बाद, शकुंतला ने उसी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया, जहां से वो ख़ुद पढ़ी थीं. पर शकुंतला कुछ बड़ा करना चाहती थीं.
उस वक़्त उन्होंने महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन एग्जाम देने की ठानी. पर एग्जाम की तैयारी करना और भी मुश्किल था. शकुंतला के पास किताबें ही नहीं थी. न ही एग्जाम की तैयारी करने के लिए कोई कोचिंग या पहले के एग्जाम पेपर्स थे. यहां तक उनके पास टीवी तक नहीं था.
देश-दुनिया में क्या हो रहा हैं, ये सब जानने के लिए उनके पास बस एक ही ज़रीया था. रेडियो. इस से ही उन्होंने अपनी जनरल नॉलेज मज़बूत की. वो रोज़ सुबह तीन बजे उठतीं. पानी भरने के लिए कुएं तक जातीं. स्कूल जाने से पहले घर का सारा काम ख़त्म करतीं. बचा-खुचा काम वापस आने के बाद करतीं. और इन सब चीज़ों के बीच में से समय निकाल कर एग्जाम के लिए पढ़तीं.
आख़िरकार 1993 में शकुंतला ने MPSC क्लास II एग्जाम पास किया. उसे करने के बाद उन्हें सोलापुर के एजुकेशन डिपार्टमेंट में एक पद मिला. हलाकि इसके बाद भी शकुंतला ने आगे बढ़ने का सपना देखना नहीं छोड़ा. 1995 में फिर से एक एग्जाम दिया. क्लास I ऑफिसर का. उसे भी पास कर लिया. उसके बाद शकुंतला को विमेंस एजुकेशन डिपार्टमेंट की हेड के तौर पर नियुक्त किया गया. पर इतने सारे एग्जाम देने के बाद भी शकुंतला का मन नहीं भरा था. उसके बाद भी उन्होंने अपनी PHD ख़तम की.
भई वाह!
लगभग दो दशक तक अलग-अलग शिक्षा विभाग में काम करने के बाद, शकुंतला को 2017 में महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया गया.
शकुंतला की कहानी किसी पिक्चर से कम नहीं है. मुश्किल बचपन. समाज का दबाव. पर फिर भी अपने सपनों के पीछे भागने की चाह. उनकी कहानी हम सब के लिए ही मिसाल होनी चाहिए. कहां हम अपनी ज़िन्दगी में आई छोटी-छोटी मुश्किलों से हार मान लेते हैं. वहीं शकुंतला जैसी औरतों लाख मुसीबतों के बाद भी हार नहीं मानतीं.
उन सभी औरतों को ऑडनारी का सलाम.
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