ये महिला अपने आईएएस पति के ओहदे का बहुत अच्छा इस्तेमाल कर रही है

वो 25 बच्चों की 'मां' है.

सरवत फ़ातिमा सरवत फ़ातिमा
जुलाई 13, 2018
सीमा गुप्ता लखनऊ की रहने वाली हैं. फ़ोटो कर्टसी: नवभारत टाइम्स

कुछ समय पहले रानी मुखर्जी की एक फ़िल्म आई थी. हिचकी. उसमें रानी एक टीचर बनी थीं. वो टॉरेट सिंड्रोम से ग्रसित थीं. एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थीं. उस स्कूल में निचले वर्ग के बच्चे भी पढ़ने आते थे. अमीर मां-बाप के बच्चे उनसें भेदभाव करते थे. खैर, ये पिक्चर लखनऊ की रहने वाली सीमा गुप्ता ने देखी. इस पिक्चर का उनपर काफ़ी असर हुआ. ख़ासकर ग़रीब बच्चों के साथ जो सौतेला व्यवहार होता है, उसका. सीमा ने इस पिक्चर को देखने के बाद उसे भुलाया नहीं. उल्टा कुछ करने की ठानी.

सीमा के पति जीतेन्द्र कुमार आईएएस ऑफिसर हैं. ओहदे की वजह से उन्हें काफ़ी आलीशान बंगला भी मिला हुआ है रहने के लिए. सीमा ने ये सारी सुविधाएं ऐसे बच्चो की बेहतरी करने में लगा दी. आस-पास के जो बच्चे हैं, जिनके माता-पिता उन्हें एक अच्छा जीवन नहीं दे सकते, उनको ‘गोद’ लेने की ठानी.

सीमा के क्लास में पढ़ते बच्चे. फ़ोटो कर्टसी: नवभारत टाइम्स सीमा के क्लास में पढ़ते बच्चे. फ़ोटो कर्टसी: नवभारत टाइम्स

अगर आप इनके लखनऊ वाले बंगले जाएंगे तो आपको अद्भुत नज़ारा देखने को मिलेगा. 25 बच्चे वहां आपको पढ़ते, खाते, और खेलते हुए दिख जाएंगे. ये सीमा के अपने बच्चे नहीं है. पर वो इन बच्चों की मां जैसी हैं.

एक हिंदी अखबार को दिए इंटरव्यू में सीमा ने बताया:

“मैं सिर्फ़ उनको अपने घर में जगह नहीं देती हूं. मैं उनको पहनने के लिए अच्छे कपड़े देती हूं. पौष्टिक खाना खिलाती हूं. और अपने गार्डन में पढ़ाती हूं.”

इस मुहिम में सीमा अकेली नहीं हैं. उनके पति इसमें उनका साथ देते हैं. वो अपनी कार और ड्राईवर दोनों सीमा को सौंप  देते हैं. ये गाड़ी बच्चों के घर जाकर उनको ले आती है. शाम को यही गाड़ी उनको उनके घर छोड़ देती है.

सीमा बच्ची को पढ़ाती हुईं. फ़ोटो कर्टसी: नवभारत टाइम्स सीमा बच्ची को पढ़ाती हुईं. फ़ोटो कर्टसी: नवभारत टाइम्स

सीमा के घर एक बच्चा आता है जिसका नाम है आदित्य. वो कहता है कि सीमा सिर्फ़ उसकी टीचर नहीं हैं. मां जैसी हैं.

सीमा चाहती हैं कि उनके पति इन बच्चों का दाखिला एक अच्छे स्कूल में कराने में उनकी मदद करें. ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो. वो ये काम सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी की तरह नहीं करतीं. वो चाहती हैं कि उन 25 परिवारों की ज़िन्दगी भी सुधर जाए.

भई वाह! आजकल के समय में कौन ही ऐसा करता है. लोग तो अपनी खुशियों में इतने मगन हो जाते हैं कि उनको दूसरों की कोई सुध ही नहीं रहती. इसलिए सीमाजी को हमारी तरफ़ से सलाम.

 

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