मैं एक दलित लड़की हूं और प्लीज, नवरातों में मुझे देवी बनाकर मत पूजिए!

दलित हों, औरतें हों, या दलित औरतें हों, सभी इंसान है. भगवान बनाकर हमारे साथ मजाक मत करिए.

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
अक्टूबर 19, 2018
हर जगह अलग परंपराओं से नौ दुर्गा मनाई जाती है. फोटो क्रेडिट- ट्विटर

आज दशहरा है. पिछले नौ दिनों यानी नवरात्रों में हमारे यहां दुर्गा की पूजा होती है. बड़ी धूम-धाम से झांकियां बैठाई जाती हैं. चारों तरफ भक्ति का माहौल होता है. हर जगह अलग-अलग विधि-विधान से, परंपराओं से नौ दुर्गा मनाई जाती है. गुजरात का डांडिया प्रसिद्ध है तो कोलकाता की दुर्गा पूजा.

44268140_892112070979504_4773500809679732736_n_101918033700.jpgनवरात्री को मध्यप्रदेश में नौ दुर्गा कहा जाता है. फोटो क्रेडिट- ट्विटर

इन्हीं नौ दुर्गों में राजस्थान के स्कूलों में एक परंपरा शुरू हुई. परंपरा लड़कियों की पूजा करने की. स्कूलों में शिक्षक और लड़के लड़कियों की पूजा करते हैं. लगभग 18 जिलों के 2000 स्कूलों में शिक्षक और सीनियर लड़के लड़कियों के पैर धोते हैं, तिलक लगाते हैं, उनकी आरती उतारते हैं और लड़कियों से आशीर्वाद लेते हैं. इस सबके पीछे उनका तर्क है कि लड़कियां दुर्गा का रूप होती हैं. साथ ही उनका कहना है कि लड़कियां खुद को कमज़ोर समझती हैं इसलिए उन्हें हिम्मत देने के लिए, वो खुद को कमज़ोर न समझें इसलिए ये पहल शुरू की गई है.

बस ये सब ही नहीं शिक्षकों का ये भी मानना है कि वो इस सबसे लड़कियों को सम्मान दे रहे हैं. लड़कों को लड़कियों की इज़्जत करना सीखा रहे हैं. साथ ही वो लोग जाति व्यवस्था पर भी प्रहार कर रहे हैं क्योंकि वो दलित समुदाय से आने वाली लड़कियों को दुर्गा के नौ रूप बनाकर पूजते हैं.

44295929_461051510968002_464829217931001856_n_101918033809.jpg फोटो क्रेडिट- ट्विटर

इस कार्यक्रम के दौरान लड़कियों को उपहार में टोकन दिए जाते हैं. सभी छात्रों को दावत दी जाती है. शिक्षक इसके लिए सरकार से मदद नहीं लेते वो खुद ही पूरी व्यवस्था करते हैं. साल 2015 में कुछ शिक्षकों ने ये पहल शुरू की. पहले ये केवल 100 स्कूलों तक सीमित था. अब जयपुर, बांसवाड़ा, दौसा, पाली, जलोरे, बाड़मेर और झुनझुन जिलों में नवरात्री के दौरान इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.  

सुनने में बहुत अच्छा लगता है न? लड़कियों को कितना सम्मान मिल रहा है. लड़के उनकी पूजा करते हैं. उनसे आशीर्वाद लेते हैं. क्यों भाई? लड़कियां आसमान से टपकी हैं? किसने कहा वो भगवान का रूप हैं? अगर भगवान हैं तो. यहां भेद-भाव नज़र नहीं आता किसी को? लड़के क्यों पूजे लड़कियों को? क्यों उनसे आशीर्वाद लें?

44330350_688837661500422_1906333423446786048_n_101918033835.jpg फोटो क्रेडिट- ट्विटर

चलिए ठीक है सम्मान दे रहे हो लड़कियों को. देवी मान रहे हो. है न? एक तरफ देवी और एक तरफ वेश्या. इसके अलावा तो कोई और पहचान है ही नहीं लड़कियों की. एक तरफ इतना सम्मान दे दो कि देवी के स्थान पर बैठा दो. एक तरफ इतना नज़रअंदाज़ कर दो कि इन्सान भी मत मानो. बस गाली दे दो, कोठेवाली. यही तो समस्या है हमारी. हम लड़कियों को इन्सान मानते ही नहीं. मां की इज़्जत करो क्योंकि वो तुम्हारी मां हैं. बहन की इज़्जत करो. मामी की. ताई की. चाची की. दादी की. पड़ोस की आंटी की. कोई ये क्यों नहीं कहता इन्सान हैं, इन्सानियत की इज़्जत करो. क्यों ये सिखाया जाता है कि इस औरत की इज़्जत करो क्योंकि ये तुम्हारे घर की है. ये क्यों नहीं कहा जाता कि सभी औरतों की इज़्जत करो. सबको बराबर मानो. इन्सान मानो. क्यों किसी के लिंग, जाति, धर्म और किसी भी तरह के भेदभाव वाली परंपरा के आधार पर उसके सम्मान की उपाधि तय हो?

44379798_257690881597557_8584991814786744320_n_101918033908.jpg फोटो क्रेडिट- ट्विटर

शिक्षकों का कहना है कि जाति व्यवस्था को हटाने की कोशिश कर रहे हैं दलित लड़कियों को देवी बनाकर. भई तुम जाति व्यवस्था को हटा नहीं रहे हो उन पर ठप्पा लगा रहे हो. लोगों को बता रहे हो कि ये दलित हैं.

मैं भी एक दलित हूं. लड़की हूं. नहीं चाहिए मुझे देवी होने का सम्मान. इन्सान हूं, काफी है. केवल इन्सान मानने की ज़रूरत है. न कि कोई देवी-देवता. यही परेशानी है हमारे समाज की. हम औरतों को देवी का दर्ज़ा दे देते हैं. नहीं तो इन्सान भी नहीं मानते.   

44491729_297473100854564_1079116189591928832_n_101918033935.jpg फोटो क्रेडिट- ट्विटर

आपको क्या लगता है, 9 दिन लड़कियों की पूजा करने से, उन्हें सम्मान देने से, लड़कों से उनकी पूजा कराने से आप लड़कियों को हिम्मती बनाने में सफल हो जाएंगे? क्या इसके बाद कोई लड़का उन्हें बुरी नज़र से नहीं देखेगा? क्या लड़कियों के पैर धुलवाने से, उन्हें टीका लगवाने से लड़के उन्हें सम्मान देने लगेंगे? ये सब ढकोसले हैं. जैसे विश्वास मन में होता है. भौतिक रूप से कितनी भी पूजा-पाठ कर लो कोई मतलब नहीं. वैसे ही आप चाहे लड़कियों की पूजा कराओ या उन्हें सर पर बैठा कर घुमाओ. इस सबसे कुछ नहीं होने वाला. ज़रूरत है उन्हें सक्षम करने की. आत्मनिर्भर बनाने की. ज़िम्मेदार बनाने की. पढ़ने की आज़ादी देने की. नौकरी करने की आज़ादी देने की. अपनी ज़िन्दगी के फैसले खुद लेने की आज़ादी. करियर चुनने की आज़ादी. अपनी मर्ज़ी से जीने की आज़ादी. अपनी मर्ज़ी से रहने की आज़ादी. ज़रूरत है उनमें विश्वास दिखाने और करने की. उनको हिम्मत देने की. उनके फैसलों पर भरोसा करने की.

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group