साराहेवो औरतें: छाती छुपाने के लिए जब लड़कियों ने अपने बापों की कमीजें पहन लीं

कई साल बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस घटनाक्रम को जेनोसाइड माना गया. यानी नरसंहार. जो कि हिटलर ने ज्यूस यानी यहूदियों के साथ किया था.

साल 1992 .

भारत के अन्दर उथल-पुथल मच रखी है. 1991 में देश की पूरी अर्थव्यवस्था का ढांचा बदल दिया गया है. लाइसेंस कोटा परमिट वाले सिस्टम की जगह भारत का बाज़ार अब पूरी दुनिया के लिए खुल गया था. ये वो समय था जब भारत में नई नौकरियां आने वाली थीं. लोगों को लग रहा था देश की तस्वीर बदल जायेगी. म्यूजिक में नए नए एक्सपेरिमेंट हो रहे थे. सिनेमा में शोखी और चंचलता आ गई थी. करिश्मा कपूर, गोविंदा, अनिल कपूर, माधुरी का जलवा छाया था. देश 1971 का युद्ध और 1975 की इमरजेंसी से आगे आ गया था. 84 के दंगों की टीस बाकी थी.

इस साल का अंत भारत के लिए ऐसा होने वाला था जो आने वाले पचास सालों तक उसकी पॉलिटिक्स का रुख तय कर देने वाला था. देश अन्दर ही अन्दर बंट जाने वाला था. कुछ लकीरें खींच दी जानी थी. एक छोर के कश्मीर पर वो शुरू हो भी चुका था जब कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ भागने पर मजबूर कर दिया गया था. सेब की टोकरियों में छुपाकर बच्चे जम्मू भेजे जा रहे थे. बिना ये जाने कि उनके घरवालों में से कौन जिंदा रहेगा. कौन नहीं.

ऐसा ही कुछ घट रहा है एक और देश में. जो भारत के आस पास भी नहीं है. लेकिन वहां जो हो रहा है उसे आने वाले समय में यहूदियों के नरसंहार से कम्पेयर किया जाएगा. वो देश यूगोस्लाविया में है. उस देश का नाम बोस्निया है. जगह – यूरोप के यूगोस्लाविया संघ के अन्दर सर्बिया और बोस्निया नाम के देश.

दाईं तरफ युगोस्लाविया के उस वक़्त के PM टीटो हैं, बाईं तरफ इजिप्ट के प्रधानमंत्री. बीच में नेहरू दाईं तरफ युगोस्लाविया के उस वक़्त के PM टीटो हैं, बाईं तरफ इजिप्ट के प्रधानमंत्री. बीच में नेहरू

जब दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ था, तब साफ़-साफ़ तौर पर दो शक्तियां उभरी थीं. एक थी अमेरिका, दूसरा सोवियत संघ . जिसे यूनियन ऑफ़ सोशलिस्ट सोवियत रिपब्लिक यानी यूएसएसआर कहा गया. दुनिया के कुछ देश एक तरफ हो गए, कुछ दूसरी तरफ. इन दोनों गुटों के बीच लगभग चालीस साल तक युद्ध चला. नहीं, वैसा नहीं जैसा आम तौर पर होता है. इस युद्ध में आमने-सामने की लड़ाई नहीं हुई. औरों के कंधे पर रख कर बंदूकें चलाई गयीं. खुल्लम-खुल्ला युद्ध की कोई घोषणा नहीं हुई. इसे कोल्ड वॉर, या शीत युद्ध कहा गया. 

'फ्रॉम रशिया विद लव' जेम्स बॉन्ड की शुरूआती फिल्मों में से है, जिसमें हम कोल्ड वॉर का दौर देख सकते हैं 'फ्रॉम रशिया विद लव' जेम्स बॉन्ड की शुरूआती फिल्मों में से है, जिसमें हम कोल्ड वॉर का दौर देख सकते हैं

इस दौरान देशों का एक और गुट उभरा, जिसे गुट निरपेक्ष आन्दोलन कहा गया. इसमें शामिल देश किसी की भी साइड नहीं थे. ना अमेरिका के, ना सोवियत संघ के. जो देश इससे जुड़े उनमें सबसे आगे थे भारत, यूगोस्लाविया, इजिप्ट (मिस्र), इंडोनेशिया. और घाना. इनको अपनी स्वतंत्रता बनाए रखनी थी. किसी के प्रभाव में नहीं आना था. क्योंकि ये नए-नए आज़ाद हुए थे. इनसे कई और देश जुड़ गए और ये संगठन बड़ा होता गया.

कोल्ड वॉर आखिर खत्म हुआ सोवियत संघ के विघटन के साथ. इस समय पूरे विश्व में उथल-पुथल मच रही थी. नए बने देश अपनी आज़ादी के लिए जंग लड़ रहे थे. लेकिन एक जगह हालात काबू से बाहर हो गए थे , और वो जगह थी यूगोस्लाविया. वही यूगोस्लाविया जिसके नेता जोसेप ब्रौज़ टीटो नेहरू के बेहद करीबी थे. गुट निरपेक्ष आन्दोलन में नेहरू के साथ सबको लीड करने वाले. छः देशों को साथ लेकर यूगोस्लाविया बनाकर रखने वाले. जब तक वो ज़िंदा रहे, तब तक यूगोस्लाविया एक कम्युनिस्ट स्टेट बन कर रहा. 1980 में उनकी मौत के बाद शुरू हुई असली मुसीबत. यूगोस्लाविया बिखरना शुरू हो गया.

यूगोस्लाविया का पहले का मैप. फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स यूगोस्लाविया का पहले का मैप. फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

यूगोस्लाविया के छः देश थे-

1. बोस्निया हर्ज़ेगोविना 2. क्रोएशिया 3. सर्बिया 4. स्लोवेनिया 5. मोंटेनेग्रो 6. मैसेडोनिया.

नरसंहार में मरे लोगों की डेड बॉडीज. फोटो: रायटर्स नरसंहार में मरे लोगों की डेड बॉडीज. फोटो: रायटर्स

जैसे जैसे बिखराव शुरू हुआ, इनमें आपस में ज्यादा से ज्यादा ताकत खींचने की जद्दोजहद शुरू हुई. स्लोवेनिया और क्रोएशिया ने आज़ादी की तरफ कदम बढ़ाए, सर्बिया ने उनको रोकने की कोशिश की. बोस्निया के भीतर भी मुस्लिमों की आबादी बाकी जगहों के मुकाबले ज्यादा थी. सर्बिया सभी को एक साथ रखकर अपना दबदबा बनाए रखना चाहता था. बिग ब्रदर की तरह. लेकिन इसके बीच आ रही थी इन देशों की जिद, कि वो अलग होकर रहेंगे. इसके बाद बोस्निया की ही सर्ब जनता द्वारा 1992 में बोस्निया के मुस्लिमों के खिलाफ एक ऐसा संहार रचा गया, जिसे दर्ज करते हुए इतिहास के भी हाथ कांप गए.

वो समय खौफ का था. दर्द का था. गुस्से का था. बेबसी का था. फोटो: रायटर्स वो समय खौफ का था. दर्द का था. गुस्से का था. बेबसी का था. फोटो: रायटर्स

मार्च 1992.

बोस्निया हर्ज़ेगोविना ने यूगोस्लाविया से अलग होने की घोषणा कर दी. साराहेवो वहां की राजधानी थी. अब भी है.बोस्नियाकों और क्रोएटों के खिलाफ सर्बों ने दमन करना शुरू किया. ये तीनों ही समूह स्लाविक हैं, जो एक तरह की पहचान है. लेकिन इनमें से बोस्नियाक मुस्लिम थे, सर्ब ऑर्थोडॉक्स ईसाई. और क्रोएट कैथोलिक ईसाई. यही फर्क था. बोस्निया के सर्बों ने बोस्नियाक मुसलमान जनता पर धावा बोल दिया. कई साल बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस घटनाक्रम को जेनोसाइड माना गया. यानी नरसंहार. जो कि हिटलर ने ज्यूस यानी यहूदियों के साथ किया था.

जो औरतें घायल होने से बच जाती थीं उनको रेप के लिए उठा ले जाते थे. फोटो: रायटर्स जो औरतें घायल होने से बच जाती थीं उनको रेप के लिए उठा ले जाते थे. फोटो: रायटर्स

9 मई 1992 . शाम के छः बजे.

एक शांत गांव. हल्का सा अंधेरा छा रहा था. ललाई आसमान के कोने पर फूट कर अब सिमट रही थी. गांव के लोग अपने अपने घरों के बाहर बैठे गप शप कर रहे थे. कुछ अन्दर काम में जुटे थे. राना उनमें से एक थी. अचानक चीखने की आवाज़ आई और एक साथ कई गोलियां छूटीं. गांव पर हमला हो गया था. सर्बियाई सैनिक वहां घुस आये थे. उनके हाथों में मशालें और बंदूकें थीं. उन्होंने एक एक कर सभी घरों में आग लगा दी. लोग चीखते हुए भाग रहे थे. इस भागदौड़ के बीच किसी का ध्यान राना पर नहीं गया. उसे घसीट कर जंगल में ले जाया गया था. उसके साथ रेप किया. बाकी खड़े देखते रहे. उनके रेपिस्ट ने बाकियों से भी उनका रेप करने को कहा. उनका दो बार और रेप किया गया. उसके बाद पहले रेपिस्ट ने उनके गले पर छुरी रखी. दूसरे ने चिल्ला कर कहा “क्या कर रहे हो? तुम्हारी भी बहन है.” इसलिए राना को जिंदा छोड़ दिया गया.

आदिला सुल्जेविच 1992 में चार महीने प्रेग्नेंट थीं. उन्हें अपने घर में कैद करके रखा गया था सर्ब सिपाहियों द्वारा. बार-बार रेप किये जाने की वजह से उनका गर्भपात हो गया.

आमेला मेक्तुसेयाक के घर को 20 सर्बियन सिपाहियों ने घेर लिया था. उस समय उनके घर में उनकी मां और उनकी बहन थीं. आमेला को सर पर मारा गया, और उनके परिवार के सामने उनका रेप किया गया.

केलिमा दौतोविच याद करते हुए बताती हैं, “उनकी नज़र जवान और टीनेज लड़कियों पर थी. उनमें से कई तो अपने पिताओं की बड़ी-बड़ी शर्टें पहनती थीं ताकि अपनी ब्रेस्ट्स छुपा सकें. अगर कोई थोड़ी भी बड़ी लड़की दिखाई देती थी, या उनको पता होता था उसके बारे में तो वो सेक्स के लिए उठा कर ले जा सकते थे. रोज़ रात लगभग दस लड़कियों का रेप होता था. उन्हें एक खाली घर में उठा ले जाते थे. सुबह वापस आ कर कोई कुछ कहता नहीं था. उनको शर्म आती थी कुछ भी कहने में. लेकिन उनके थके हुए चेहरे सब कुछ बता देते थे.”

'अगर कहीं कोई भगवान् है, तो उसे मेरी माफ़ी की भीख मांगनी पड़ेगी'. फोटो: रायटर्स 'अगर कहीं कोई भगवान् है, तो उसे मेरी माफ़ी की भीख मांगनी पड़ेगी'. फोटो: रायटर्स

किसी को नहीं पता कि इस नरसंहार के दौरान कितनी लड़कियों का यौन शोषण किया गया. लेकिन अंदाजा तकरीबन 20000 से 50000 के बीच में है. इनमें से कईयों ने तो बाद में आकर स्वीकार किया कि उनके साथ बलात्कार हुआ था. बार बार की गयी मांगों के बाद रेप को वॉर क्राइम यानी युद्ध के अपराध की श्रेणी में रखा गया. इनमें से कई औरतें अपने बलात्कारियों को रोज़ अपने आस-पास देखती हैं. वो रेपिस्ट नहीं जानते कि उनके बच्चे कहाँ-कहाँ और किससे जन्मे हैं. इनमें से कईयों ने अपने बलात्कारियों को फेसबुक पर ढूंढ निकाला है. उन्हें पता है उसके कितने बच्चे हैं, कब शादी हुई उसकी. सब कुछ.

धमाके किसी में भेद नहीं करते. फोटो: रायटर्स धमाके किसी में भेद नहीं करते. फोटो: रायटर्स

डॉक्टर ब्रंका एंटिक स्टोबर ऐसी महिलाओं की काउन्सलिंग करती हैं जिन्होंने हाल में ही खुलकर स्वीकार किया कि उनका रेप हुआ है. इनकी काउन्सलिंग करते हुए वो बताती हैं, “चार लड़कियों के साथ आठ मर्दों ने रेप किया. गैंग रेप. उन औरतों ने कोर्ट में खड़े होकर उन मर्दों को पहचाना. लेकिन कोई ठोस सुबूत नहीं था जो यह साबित कर सके कि उनक आरोप सही हैं. उनके सेक्सुअल अब्यूज को नकारा नहीं जा सकता. लेकिन उन मर्दों के खिलाफ भी कोई सुबूत नहीं था. वो अब उन मर्दों के आस पास ही रहती हैं, उन्हें रोज़ देखती हैं. उन औरतों में से एक को दिल का दौरा आया, वो चल बसी. एक के बेटे ने खुद को फांसी लगा ली.”

ये फोटो अपने आप में एक दस्तावेज़ है. फोटो: रायटर्स ये फोटो अपने आप में एक दस्तावेज़ है. फोटो: रायटर्स

साराहेवो की उन औरतों में से अब तक मुश्किल से 6000 के आस पास ने अपने ऊपर हुए अत्याचारों की बात पब्लिक में स्वीकारी है. डॉक्टर ब्रंका कहती हैं कि उन सभी औरतों में से 95 प्रतिशत औरतें घरेलू हिंसा की शिकार हैं. इसकी वजह ये है कि उनके पति ये स्वीकार नहीं कर सकते कि उनकी बीवियों के साथ ये सब हुआ.

साराहेवो की बोस्नियन महिलाओं के लिए युद्ध शायद कभी खत्म हुआ ही नहीं. या फिर दुनिया की हर औरत के लिए हर वक़्त कोई न कोई युद्ध हमेशा चलता ही रहता है. उस युद्ध से निकलना एक ऑल्टरनेट रियलिटी में जाने जैसा महसूस होने लगता है. एक दूसरा हिस्सा दुनिया का जहाँ युद्ध नहीं. शायद उस हिस्से की दूरी साराहेवो से लेकर धरती के चारों ओर चक्कर काटकर सीरिया में आकर पूरी होगी. बीच में कुनान पोश्पोरा भी आएगा. थोआ खालसा के कुएं सूख जायेंगे इन लाशों को समोने की कोशिश में. पर युद्ध कब ख़त्म होगा, कहा नहीं जा सकता. औरतों के साराहेवो और सीरिया तब भी रहेंगे धरती पर. शायद किसी और नाम से.

 

 

 

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