बधाई हो, सुप्रीम कोर्ट की वजह से सबरीमाला मंदिर में अब औरतें जा सकती हैं

वो मंदिर जिसमें जाना औरतों के लिए IIT जाने से भी कठिन है.

ऑडनारी ऑडनारी
सितंबर 28, 2018
15 साल से 50 साल की महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकती हैं.

इस दुनिया में कितने ही तीर्थ स्थान हैं. इसमें सबसे आगे है मक्का. सउदी अरब में मुसलमानों का तीर्थ स्थल जो एक साल में आने वाले तीर्थ यात्रियों के मामले में सबसे आगे है. इसके बाद दूसरा नंबर आता है भारत के केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर का. साल 2016 में सबरीमाला मंदिर में 3.5 करोड़ लोग आए. और इस दौरान यहां 243.69 करोड़ रुपयों का बिज़नेस हुआ. जानकारी के लिए बता दूं कि साल 2018 में केरल सरकार ने 10 पंचायतों को महिला सुरक्षा के लिए 10 करोड़ और महिला सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए 50 करोड़ रुपये दिए हैं. यानी महिला सुरक्षा के लिए एक साल में कुल 60 करोड़. यानी लगभग 4 सालों के लिए महिला सुरक्षा पर खर्च होने वाली सरकारी रकम एक साल में सबरीमाला मंदिर में इस हाथ से उस हाथ पहुंच जाती है.

सबरीमाला मंदिर सबरीमाला मंदिर

बात महिलाओं की आई है और इसी सबरीमाला मंदिर का महिलाओं से बहुत बड़ा कनेक्शन है. इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था आज तक. सुप्रीम कोर्ट ने आज तक 10 साल से लेकर 55 साल तक की उम्र की लड़कियों/महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में घुसने पर लगे बैन को 4-1 की मेजोरिटी से खारिज कर दिया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि उम्र के आधार पर महिलाओं को किसी भी धार्मिक स्थल में ना घुसने देना कोई अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है.

सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि पांच जजों की इस बेंच में जिस एक जज का मत इस निर्णय के विरोध में रहा, वो इस बेंच की इकलौती महिला जज थीं- जस्टिस इंदु मल्होत्रा.

जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि आस्था को भेदभाव का शिकार नहीं होना चाहिए. यह भी कहा कि धर्म की आड़ में औरतों को पूजा करने के हक से वंचित नहीं किया जा सकता.

इस निर्णय तक पहुंचने के पीछे एक बहुत लम्बी लड़ाई है. कहां से शुरु हुई ये?

अगर आप भगवान के होने में विश्वास रखते हैं यानी आप आस्तिक हैं तो ये ज़रूर मानते होंगे कि उसने ही हम सभी को बनाया है. हम सभी यानी पेड़-पौधों से लेकर कुत्ते बिल्ली और इंसानों तक. यानी इंसान जितने भी प्रकार के हुए, सभी को उस भगवान ने ही बनाया है जिसमें आप विश्वास रखते हैं. फिर कौन सा भगवान होगा जो अपने ही हाथों से बनाए इंसान को अपने ही घर आने से मना करेगा? ऐसा तो सिर्फ़ वो हलवाई ही करता है घटिया घी में मिठाइयां बनाता है और खुद नहीं खाता है.

सबरीमाला में भगवान अयप्पा का वास है. अयप्पा यानी अय्या और अप्पा. अय्या यानी विष्णु और अप्पा यानी शिव. हिंदी भाषी क्षेत्र में भगवान शिव और मोहिनी के पुत्र को हरिहरपुत्र कहा गया. मोहिनी विष्णु का एक रूप थीं. इस प्रकार हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव के पुत्र हरिहरपुत्र कहलाये. दक्षिण भारत में हरिहरपुत्र यानी अयप्पा के कई मंदिर हैं. इन्हीं में सबरीमाला एक प्रमुख मंदिर है.

सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के लिए आपको पुरुष होना पड़ेगा. फोटो क्रेडिट- Getty images सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के लिए आपको पुरुष होना पड़ेगा. फोटो क्रेडिट- Getty images

इस मंदिर में जाना IIT जाने से भी कठिन है. आपको 41 दिनों का व्रत रखना होता है. इस व्रत में एकदम वेज खाना, 'प्योर थॉट्स', नो सेक्स, नो फ़िल्म या टीवी या फ़िल्मी गाना, सिर्फ भजन, रोज़ पूजा, कोई गाली गलौज नहीं करनी होती है. अगर आप नंगे पैर रह सकें तो एक्स्ट्रा मार्क्स मिलते हैं. ऐसा 41 दिनों के बाद आप सबरीमाला मंदिर जा सकते हैं. लेकिन उसके लिए भी आपको पुरुष होना पड़ेगा.

केरल हाईकोर्ट के दिए आदेश के बाद 10 साल से 50 साल के बीच की महिलाएं मंदिर में नहीं जा सकती थीं केरल हाईकोर्ट के दिए आदेश के बाद 10 साल से 50 साल के बीच की महिलाएं मंदिर में नहीं जा सकती थीं

10 साल से 50 साल की महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकती थीं इस सुप्रीम कोर्ट निर्णय से पहले. क्यों? उसकी वजह ये है कि 1991 में केरल के हाईकोर्ट ने एक आदेश दिया जिसके हिसाब से 10 साल से 50 साल के बीच की महिलाएं मंदिर में नहीं जा सकती थीं. इस आदेश के पीछे एक PIL थी जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था कि चूंकि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और इसलिए रजस्वला महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती. रजस्वला यानी वो महिलाएं जिनकी पीरियड्स होने की उमर हो. क्यूंकि माना ये जाता है कि पीरियड्स की वजह से महिलाएं अपवित्र हो जाती हैं. 1991 तक ये एक मान्यता थी लेकिन इसके बाद एक कानून में तब्दील हो गया. इसके बाद मंदिर के द्वार पर बाकायदे पुलिस खड़ी होने लगी जो कि ये पक्का करती थी कि मंदिर में कोई भी महिला प्रवेश न कर पाए.

सबरीमाला मंदिर में रजस्वला महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. सबरीमाला मंदिर में रजस्वला महिलाओं का प्रवेश वर्जित है.

अब समझिए इस केस के लीगल पहलू को. असल में ये पूरी लड़ाई संविधान के आर्टिकल 26(बी) और 25(1) के बीच है. आर्टिकल 26 बी कहता है कि देश में सभी को अपना धर्म फॉलो करने के लिए धार्मिक बिल्डिंग जैसे मंदिर या मस्जिद बनाने का हक़ है. और इनको अपने धर्म के हिसाब से चलाने का हक़ है. वहीं आर्टिकल 25 (1) कहता है देश में सभी को अपनी मर्जी का धर्म अपनाने, मानने और फैलाने का हक़ है.

असल में केरल हाई कोर्ट के 27 साल पहले आए फैसले के बाद इसपर विवाद होता नहीं दिखा. मगर सिर्फ 2006 तक. 2006 में कन्नड़ नेत्री और अभिनेत्री जयमाला ने कहा कि जब वो 28 साल की थीं, तब वो न सिर्फ मंदिर में शूटिंग के लिए घुसी थीं, बल्कि गर्भगृह में जाकर मूर्ति को भी छुआ था. और ये सब पंडित की इजाज़त से हुआ था. इस वाकये के बाद माले की क्राइम ब्रांच द्वारा जांच शुरू हुई. शायद केरल में मर्डर, रेप और हिंसा के केस कम पड़ गए थे.

सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया.  फोटो क्रेडिट- Getty images सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया. फोटो क्रेडिट- Getty images

मगर इस मुद्दे ने महिलाओं में गुस्सा पैदा किया और 2008 में केरल की कुछ महिला वकीलों ने PIL दाखिल की. अगले कुछ सालों में मामले ने तूल पकड़ा और 2016 में देश के कुछ युवा वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में इस नियम के खिलाफ याचिका डाली. 2016 में केरल की लेफ्ट सरकार भी मंदिर में औरतों को प्रवेश न मिलने का विरोध करने लगी.

सीनियर ऐडवोकेट इंदिरा जयसिंग ने दलील दी कि 10 से 55 साल की उम्र की औरतें, जिन्हें पीरियड होते हैं, जब हम उन्हें मंदिर जाने से रोकते हैं तो कहते हैं कि वे 'अपवित्र' हैं. किसी भी व्यक्ति को अपवित्र मानना 'अनटचेबिलिटी' यानी छूत-अछूत की प्रथा को मानना है. जो संवैधानिक अपराध है.

सबरीमाला में जाने का महिलाओं को उतना ही हक़ है जितना पुरुषों को. फोटो क्रेडिट- Getty images सबरीमाला में जाने का महिलाओं को उतना ही हक़ है जितना पुरुषों को. फोटो क्रेडिट- Getty images

और इस बात पर हुई लम्बी उठा-पटक के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई ये कहा कि सबरीमाला में घुसने के लिए महिलाओं का उतना ही हक़ है जितना पुरुषों का. ये एक ऐसी बात है जो कही नहीं जानी चाहिए. ये बड़ी ही obvious सी बात है कि महिला और पुरुष बराबरी के हक़दार हैं. लेकिन समय का तकाज़ा यही है कि देश की सबसे बड़ी अदालत को लोगों को ये समझाना पड़ रहा है.

आज सुप्रीम कोर्ट की वजह से ये बैन हट गया है. सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी कुंदरू राजीवरु ने कहा कि वो इस फैसले से निराश तो हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को स्वीकार करते हैं.

 

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