सैकड़ों अगवा हुए बच्चों को उनके मां-बाप से मिलवाने वाली इस औरत की कहानी अब दुनिया जानेगी
सलाम.
महाराष्ट्र बोर्ड में अब 10वीं के स्टूडेंट सब इंस्पेक्टर रेखा मिश्रा के बारे में पढ़ेंगे. 32 साल की इस सब इंस्पेक्टर ने मुबंई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) से करीब 900 गुमशुदा बच्चों को उनके मां-बाप से मिलवाया है. ये वो बच्चे थे जो या तो घर से भागे हुए थे या फिर जिन्हें अगवा कर मुंबई लाया गया था. मजदूरी कराने या भीख मंगवाने के लिए.
रेखा 2015 में रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (RPF) की सब इंस्पेक्टर के तौर पर मुंबई आई थीं. मुंबई डिविजन की महिला सुरक्षा विंग में उनकी तैनाती की गई. इस दौरान रेखा ने महिलाओं के लिए जागरुकता अभियान चलाया. मुंबई रेलवे डिविजन की महिला शक्ति टीम को भी लीड किया.
इस दौरान उन्होंने प्लेटफॉर्म पर बहुत से बच्चों को भीख मांगते देखा. जो नशा करते, शराब पीते और गलत कामों में लगे रहते. जब रेखा ने इस बारे में अपने सीनियर अधिकारियों से बात की, तब उन लोगों ने बच्चों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्हें बाल कल्याण का भी एडिशनल चार्ज दिया गया.
रेखा बताती हैं कि कई बच्चे अपने घर में होने वाले झगड़ों से तंग आकर घर से भागते हैं. कई बच्चे डांट पड़ने पर घर छोड़ दिया करते हैं. जैसे, एक 13 साल का बच्चा इसलिए अपने घर से भागा क्योंकि उसके पिता ने होमवर्क न करने और दोस्तों के साथ बाहर जाने के लिए डांटा था. जब रेखा ने उसे एक स्टेशन पर पाया, तो वो रो रहा था और काफी डरा हुआ था. वो पूरी रात उसके साथ रहीं, जब तक घरवाले बच्चे को लेने नहीं आ गए. 2016 में रेखा ने 434 बच्चों को बचाया, जिसमें 45 लड़कियां थीं. साल 2017 में 500 खोए हुए बच्चों को उनकी फैमिली से मिलवाया.
इन्हें जब भी कोई बच्चा मिलता है, तो चाइल्ड वेलफेयर कमिटी को इसकी सूचना दी जाती है. कमिटी बच्चे का मेडिकल टेस्ट कराती है और उनके पैरेंट्स को ट्रेस करने में मदद देती है. इसके अलावा कई एनजीओ की भी मदद ली जाती है.
रेखा का मानना है कि पुलिस डिपार्टमेंट में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को आना चाहिए. वो उदाहरण देती हैं कि कई मामलों में रेलवे स्टेशन पर जब कोई लड़की महिला पुलिस को देखती है, तो वो बेहतर महसूस करती है और आसानी से अपनी सारी बात बताती है.
रेखा उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास कंगिया गांव की रहने वाली हैं. उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में एमए किया है. स्कूल और कॉलेज टाइम से ही खेलकूद में रेखा की दिलचस्पी रही है. वो कई स्पोर्ट्स ईवेंट में हिस्सा लेने जाया करती थीं. रेखा बताती हैं कि उनके पिता ने उन्हें कभी कहीं आने-जाने से नहीं रोका. उनके घरवालों ने हमेशा उनका साथ दिया.
अपने काम की चुनौती के बारे में रेखा बताती हैं कि महिला और पुरुष दोनों ही पुलिसकर्मी के लिए अपनी शिफ्ट के बाद खुद के लिए और फैमिली के लिए वक्त नहीं बचता. वो खुद 12 घंटे से ज्यादा काम करती हैं.
इस बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर रेखा को नारी शक्ति अवॉर्ड 2017 से नवाज़ा गया था.
हम और आप अक्सर रेलवे प्लेटफॉर्म और सड़कों पर भीख मांगते बच्चों को देखा करते हैं. उनमें से कई बच्चे ऐसे होते हैं, जिनसे जबरन ये काम करवाया जाता है. जो अपने परिवार से दूर हो जाने की वजह से ऐसी अंधेरी दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं, जहां से उन्हें बचने का कोई रास्ता नहीं दिखता. रेखा मिश्रा ऐसे ही भटके बच्चों के लिए नई राह बना रही हैं.
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