वायरल वीडियो वाली 'आंटी' पर गुस्सा आना जायज़ है, लेकिन कुछ लोग उनसे भी बड़ी गलती कर रहे हैं

रेप की घटिया बात का जवाब रेप की ही बात से देना कहां की बुद्धिमानी है?

30 अप्रैल को शाम में एक वीडियो वायरल होना शुरू हुआ. इस वीडियो को फेसबुक पर पोस्ट करने वाली लड़की ने बताया कि वो अपनी दोस्तों के साथ एक रेस्ट्रॉ में गई थी. वहीं ये आंटी भी थीं. अब इन लड़कियों में से एक ने शॉर्ट ड्रेस पहनी थी. उसपर उन आंटी ने टिप्पणी की. ये तक कह दिया कि ऐसी शॉर्ट ड्रेस कि वजह से लड़की का रेप होना चाहिए. इसके बाद वो लड़कियां उनका पीछा करते हुए दूसरी शॉप तक पहुंचीं. उनका वीडियो बनाया. माफ़ी मांगने को कहा. लेकिन उन आंटी ने माफ़ी नहीं मांगी. उल्टे बार-बार वही चीज़ कही. लड़कियों को शर्मिंदा करने की कोशिश की. कुल मिलाकर वही सब कुछ किया जो इंटरनेट पर ट्रोल और आम जिंदगी में ‘वो चार लोग’ करते हैं. 

खैर. वीडियो वायरल होना शुरू हुआ. हर जगह पहुंचा. उस पर बहस शुरू हुई. कई मीडिया हाउसेज ने कवर किया. लोगों ने जाहिर तौर पर उन आंटी की क्लास लगाई.

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ठीक है. गुस्सा समझ में आता है. किसी को भी गुस्सा आएगा. बात ही ऐसी की थी. लेकिन गुस्सा दिखाने के चक्कर में कई लोग उन आंटी के लेवल से भी नीचे गिर गए. उन आंटी की तस्वीर निकाली गई जिसमें उन्होंने खुद छोटी ड्रेस पहन रखी थी. इसे लेकर ट्रोल किया गया. कई घटिया ट्रोल कमेंट्स में उनके शरीर को लेकर उनका मज़ाक उड़ाया गया. कई कमेंट्स में ये तक कह दिया गया कि उनका रेप होना चाहिए. कई ने उनको ‘मीनोपॉजल’ कहा. मेनोपॉज (Menopause) वो अवस्था है जब महिला के पीरियड आने बंद हो जाते हैं. क्योंकि उनकी ओवरीज में अंडे (eggs) नहीं बनते. ये अवस्था अक्सर 45 साल की उम्र के बाद आती है. लगभग हर महिला के जीवन में आती है.

- इन आंटी के शरीर का मजाक उड़ाना उसी मानसिकता को बढ़ावा देना है जिस मानसिकता से प्रभावित होकर इन्होंने ऐसे कमेंट्स किए. महिला के शरीर को उसकी डेफिनिशन बना देना उन वजहों में से एक है जो रेप को एक ‘इज्जत’ से जुड़ा मुद्दा बना देती है. जबकि वो सिर्फ और सिर्फ कुंठा और क्रोध से उपजा एक पॉवर टूल है. औरत के शरीर, और उसके कपड़ों का इससे कोई लेना देना नहीं. अगर ऐसा होता तो नवजात बच्चियों से लेकर 90 साल की औरतों से लेकर मासूम लड़कों तक के रेप नहीं होते. 

viral-aunty-750x500_050219071807.jpgस्त्रीद्वेष यानी मिसोजिनी इस तरह से नहीं खत्म की जा सकती. उल्टे बढ़ाई ही जाएगी.

- इन आंटी से ये कहना कि उनका रेप हो जाना चाहिए उनकी सोच को सही साबित करना है. ऐसी सोच को बढ़ावा देना है. खाद-पानी देना है. इससे यही बात मजबूत होती है कि अगर हमें किसी की कोई बात पसंद न आए तो हम उसे रेप की सजा देने की ख्वाहिश रख सकते हैं. रेप को जस्टिफाई कर सकते हैं. अगर उन आंटी का किसी के कपड़ों पर तंज कसने के लिए रेप शब्द का इस तरह इस्तेमाल करना गलत है, तो उन्हें उनकी गलती समझाने के लिए या अपना गुस्सा ज़ाहिर करने के लिए रेप को जरिया बनाना भी गलत है.

- पीरियड्स को लेकर वैसे ही आस-पास टैबू बहुत है. उससे जुड़ी बाकी चीज़ों को लेकर भी चाहे पैड हों, टैम्पॉन हो, या कुछ और. मेनोपॉज भी उनमें से एक है. ये पीरियड आना शुरू होने जैसी ही अवस्था है. बस इसमें पीरियड्स आने खत्म हो जाते हैं. इसको लेकर आंटी का मज़ाक उड़ाना उस स्टिग्मा को बढ़ावा देना है जिससे सदियों से औरतें जूझती आ रही हैं. ये स्त्रीद्वेष का ही एक रूप है. एक 25 साल की लड़की को आप हार्मोनल कह देंगे, 50 की औरत को मेनोपॉजल कह देंगे. क्या ही फर्क है आपमें और उन लोगों में जो औरत को पैर की जूती मानते हैं? सिर्फ इतना कि आप उसमें फैंसी शब्दों का इस्तेमाल कर लेते हैं?

सिर्फ इसलिए कि आप खुद को ‘लिबरल’ जमात में गिनते हैं और आपको लगता है कि आप फेमिनिस्ट हैं, आप उसी टर्मिनोलॉजी का इस्तेमाल करके उसका विरोध नहीं कर सकते. रेप का विरोध करने के लिए आप किसी को इससे गुजरने की बात नहीं कह सकते.

वैसे, उन आंटी ने माफ़ी मांग ली है. उन्होंने कहा है,

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‘मैं सभी लड़कियों से बिना शर्त माफ़ी मांगती हूं. मुझे लगता है कि मैंने जो कहा वो कठोर था और सही नहीं था. मुझे अपनी बात उनसे अकेले में कहनी चाहिए थी. मुझे लगता है कि मुझे रूढ़िवादी और पिछड़ी सोच का होने की जगह ज़्यादा प्रोटेक्टिव और प्रगतिवादी होना चाहिए था.  एक पत्नी, बहन, मां और सबसे ज़रूरी एक औरत होने के नाते मैं औरत के स्वाभिमान को अहमियत देती हूं.

एक बार फ़िर मैं उन सभी महिलाओं से खुले दिल से माफ़ी मांगती हूं जिनकी भावनाएं आहत हुई हैं.’   

उम्मीद है तो बस इतनी कि जैसे उन्होंने समझा, (अगर सच्चे दिल से समझा) वैसे ही उनकी आलोचना करने वाले भी इस बहुत बड़ी कमी को पहचान कर उसे दूर करें. 

 

 

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