एकता कपूर: मेलोड्रामा की रानी, जिनके बनाए हुए एक-एक शो की दीवानी थीं औरतें
टीवी की बेताज बादशाह, फिल्म इंडस्ट्री की इकलौती महिला प्रड्यूसर जो स्टूडियो की मालकिन है.
कुढ़ती हुई सास, रोती हुई बहू. टीवी ने इतना मेलोड्रामा कभी नहीं देखा था. मगर 3 जुलाई, साल 2000 में टीवी पर आया 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' का पहला एपिसोड. और स्मृति ईरानी हर घर की बहू बन गईं. इसी साल 'कहानी घर घर की' और 'घर एक मंदिर' के भी पहले एपिसोड आए. और बदलती सदी के साथ टीवी की किस्मत बदल गई. कम से कम अगले बीस साल के लिए.
हर चीज़ तीन बार कहने, आरती के थाल गिरवाने, और तेज़ हवाएं चलवाने के बाद एकता कपूर ने फिल्मों में हाथ लगाया. और बिलकुल टीवी के उलट काम किया. जिसने मिडिल क्लास नैतिकता को भुनाकर छप्पर फाड़कर टीआरपी बटोरी थी. वो सेक्स कॉमेडी बना रही थीं.
एकता कपूर के दिमाग में क्या है, कोई नहीं जानता. जो हम जानते हैं कि वो बिना थके लगातार काम करती हैं. किसी खांचे में आजतक फिट नहीं हुईं. हर तरह की फिल्म में पैसे लगे. और पैसेवाले यशराज और धर्मा प्रोडक्शन की दुनिया में 'बालाजी मोशन पिक्चर्स' की पहचान बनाई.
मिहिर मरा तो आप कितना रोई थीं?
लगभग 140 टीवी सीरियल, 50 के आसपास फ़िल्में, और 20 से ज्यादा वेब सीरीज बना चुकी हैं एकता कपूर.
अनगिनत अंगूठियां पहनने वाली, 'के' सीरियल बनाने वाली एकता कपूर की ये बातें जरूर पढ़नी चाहिए. जो उन्होंने अलग-अलग इंटरव्यूज में कही हैं.
1.
'मुझे ज्ञान बांटने वाली फिल्मों से प्रॉब्लम है. हम भारी-भारी फ़िल्में बनाते हैं. कि लोग उससे सीखें. पर अंत में इन भारी फिल्मों को वही लोग देख पाते हैं जिन्हें असल में सीखने की जरूरत है ही नहीं. सिनेमा बनाने का पूरा पॉइंट ही मिस हो जाता है. इसलिए जरूरी है कि एंटरटेनमेंट ऐसा हो. सिनेमा ऐसा हो कि एंटरटेनमेंट की आड़ में आप लोगों को शिक्षित कर जाएं.'
2.
'टीवी सीरियल में हर चीज नहीं दिखा सकते. हमेशा याद रखना पड़ता है कि हम घर-घर पहुंच रहे हैं. इसलिए मुझे ऑल्ट बालाजी बहुत पसंद है. लोग मोबाइल में देख सकते हैं. परिवार के अलग-अलग लोग अलग-अलग चीज़ देख सकते हैं.'
3.
'मुझे 'नागिन' और 'नार्कोस' दोनों बेहद पसंद हैं. मैं यही हूं.'
4.
'फिल्म इंडस्ट्री के अंकल और डैडी सोचते हैं कि महिला प्रधान फिल्म है तो चलेगी नहीं. मैं महिला प्रधान फिल्मों में पैसे लगाऊं तो वो मेरे फैसले को सराहने का अभिनय करते हैं. जैसे एहसान कर रहे हो. इससे महिला प्रधान फिल्मों में पैसे लगाने का मेरा फैसला और मजबूत हो जाता है.'
5.
'मैं सेक्स कॉमेडी बनाऊं तो लोगों को प्रॉब्लम हो जाती है. सेक्स क्राइम्स से प्रॉब्लम नहीं होती. मुझे सेक्स और सेक्शुअल कॉन्टेंट से दिक्कत नहीं होती. मैं इसके लिए शर्मिंदा क्यों होऊं?'
6.
'क्या कूल हैं हम बेहद घटिया फिल्म थी.'
7.
'सेक्स दिखाने का मतलब एंटी-फेमिनिस्ट होना नहीं होता.'
8.
'टीवी ने ट्रांसजेंडर पर सीरियल बनाया है. मैरिटल रेप पर शो बनाए हैं. मगर साड़ी और मेकप देखकर लोगों को लगता है यहां सिर्फ कूड़ा मिलेगा.'
9.
'मैंने एक शो बनाया था जिसमें औरत का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होता है. उसे स्वीकार नहीं किया गया. औरत की जगह पुरुष होता तो लोगों को तकलीफ़ नहीं होती है.'
10.
'टीवी सीरियल काला जादू और अन्धविश्वास को बढ़ावा नहीं देते. गेम ऑफ़ थ्रोन्स में डेनेरिस ड्रैगन को जन्म देती है. उससे आपत्ति नहीं क्यों नहीं होती?'
कहानी घर-घर की
11.
'सास-बहू के बीच का रिश्ता बहुत औरतों के जीवन में है. सीरियल में क्यों न हो. लिबरल लोग तुलसी के किरदार पर हंसते हैं. ये नहीं देखते कि तुलसी ने अपने बेटे पर गोली चलाई थी क्योंकि वो मैरिटल रेप का दोषी था.'
12.
'हां ये सच है कि कुछ चीजें मुझे कई साल पहले प्रगतिवादी लगती थीं. अब नहीं लगतीं. आज की तारीख में 'बेटे के रूप में बेटा मिला' जैसे लिरिक्स मैं अपने शो में नहीं जाने दूंगी.'
13.
'जबसे मां बनी हूं, हर दिन अलग-अलग तरह से अपराधबोध से जूझ रही हूं.'
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