पीएम मोदी, देश के लाखों बच्चे और उनकी मांएं आपको कभी माफ नहीं करेंगे
एक जन्मजात बीमारी का मज़ाक उड़ाकर आपने 'गिरने' की नई परिभाषा तय कर दी है.
बीते शनिवार यानी 2 मार्च की शाम को एक इवेंट था. स्मार्ट इंडिया हैकथॉन. आईआईटी खड़गपुर में हो रहा था. इसमें पीएम मोदी बच्चों से सवाल ले रहे थे. विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग भी हो रही थी इस इवेंट की. फोकस था महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए टेक्नोलॉजी पर आधारित सलूशन ढूंढना.
इसमें देहरादून की एक बीटेक की स्टूडेंट ने उठ कर अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया. उसने बताया कि उसका प्रोजेक्ट डिस्लेक्सिक (Dyslexic) बच्चों की मदद में काम आएगा. ये वो बच्चे होते हैं जिनकी सीखने की रफ़्तार धीमी होती है, लेकिन वो बहुत इंटेलिजेंट और क्रिएटिव होते हैं, जैसे तारे ज़मीन पर में दर्शील सफारी.
इतने पर पीएम मोदी ने लड़की को टोका, और पूछा, क्या ये 40-50 साल के बच्चों पर भी काम करेगा?
वहां मौजूद सब स्टूडेंट्स हंस दिए. लड़की ने कहा , हां करेगा.
पीएम मोदी ने हंसते हुए कहा, तब तो ऐसे बच्चों की मां बहुत खुश होगी.
अगर आप निहायत ही बेशर्म नहीं हैं, और आपने अपनी कॉमन सेन्स बेच नहीं खाई है, तो आप समझ गए होंगे कि यहां पर इशारों-इशारों में पीएम मोदी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर निशाना साधा है. �पीएम मोदी का ब्रैंड यही है. इस तरह के मज़ाक कर जनता के बीच में ब्राउनी पॉइंट्स बटोरना. पहले भी कर चुके हैं, 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड और कांग्रेस की विधवा जैसे जुमले उछाल के.
लेकिन इस बार उन्होंने ऐसी लाइन क्रॉस की है, जिसके लिए लाखों-करोड़ों लोग उन्हें माफ़ नहीं करेंगे.
डिस्लेक्सिया जन्मजात बीमारी होती है जोकि 100 में से कम से कम तीन से सात बच्चों को होती है. इसमें जींस यानी आनुवंशिकी का भी हाथ होता है. इससे जो बच्चे प्रभावित होते हैं, उनकी सीखने की रफ़्तार थोड़ी धीमी हो जाती है. दिमाग की वायरिंग थोड़ी अलग होने की वजह से ट्रेडिशनल तरीकों से पढ़ाई करने, सीखने समझने में वो पिछड़ जाते हैं. लेकिन उनका दिमाग काफी ब्रिलिएंट होता है. जिस व्यक्ति ने मोनालिसा पेंटिंग बनाई, लियोनार्डो दा विंची, अपने टाइम का महान आर्टिस्ट था. कहते हैं उसे भी डिस्लेक्सिया था. एलेग्जेंडर ग्रैहम बेल, जिनकी वजह से हम टेलीफोन पर बात कर पाते हैं, उस व्यक्ति को भी डिस्लेक्सिया था, ऐसा बताया गया है. अब डिस्लेक्सिया की बीमारी को पहचान मिली है. इससे प्रभावित बच्चों पर ख़ास ध्यान देने वाले स्कूल और ट्रेन किए हुए टीचर मेनस्ट्रीम में आ रहे हैं.
स्टूडेंट की बात के जवाब में जोक मारते पीएम मोदी काफी खुश लग रहे हैं अपने सेन्स ऑफ ह्यूमर पर.
लेकिन इस का मतलब ये नहीं है कि इसे स्वीकार कर लिया गया है समाज में. कोई भी बच्चा अगर किसी भी मामले में स्लो होता है, या कोई विकलांग नॉर्मल जिन्दगी जीने की कोशिश भी करना चाहता है तो पूर्वाग्रहों से जकड़े लोग उनका मज़ाक बनाते हैं. उनको बार-बार याद दिलाते हैं कि वो अलग हैं. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, ऑटिज्म, पार्किन्संस, लू गेरिग डिजीज, बहुत सारी बीमारियां ऐसी हैं जो शरीर को ही नहीं, दिमाग को भी प्रभावित करती हैं. डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे भी किसी न किसी तरह अपनी बीमारी से लड़ कर जीते हैं. �विकलांग शब्द कहते ही दिमाग में व्हीलचेयर पर बैठा व्यक्ति या हाथ में प्रोस्थेटिक लगाकर बैठा व्यक्ति ही क्यों दिखाई देता हैं? क्या दिमाग शरीर का अंग नहीं है? क्या वो विकल नहीं हो सकता? क्या ये इतना बड़ा गुनाह है जिसके लिए किसी को एक मज़ाक बनने की सजा दे दी जाए?
Dyslexia is one of the most common learning disorders that affects 3-7% people, (traits in upto 17-20%). It is genetic (heritable) that affects reading, writing & hence learning skills but not a marker for intelligence. Poor judgement by the PM to mock a neurological condition pic.twitter.com/lJczhocUYV
- Dr. Sumaiya Shaikh (@Neurophysik) March 3, 2019
पीएम मोदी, दिव्यांग का नया नाम देकर आप मानसिक और शारीरिक रूप से जूझ रहे लोगों की मुश्किलें आसान नहीं कर सकते. कितने ऐसे सरकारी स्कूल हैं जिनमें शारीरिक रूप से विकलांग लोगों की सहूलियत के लिए टॉयलेट हैं या इंफ़्रास्ट्रक्चर है? या मानसिक रूप से किसी भी अक्षमता से जूझ रहे बच्चों के लिए स्पेशल टीचर हैं? वैसे ही दिमाग से जुड़ी बीमारियों को लेकर समाज में स्टिग्मा बहुत है. देश के इतने ऊंचे पद पर बैठे आप अगर इस तरह के मजाक कर सकते हैं, सिर्फ अपनी पॉलिटिक्स चलाने के लिए, तो कोई आप पर क्यों ही भरोसा करेगा कि आप को सचमुच जनता की परवाह है? खुद को प्रधानसेवक कहने वाले आप, सेवा के लायक नहीं हैं. �
नहीं हैं आप. �
�
�
लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे