शादीशुदा औरतें इस तरह घर बैठे अमीर हो सकती हैं, बस पति को मदद करनी होगी!

हाउसवाइफ हैं तो इसे पढ़ें. हाउसवाइफ के पति हैं तो जरूर पढ़ें.

सांकेतिक इमेज- यूट्यूब स्क्रीनशॉट

पति-पत्नी में पैसे के अहमियत को लेकर बहस चल रही थी.

पति उत्तेजना से बोला, सब कुछ पैसे पर टिका है. यहां तक कि यह घर भी.

पत्नी बोली, सिर्फ घर ही क्यों,  मैं भी.

ये एक नमूना है. ऐसे जोक्स का जो अक्सर फैमिली ग्रुप्स पर भेजे जाते हैं. इन चुटकुलों का एक ही मकसद होता है. बिचारे पति की दुर्दशा दिखाना. जिसमें पत्नी उसके सारे पैसे उड़ा देती है. क्योंकि उसे और कोई काम तो है नहीं. वो क्या जाने बाहर जा कर कमाना क्या होता है. घर आते ही चिक-चिक शुरू कर देती है. साड़ी दिलाओ. गहने दिलाओ. घुमाने ले के जाओ.

खुद तो घर पे बैठी रहती है.

हाहाहा.

है न?

anguillara-1975909_1920-750x500_012119074301.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

पूरी दुनिया के मर्द ऐसा ही सोचते हैं. इसी वजह से घर पर किए जाने वाले काम की अहमियत कोई नहीं समझता. क्योंकि उसके पैसे जो नहीं मिलते. अगर मिलते तो कितने मिलते?

कभी सोचा है?

Oxfam नाम की एक संस्था है. रीसर्च करती है. खूब सारे पढ़ाई करने वाले हैं उसमें. खोद-खोद के जानकारी जुटा लाते हैं. हर साल एक रिपोर्ट जारी होती है इस संस्था से. उसमें बताते हैं क्या खोया, क्या पाया टाइप चीज़ें. बीच बीच में ऐसी ही स्टडीज निकलती हैं. एक ऐसी ही रीसर्च सामने आई है जिसके बारे में सब बात कर रहे हैं.

खबर ये है कि दुनिया भर की घरवालियां जितना काम करती हैं, अगर उसकी बाजार में कीमत लगाई जाए तो पैसे निकालने में गरीबी छा जाएगी. यकीन नहीं होता आपको? बिना नंबर दिए आप मानेंगे कहां. 99.9 परसेंट कीटाणु जब तक स्क्रीन पर लिखा नहीं आएगा आपको भरोसा कैसे होगा. चलिए हम भी नंबर दिखा देते हैं ताकि आपको यकीन हो जाए.

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पूरी दुनिया की औरतें घर के जो काम करती हैं, उसकी कीमत आंकी जाए तो टोटल 710 लाख करोड़ रुपए सालाना टोटल बनता है.

ये इतने पैसे हैं कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कम्पनी एपल साल में जितना कमाती है. उसका 43 गुना है ये. मने कि औरतें अगर इतना पैसा पा लें, तो मिलकर दुनिया की बड़ी से बड़ी कम्पनियां खरीद लेंगी. पर पा नहीं रही हैं.

ये तो हुई दुनिया की बात. अपनी भारत माता कहां टिकती हैं इन सबमें. इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत की ‘घरवालियां’ जो घर और बच्चों को सम्भालने के काम करती हैं. उस काम की कुल कीमत देश की जीडीपी का 3.1 फीसद है. GDP का मतलब साल भर में देश में जितना कुछ बना, उसकी टोटल कीमत. मने देश की कुल कमाई बिना किसी इधर-उधर के जोड़-घटाव के. भारत के बजट में हेल्थ पर इतना खर्च नहीं होता जितने पैसों की यहां बात हो रही है. ये जो काम है  इसकी कोई पहचान नहीं है. कोई तारीफ नहीं होती उस बात की. इसी रिपोर्ट में कई ऐसी बातें भी सामने आईं जिनको देखकर खून खौलना चाहिए. 

lady-2408609_1920-750x500_012119074359.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

लेकिन नहीं खौलता. क्योंकि हमारे वहां वो कहते हैं न, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः. बस कह दिया तो किसी और बात की ज़रूरत कहां रह जाती है. कुछ आंकड़े खुद ही देख लीजिए, इसी रिपोर्ट से :

41 फीसद लोग ये मानते हैं कि अगर औरत घर के मर्दों के लिए खाना ना बनाए तो उसे पीट देना ठीक  होगा.

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः

36 फीसद लोगों ने ये माना कि अगर औरत घर में खुद पर निर्भर या बीमार को थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दे तो उसे पीटना ठीक रहेगा.

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः

42 फीसद लोगों ने कहा कि अगर औरत घर के लिए पानी या लकड़ी नहीं ला पाई तो उसे पीटना ठीक होगा.

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः

54 फीसद लोगों ने कहा कि अगर औरत बिना पूछे घर से बाहर चली गई तो उसे पीटना जायज़ है.

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः 

sewing-machine-606435_1920-750x500_012119074558.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

ये रिपोर्ट बताती है कि

1. किस तरह शहर में रहने वाली औरतें घर पर पांच घंटे से भी ज्यादा का काम करती हैं जिसके उन्हें पैसे नहीं मिलते.

2. गांव की औरतों का आंकड़ा भी इतने के ही आस-पास है, कुछ मिनट कम के अंतर से.

3. सही-सही देखें तो ये कि शहर की औरतें सवा पांच घंटे प्रतिदिन ऐसे कामों पर खर्च करती हैं जिनके लिए उनको कोई रिकग्निशन नहीं मिलता. कोई पैसे नहीं मिलते.

4. गांव की औरतें  पौने छह घंटे खर्चती हैं इन कामों पर.

5. मर्द?  पूरे दिन में सिर्फ 29 और 32 मिनट क्रमशः शहरी और गंवई इलाकों में. इतनी देर में कौन बनेगा करोड़पति का एक एपिसोड तक ख़त्म नहीं होता. 

woman-701050_1920-750x500_012119074626.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

लोग कहेंगे. घर-बार के काम के कोई पैसे लेता है? मां अपने बच्चों के लिए खाना पकाने को पैसे लेगी? घर-बार की सफाई करने के पैसे लेगी? प्रेम से ना कर देगी? उसकी जिम्मेदारी ना है? मरद कमावै है बाहर, औरत घर संभाले है. नहीं?

नहीं.

बात सिर्फ घर संभालने की होती तो फिर भी ठीक था. घर पर किये जाए वाले कामों को अगर किसी मेड से या हाउस हेल्प से करवाया जाए, तो उसके कितने पैसे देने पड़ जाएंगे आपको? घर पर रहकर सारे काम देखने वाली कोई भी डोमेस्टिक हेल्प महीने के 15 हजार से कम नहीं लेती. झाड़ू-पोंछा करना या बर्तन करना कौन प्यार की ऐसी निशानी हैं कि पुरुष उसमें हाथ नहीं बंटा सकते? ओह, उनकी मर्दानगी पर चोट जो लग जाती है. वो सारे काम घर की औरतें कर रही हैं इसलिए उसके पैसे दबा कर नवाब बनना आसान है. आसान इसलिए भी होता है क्योंकि बचपन से इसे घुट्टी की तरह पिला दिया जाता है लड़कियों को. कि वो घर का ध्यान रखने के लिए बनी हैं. इसके बदले में कुछ भी मांगना उनको स्वार्थी बनाएगा. वो घर की लक्ष्मी हैं. इसलिए वो झाड़ू-पोंछा-बर्तन करेंगी. फिर पति की झिड़की खायेंगी ख़ुदा न खास्ता अगर कुछ अपने लिए मांग लिया तो. बाहर जाकर कमा क्यों नहीं लेतीं. 

woman-1824150_1920-750x500_012119074643.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

क्या डर है कमाने में? ऐसा तो है नहीं कि आपको पुरुषों से कम पैसे मिलेंगे.

ओह नो वेट. 34 फीसद कम मिलेंगे. पर मिलेंगे तो सही. कर क्यों नहीं लेतीं काम? ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? ऑफिस में घूरा जाएगा. यौन शोषण करने की कोशिश की जाएगी. घर परिवार में लूज कैरेक्टर कहा जाएगा. रास्ते में आते जाते हुए कोई छाती दबा देगा. कमर पे चिकोटी काट लेगा. जानबूझकर बुली करने की कोशिश की जाएगी. घर के भी सारे काम करने की एक्सपेक्टेशन रखी जाएगी. इससे ज्यादा तो क्या ही होगा?

अपने पैरों पर खड़े होने के लिए इतना नहीं कर सकतीं तो शिकायत का हक़ किसने दिया है आपको?

बाकी पता तो आपको होगा ही....

यत्र नार्यस्तु......

indian-woman-416811_1920-750x500_012119074706.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

हमारी मत सुनिए. आपकी नज़र में हम तो इन्टरनेट पर बकैती करने वाली लड़कियां हैं. आपकी नज़र में हमारी औकात वैसे भी इतनी नहीं है कि आप हमारी रेस्पेक्ट करें. कमेन्ट सेक्शन से ये सब पता चलता रहता है. अपने घर की मम्मियों, चाचियों, मामियों पर तो भरोसा करेंगे? वो जिन्होंने आपके बचपन से लेकर आपके ऑफिस जाने तक बिला नागा आपका टिफिन पैक किया है. आपके कपड़े धोए हैं. उनसे बात की हमने.

मुंबई के भायंदर की श्रीमती अनीता वैष्णव कहती हैं,

‘अगर चार दिन भी हाउसवाइफ छुट्टी मांगे तो घरवालों को ऑब्जेक्शन हो जाती है कि घर का कैसे होगा. तब उनको पता चलता है. वैसे इसकी कोई वैल्यू नहीं है. मुझे तो कोई अगर ऐसा बोलता है तो मैं सीधे पेपर पेन लेकर बैठ जाती है कि जोड़ लो टोटल मेरे पगार का. आपको पता चल जाएगा कि मैं कितना बचा रही हूं इस घर में. बच्चों को देखना, पति को देखना, कोई गेस्ट्स आए गए उनको हैंडल करना, कोई ओकेजन, फंक्शन. सबका हिसाब जोड़ दीजिए तो आपको पता चल जाएगा. एक हाउसवाइफ का काम एक फैक्ट्री संभालने जैसा होता है. मालिक को पता होता है कि कैसे हैंडल करना है हर जगह पे. हाउसवाइफ का भी यही काम है’. 

women-2336828_1920-750x500_012119074743.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

छपरा की श्रीमती दिव्या सिंह कहती हैं,

‘कोई रिकग्नाइज नहीं करता है हमारे काम को. हमारे काम का तो कोई वैल्यू ही नहीं है. लोग कहेंगे कि अपने ही बच्चों को खाना बना के खिला रहे हैं तो उसका पैसा क्या लेना, या घर का केयर कर रहे हैं तो उसका पैसा क्या लेना. अगर हम किसी को हायर करेंगे तो हम अपने हिसाब से उसको पैसा देंगे. वही काम हम खुद करेंगे तो कोई हमको नहीं देगा. हम लोग दिमाग से बंध गए हैं’. 

woman-262498_1920-750x500_012119074803.jpgसांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे

ग़ाज़ियाबाद की श्रीमती अर्चना शर्मा कहती हैं,

‘हसबैंड कभी जोर नहीं डालते काम के लिए. कभी तबियत ठीक नहीं होती तो खुद कहते हैं कि रहने दो.  मैं तो इसलिए नहीं रखती किसी और को काम करने के लिए क्योंकि मुझे खुद ही पसंद नहीं आता काम. अगर बीवी कुछ खरीदती है तो हसबैंड ही पैसे देते है न. हमने तो इसके लिए कभी ताने झेले नहीं. सब चीज खुद ही लाकर देते हैं. कभी कुछ मांगने पर भी मना नहीं हुआ. मेरे बगल में ही मेरी देवरानी है. उन भैय्या की भी बड़ी अच्छी आदत है. किसी चीज़ की मना नहीं है. कभी पूछते नहीं कि पैसों की क्या ज़रूरत है’.

थोड़ा ठहरकर एक बार और याद करिए.

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः 

 

 

 

 

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