क्या है वो 'सोशल ऑडिट', जिसने बिहार में बच्चियों के रेप को सामने ला नेताओं की बखिया उधेड़ दी

34 बच्चियों के रेप की खबर आई, उनके प्राइवेट पार्ट्स को चोटिल किया गया था.

हाल में ही आपने अखबारों में पढ़ा होगा और चैनलों पर देखा होगा कि मुजफ्फरपुर से लेकर देवरिया तक के शेल्टर होम्स यानी आश्रय गृह से बच्चियों के रेप और उनके शोषण के मामले सामने आ रहे हैं. फरवरी में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने इस की जांच करके रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग को दी थी. अब उसकी डीटेल्स बाहर आ रही हैं.

अभी तक मुजफ्फरपुर के बालिका गृह की 34 बच्चियों से रेप की पुष्टि हो चुकी है. इससे भी भयावह बात ये है कि ये नंबर सिर्फ उन लड़कियों का है जिनकी जांच की जा सकी. समय के साथ कई लड़कियां इस शेल्टर होम में आईं और गईं, उन सभी की जांच हो भी नहीं पाई है. 

सबसे हाल में जो खबर चल रही है उसके मुताबिक़ वहां के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर ने शेल्टर होम में अपने खुद के कानून बना रखे थे.  जो लड़की उन नियमों को नहीं मानती थी, उसे सजा देने के लिए उसके प्राइवेट अंगों पर चोट की जाती थी, यही नहीं, बिहार के बाल अधिकार आयोंग की अध्यक्ष एच कौर ने भी कहा कि पिछले साल वो उस जगह के दौरे पर गई थीं और उन्होंने उस शेल्टर होम को खाली कराने की बात भी कही थी.

इस मुद्दे को लेकर लोगों के बीच भारी गुस्सा है. सांकेतिक इमेज: पीटीआई इस मुद्दे को लेकर लोगों के बीच भारी गुस्सा है. सांकेतिक इमेज: पीटीआई

इन शेल्टर होम में रह रही लड़कियों के पास कोई उपाय अक्सर नहीं होता. या तो ये अपराध करके भागी हुई होती हैं या फिर घरवालों द्वारा छोड़ दी गई. कई खोई लड़कियां भी होती हैं जिनके घर का अता-पता ही नहीं होता. कमोबेश ये कि ऐसी हालत में लड़कियां अपने आश्रय देने वाले की दया पर निर्भर होती हैं. इसी का फायदा उठा कर ब्रजेश ठाकुर और उस जैसे कई लोगों ने इन शेल्टर होम्स में रहने वाली लड़कियों का यौन शोषण करते और करवाते. यही नहीं, उनके साथ गया-बीता व्यवहार करते.

इस मामले में मोड़ तब आया जब एक लड़की ने खुलासा किया कि एक हत्या भी हुई है शेल्टर होम में. फोटो: पीटीआई इस मामले में मोड़ तब आया जब एक लड़की ने खुलासा किया कि एक हत्या भी हुई है शेल्टर होम में. फोटो: पीटीआई

इन सबको सामने ले कर आया सोशल ऑडिट.

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज एक कॉलेज है जहां सामाजिक विज्ञान यानि सोशल साइंसेज से जुड़े विषयों की पढ़ाई होती है. वहां के ही लोगों ने ये सोशल ऑडिट किया.

सोशल ऑडिट क्या होता है?

सरकार से पैसे या छूट पाने वाले संस्थानों को या सरकार की योजनाओं के जमीनी स्तर पर असर को जांचने के लिए एजेंसियां, या गैर सरकारी संगठन इस बात की ज़िम्मेदारी उठाते हैं. वो कागजात देखते भालते हैं, जमीन पर जाकर ग्राउंड रिपोर्ट लेते हैं, इससे जुड़े लोगों से बातचीत करते हैं, एकाउंट्स/फाइनेंस चेक करते हैं. फिर इन सबकी रिपोर्ट सम्बंधित विभाग को जमा करते हैं. जैसे मुजफ्फरपुर मामले में रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग को जमा हुई थी. फिर इस रिपोर्ट का रिव्यू होता है. महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट के तहत जहां पर भी ये योजना चल रही है, उसका भी समय-समय पर सोशल ऑडिट किया जाता रहता है. जब सरकार ये कहती है कि उसने इस योजना पर इतने पैसे खर्च किए. तो आरटीआई लगाकर ये संगठन या लोगों का समूह ये पता करता है कि आखिर कितने पैसे खर्च हुए, कहां हुए, जैसे कहे गए वैसे हुए भी या नहीं.

शेल्टर होम की सच्चाई सामने लाने में TISS की टीम कोशिश का बहुत बड़ा हाथ था. उसी ने सोशल ऑडिट किया था. फोटो: पीटीआई शेल्टर होम की सच्चाई सामने लाने में TISS की टीम कोशिश का बहुत बड़ा हाथ था. उसी ने सोशल ऑडिट किया था. फोटो: पीटीआई

इस पूरे मामले में भी यही हुआ जिस वजह से ये पूरा मामला बाहर आया. मुजफ्फरपुर के लोकल अधिकारियों ने TISS की टीम ‘कोशिश’ से संपर्क किया और उन्हें ये ज़िम्मेदारी दी कि वो इस शेल्टर होम का सोशल ऑडिट करें. टीम के लोगों ने बच्चियों से बात की. वहां के केयरटेकर्स से बात की. हिसाब-किताब देखा. रिपोट सौंपी.

इस के बाद जब इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई तो एक लड़की ने ये बात कही कि एक लड़की का रेप करके उसे दफना दिया गया था. इस बात पर मीडिया का ध्यान गया, और फिर ये नेशनल इम्पोर्टेंस वाली स्टोरी बन गई. मेघालय ने हाल में ही सोशल ऑडिट एक्ट पास किया है. ऐसा करने वाला वो भारत का पहला राज्य बन गया है.

 

 

 

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