40 यौन शोषण से पीड़ित बच्चियों के लिए लड़ती इस औरत ने जो दिन देखे, कोई न देखे

अपनी नौकरी से हाथ धोया, सड़कों पर सोयीं.

सरवत फ़ातिमा सरवत फ़ातिमा
अगस्त 17, 2018
मामला मुंबई के एक स्कूल का है. फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर

मुंबई में एक स्कूल है. उस स्कूल की प्रिंसिपल ने पांच साल कानून की लड़ाई लड़ी. अपने ही स्कूल के एक टीचर के ख़िलाफ़. टीचर ने अपने ही स्टूडेंट्स का यौन शोषण किया था. उसने उस स्कूल की 40 लड़कियों का यौन शोषण किया. 2013 में प्रिंसिपल ने उस टीचर का भंडाफोड़ किया. पर न्याय पाने में बच्चियों और प्रिंसिपल को पांच साल लग गए. 13 अगस्त को जाकर उस टीचर को तीन साल जेल की सज़ा सुनाई गई. फ़ैसला पोक्सो कोर्ट ने सुनाया.

एक अंग्रेजी वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में प्रिंसिपल कहती हैं:

“मैंने पोक्सो एक्ट के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी. पर स्कूल मैनेजमेंट उस टीचर को बचाना चाहता था और मेरे ख़िलाफ़ था. अप्रैल 2013 में मेरी तीन स्टूडेंट्स मेरे पास आईं. उन्होंने बताया कि उनके मैथ्स टीचर उनको ग़लत तरीके से छूते हैं और पोर्न विडियो भी भेजते हैं. दिसंबर में उसी क्लास की 40 लड़कियों ने वही शिकायत की. उनको थक-हारकर अपनी बेंच पर पानी गिराना पड़ता था. या बेंच पर बैग रखना पड़ता था. वो इसलिए ताकि टीचर उनके बगल में न बैठे.”

प्रिंसिपल को अपने स्टूडेंट्स पर यकीन था. इसलिए मैनेजमेंट की नाराज़गी के बावजूद उन्होंने शिकायत दर्ज करवाई. यहां तक की मैनेजमेंट ने प्रिंसिपल को जुलाई 2014 में उनकी पोस्ट से भी हटा दिया था. जबकि उस टीचर को वापस नौकरी पर बुला लिया था. नौकरी जाने की वजह से प्रिंसिपल को अपने पुराने स्टूडेंट्स से मदद मांगनी पड़ी. क्योंकि सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी इसलिए उनको दिल्ली में रहना पड़ता था. पैसे थे नहीं. इसलिए वो होटल में नहीं रुक पातीं. रात बिताने के लिए गुरूद्वारे और चर्च में रहतीं.

ये ऐसे ही लोगों की वजह से है कि लड़कियां स्कूल में भी सुरक्षित महसूस नहीं करतीं. फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर ये ऐसे ही लोगों की वजह से है कि लड़कियां स्कूल में भी सुरक्षित महसूस नहीं करतीं. फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर

उनकी कोशिश से एक NGO ने उनकी मदद की. उसका नाम था ‘मास इंडिया’. ‘द स्कूल्स ट्रिब्यूनल’ और बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी बात सुनी. ये माना कि उनको नौकरी से निकालना गलत था. पर उनकी सबसे बड़ी जीत वो नहीं थी. जीत थी, अपने स्टूडेंट्स के लिए इंसाफ पाना.

“मेरा काम था ये साबित करना कि लड़कियां झूठ नहीं बोल रही हैं. और उनकी बातें कोर्ट ख़ारिज न कर दे. जो लोग बच्चियों के साथ ऐसा करते हैं, उनको स्कूल में रहने का कोई हक नहीं है. टीचर्स का काम बच्चों को सही रास्ता दिखाना होता है. पर उसने टीचर्स की छवि ख़राब कर दी.”

2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला सुनाया कि प्रिंसिपल को उनकी पुरानी नौकरी वापस दी जाए. साथ ही जो भी तन्ख्वाह इतने सालों तक रोकी गई है वो सब उनको वापस दी जाए. इन फैसलों के बाद उनके और स्कूल मैनेजमेंट के बीच काफ़ी टेंशन चल रही है. पर वो हिम्मत हारने वालों में से नहीं हैं.

दोषी टीचर को तीन साल की सज़ा सुनाई गई है. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay दोषी टीचर को तीन साल की सज़ा सुनाई गई है. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay

मुंबई मिरर नाम के एक अखबार ने दोनों पहलुओं को जानने की कोशिश की. इसलिए उन्होंने उस टीचर से बात की. उसने क्या कहा आप ख़ुद पढ़ लीजिए:

“किसी औरत के बगल में बैठना और उसकी जेब या पेंट पर हाथ रखना कब से एक जुर्म बन गया? हम बसों और ट्रेनों में औरतों के बगल में बैठते हैं. प्रिंसिपल ने दावा किया था कि 39 स्टूडेंट्स ने मेरे ख़िलाफ़ शिकायत की थी. पर FIR में उन्होंने बस तीन ही नाम दिए. मुझे स्कूल ने अवार्ड दिए हैं और क्लीन चिट भी दी है. इसलिए मैं लड़ता रहूंगा.”

आजकल हर दूसरे दिन ख़बर आती है कि फलाने-फलाने स्कूल में बच्ची के साथ रेप हो गया. और हम सोचते हैं कि ऐसा क्यों होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम बच्चियों की सेफ्टी को सीरियसली नहीं लेते. जिस टीचर पर 40 बच्चियों ने यौन शोषण का आरोप लगाया था, उस टीचर को स्कूल वापस कैसे बुला सकता है?

ये ऐसे ही लोगों की वजह से है कि लड़कियां स्कूल में भी सुरक्षित महसूस नहीं करतीं.

 

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