क्या है 'पीरियड वाला कप' जिसे केरल सरकार सैनिटरी पैड की जगह बांट रही है

क्या हैं इसके फायदे

पीरियड्स. मासिक धर्म. मेनस्ट्रुएशन. महीना होना.

पिछले कुछ दिनों से पीरियड पर बहुत बात हो रही है. पैडमैन नाम की फिल्म भी आई. जिसमें बात हुई कि किस तरह से पैड्स का इस्तेमाल करना आज भी देश की एक बहुत बड़ी महिला आबादी के लिए मुश्किल है. इसकी वजह से उनकी रोज की जिंदगी में कितनी दिक्कत आती है. समाज का टैबू तो है ही. फिर भी पहले के मुताबिक़ सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल पर जोर दिया जाने लगा है पिछले एक दशक में. मीडियम में छपी रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल लगभग 43.2 करोड़ सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल होते और फेंके जाते हैं. 2015-16 का जो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे हुआ था, उसकी रिपोर्ट के मुताबिक़ 48.5 फीसद गांव की औरतें, 77.5 फीसद शहरी औरतें, और एवरेज तौर पर 57.6 फीसद महिलाएं सेनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं.  

naps-750x500_062019062627.jpgपैड्स का इस्तेमाल करने के लिए महिलाओं को बढ़ावा दिया तो जा रहा है, लेकिन क्या आने वाले टाइम में इसके साइड इफेक्ट्स से लड़ पाएंगे हम?

लेकिन एक नई बहस पिछले कुछ सालों से मेनस्ट्रीम में आने की कोशिश में लगी है, और अब नई सभ्यता की तरह पहाड़ की चोटियों से धीरे-धीरे नीचे उतर आई है. जिन लोगों के पास इन्टरनेट है, और जो मेट्रो शहरों में रहते हैं, उनको तो पता चल ही गया होगा. बहस है ये कि आखिर जिन सैनिटरी नैपकिंस को बेचा जा रहा है, उनके खतरों पर बात कौन करेगा. इसपर डीटेल में जाएं तो बहुत झोल होगा. सीधी-सीधी बात ये है कि सैनिटरी नैपकिन में इस्तेमाल होने वाले सिंथेटिक सामान आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं. यही नहीं, इन को पर्यावरण के लिए खतरा माना जाता है. क्योंकि ये रीसाइकिल नहीं होते, और बर्बाद होने में बहुत समय लेते हैं. इनको डीकम्पोज होने में 500 से 800 साल लगते हैं.

तो उपाय क्या है? उपाय जिस पर बात हो रही है, वो हैं मेंस्ट्रुअल कप्स.

menstrual-cup-750x500_062019062702.jpgऐसे दिखते हैं ये कप्स. डिजाइन में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है, लेकिन शेप यही रहती है.

केरल में पिछले साल जब बाढ़ आई थी, तब हज़ारों औरतें रिलीफ कैम्प्स में रही थीं. उन्होंने पैड्स भी इस्तेमाल किए. अब इतने सारे पैड्स का क्या किया जाए, कैसे इनको ठिकाने लगाया जाए. इस पर अधिकारियों ने सोचा कि आगे ऐसी सिचुएशन हो तो क्या करें. सोच-विचार हुआ और जवाब मिला-  मेंस्ट्रुअल कप्स. शनिवार को थॉमस आइसैक ने अलप्पुझा में थिन्कल मेंस्ट्रुअल कप प्रोजेक्ट लॉन्च किया. इसके तहत 5000 मेंस्ट्रुअल कप फ्री में बांटे जाएंगे. थिन्कल शब्द का मतलब मलयालम में चांद होता है.

ये मेंस्ट्रुअल कप्स क्या होते हैं?

सिलिकॉन एक तरह की रबर जैसी चीज होती है. जो सिलिकॉन शरीर के लिए सेफ होता है, उससे बनते हैं मेंस्ट्रुअल कप्स.

tampons-etc-750x500_062019063025.jpgपीरियड से जुड़े दूसरे प्रोडक्ट्स की तरह ही है मेंस्ट्रुअल कप

इस्तेमाल कैसे करते हैं?

बहुत आसान होता है. कप की चौड़ी तरफ का जो हिस्सा होता है उसे फोल्ड करके दोहरा कर लें लम्बी ओर से. फिर उसे वजाइना के भीतर रखें. अन्दर की तरफ धकेलें. एक-दो बार की कोशिश के बाद आपको समझ आ जाएगा कि कब वो सेट हो गया है. अगर आपको मेंस्ट्रुअल कप्स से डर लग रहा है, तो पहले टैम्पोन से प्रैक्टिस कर लें. इससे आपको अपनी बॉडी का अंदाजा हो जाएगा कि आप को किस तरह इन्सर्ट करना है टैम्पोन या मेंस्ट्रुअल कप.

शुरू-शुरू में जब तक आपको आदत न हो तब तक हो सकता है कि आपको ब्लड लीक होने की परेशानी हो. ऐसे में आप पैंटीलाइनर या कोई भी पतला पैड इस्तेमाल कर सकती हैं. जिससे आपको चिंता न हो. एकाध महीने में जब आपको आदत हो जाए फिर आप निश्चिन्त होकर इसका इस्तेमाल कर सकती हैं.

p-liner-750x500_062019063507.jpgपैंटीलाइनर एक तरह का बेहद पतला पैड होता है जो लीक्स सोखने के काम आता है

छह से सात घंटे तक अमूमन इन्हें पहने रहा जा सकता है. कुछ मेंस्ट्रुअल कप्स 12 घंटे भी चलते हैं, लेकिन अधिकतर 6 से 7 घंटे में खाली करने होते हैं.

काम कैसे करते हैं ये?

मेंस्ट्रुअल कप्स आपके यूट्रस से निकलने वाला पीरियड ब्लड अपने में इकट्ठा कर लेते हैं. इनको आप हर छह-सात घंटे बाद वाशरूम में ले जाकर साफ़ पानी से धो लीजिए. उसके बाद इन्हें दुबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. पीरियड ख़त्म होने के बाद इन्हें उबाल कर डिसइन्फेक्ट किया जाता है. और वापस रख दिया जाता है.  

menstual-cup-boiling-750x500_062019062832.jpgइन कप्स को स्टरलाइज करके अगले महीने दुबारा पीरियड आने पर बेफिक्र इस्तेमाल किया जा सकता है.

ये बेहतर कैसे हैं?

ये इसलिए बेहतर है क्योंकि एक तो आपका पीरियड का खून शरीर से बाहर नहीं आता. कप इसे अंदर ही रोक लेता है. अपनी सुविधा से आप इसे खाली कर सकती हैं, आपको घबराने की ज़रूरत नहीं है. लम्बे सफर में आपको बार बार पैड चेंज नहीं करने होंगे. एक कप अम तौर पर दस साल तक टिक सकता है अगर उसे सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो. इसे पहनकर आप स्विमिंग भी कर सकती हैं क्योंकि खून के लीक होने के चांसेज कम होते हैं.

बी आर्टसी (Be Artsy) नाम का एक NGO है जिसने वेस्ट नेपाल में छाउपड़ी की प्रथा की वजह से नुकसान झेल रही लड़कियों को मेंसट्रुअल कप्स बांटे. छाउपड़ी वो प्रथा है ज्सिमें पीरियड के दौरान लड़की या महिला को घर से बाहर एक झोपड़ी में रहने को मजबूर कर दिया जाता है. वेस्ट नेपाल में इसे काफी कड़ाई से फॉलो किया जाता है. वहां से कई ऐसी खबरें भी आती हैं कि इस प्रथा की वजह से लड़कियों और महिलाओं की मौत भी हो गई. इसे रोकने के लिए एक्सपेरिमेंट किया गया मेंस्ट्रुअल कप्स के साथ. साल भर में अधिकतर लड़कियों ने कहा कि चूंकि उनके शरीर से खून बाहर नहीं आता तो उनके घरवाले उनको साफ़ सुथरा मानते हैं और घर के अन्दर सोने देते हैं. चूंकि मेंसट्रुअल कप्स के इस्तेमाल में कुछ बार-बार फेंकना नहीं पड़ता और शरीर से खून बाहर नहीं आता तो स्मेल की दिक्कत नहीं होती. इन सभी वजहों से लड़कियों के स्कूल जाने में दिक्कतें घटीं और उनको अपने ही घर में सहजता से रहना संभव हुआ.

cloth-pad-750x500_062019062921.jpgकपड़ों वाले पैड पर भी बातचीत बढ़ रही है. कई कम्पनियां अब कपड़ों से बने रीयूजेबल पैड भी बेच रही हैं.

अपने शरीर की सेहत और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए मेंस्ट्रुअल कप्स को बढ़ावा दिया जा रहा है. पांच सौ से सात सौ रुपए में बेहद अच्छे मेंस्ट्रुअल कप्स मिल जाएंगे, ऑनलाइन भी मंगवाए जा सकते हैं. एक बार में देने के लिए शायद ये पैसे ज्यादा  लगें. लेकिन सोचिए हर महीने पैड का एक बड़ा पैकेट खरीदना, स्मेल झेलना, रैशेज से परेशान होना, ये ज्यादा सही है, या फिर एक बार में अच्छी कीमत देकर कम से कम आठ दस साल के लिए निश्चिन्त हो जाना?

 

 

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