मिलिए असम की पहली ट्रांसजेंडर जज स्वाति बरुआ से
स्वाति ने अपने परिवारवालों से लड़कर लिंग परिवर्तन करवाया था.
2012 की बात है. स्वाति बरुआ अपने घरवालों से लड़ रही थीं. घर की चार दीवारी में नहीं. कोर्ट में. स्वाति दरअसल एक लड़का पैदा हुई थीं. पर वो हमेशा से एक औरत जैसा महसूस करती थीं. एक दिन उन्होंने एक फ़ैसला लिया. औरत बनने का.
वो सेक्स चेंज ऑपरेशन कराना चाहती थीं. पर उनके परिवारवाले इसके सख्त ख़िलाफ़ थे. इसलिए उनको कोर्ट की मदद लेनी पड़ी. उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. और बाद में अपना नाम बदल कर स्वाति रख लिया.
स्वाति इतने साल बाद आज फिर सुर्ख़ियों में हैं. वो असम की पहली ट्रांसजेंडर जज बनी हैं. और देश की तीसरी ट्रांसजेंडर जज. उनसे पहले जोयिता मंडल और विद्या काम्बले भी बतौर जज नियुक्त हो चुकी हैं. जोयिता बंगाल से है और विद्या महाराष्ट्र से. स्वाति एक ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट हैं. काफ़ी समय से एलजीबीटी कम्युनिटी के हक़ के लिए लड़ रही हैं.
गुवाहाटी की रहने वाली स्वाति, शहर के नेशनल लोक अदालत में आए केसेस देखेंगीं. उनकी नियुक्ती कामरूप 'डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस ऑथोरिटी' ने की है. वो उन 20 जजों में से एक हैं जो लोक अदालत में केसेस निपटाएंगे.
स्वाति बहुत ख़ुश हैं. एक अंग्रेजी वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा:
“हम बाकी लोगों की तरह ही हैं. पर फिर भी हमें भीड़ में बेइज्ज़त किया जाता है. हम पर हसा जाता है. मुझे उम्मीद है मेरी नियुक्ति के बाद लोगों को समझ में आएंगा कि हम लोग अछूत नहीं हैं.”
Guwahati: Swati B Baruah becomes the first transgender judge in Assam. She has been appointed as a judge to mediate cases in a Lok Adalat, says, "There's a lot of discrimination prevailing in society&steps like these will set landmark to accept transgenders as part of society." pic.twitter.com/SiUYmknYh4
— ANI (@ANI) July 14, 2018
15 अप्रैल, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स को तीसरे जेंडर के तौर पर स्वीकारा था. इसका मतलब था कि उनको पढ़ाई और नौकरी, दोनों में बराबर हिस्सा मिलना चाहिए. इसकी ज़िम्मेदारी कोर्ट ने सरकार को दी थी. इसके बाद राज्य सभा ने ‘राईट ऑफ़ ट्रांसजेंडर बिल’ पास कर दिया था. ख़ुशी की बात ये है कि ऐसा होने के बाद, ट्रांसजेंडर्स को अब नौकरियां मिल रही हैं. पुलिस फ़ोर्स में भी अब ट्रांसजेंडर्स की भरती होने लगी है. तमिल नाडू की रहने वाली पृथिका याशिनी और नजरिया पुलिस में भारती हो चुकी हैं.
स्वाति की नियुक्ति सिर्फ़ उनके लिए ख़ुशी की बात नहीं हैं. उन 5,000 ट्रांसजेनडर्स के लिए भी है जो असम में रहते हैं. अपनी कानूनी और सामाजिक दिक्कतों को सुलझाने के लिए इधर से उधर भागते रहते हैं. कम से कम अब उन्हें सहारा मिलेगा. अच्छी बात है.
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