एक चिट्ठी उन बच्चों के नाम जिन्होंने बोर्ड एग्जाम में टॉप नहीं किया

500 में से 380 नंबर लाने वाला बच्चा 500 में से 500 नंबर लाने वाले से कमतर क्यों माना जाता है.

बोर्ड एग्जाम्स के रिजल्ट आने शुरू हो गए हैं. सीबीएसई, आईसीएसई के नतीजे आ चुके हैं. साथ-साथ अलग-अलग स्टेट बोर्ड्स ने रिजल्ट जारी करना शुरू कर दिया है. चुनावी सरगर्मी के बीच स्मृति ईरानी और प्रियंका चतुर्वेदी जैसे नेताओं ने अपने बच्चों के रिजल्ट पर नजर रखा. और उनके 80 प्लस, 90 प्लस मार्क्स आए तो ट्विटर पर उन्होंने अपनी खुशी जाहिर भी की. इस बीच एक ऐसी मां भी हैं जिन्होंने अपने बेटे के रिजल्ट आने के बाद पोस्ट लिखा है वह चर्चा में है.

वंदना सूफिया कटोच नाम की इस महिला के बेटे ने दसवीं बोर्ड में 60 परसेंट हासिल किए हैं.  वंदना लिखती हैं कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है. उन्होंने अपने बेटे की मेहनत की सराहना की है.

उन्होंने लिखा:

मेरे बेटे ने दसवीं बोर्ड में 60 परसेंट हासिल किए हैं. मैं सुपर प्राउड हूं. हां, उसके 90 प्रतिशत नहीं आए, लेकिन इस बात से यह नहीं बदल जाएगा कि मैं उसके लिए क्या महसूस करती हूं. क्योंकि मैंने उसे कुछ विषयों से जूझते हुए देखा है. कई बार वह इतना हताश हो जाता था कि उसे लगता कि वह सबकुछ छोड़ दे लेकिन फिर वह अपनी सारी हिम्मत जुटाता और आखिर के डेढ़ महीने में उसने खूब मेहनत की और एग्जाम दिया. आमेर, तुम और तुम जैसे बच्चों से मैं कहना चाहती हूं कि मछली पेड़ पर नहीं चढ़ सकती है. अपना रास्ता चुनना मुश्किल है. मेरे बच्चे, ये एक बहुत बड़ा समुद्र है. अपने अंदर की अच्छाई, ललक और समझदारी को बनाए रखो. और हां अपने खतरनाक सेंस ऑफ ह्यूमर को भी.

उनका ये पोस्ट कुछ ही घंटों के अंदर वायरल हो गया.

हर बच्चा टॉपर नहीं होताः

रिजल्ट जारी होने के सिलसिले में हमने देखा कि कुछ टॉपर्स के पूरे 100 परसेंट आए. तो कुछ ने 500 में से 499 नंबर बना लिए. टॉप करने वाले ये बच्चे न्यूज पेपर, चैनल और वेबसाइट्स पर छाए हुए हैं. उनकी कहानियां. उनके स्ट्रगल. उनके सपनों पर बात हो रही है. लेकिन हर बच्चा तो टॉपर नहीं होता. जाहिर है कुछ के 40,50,60, 70 और 80 के रेंज में भी मार्क्स आए ही होंगे. बच्चों में टॉप करने का प्रेशर इतना ज्यादा है कि कई बार वे खराब रिजल्ट आने के डर से सुसाइड कर लेते हैं. और कई बच्चे ऐसे होते हैं जो दोस्तों का खुद से अधिक नंबर आने पर डिप्रेशन में चले जाते हैं. मम्मी-पापा का प्रेशर तो अलग से होता ही है.

वंदना सूफियाका पोस्ट एक आइडियल पोस्ट है. हमारे देश में उनकी तरह सोचने वाले पेरेंट्स का होना बेहद जरूरी है. पेरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों की मेहनत की सराहना करें. न कि परसेंट के आधार पर उन्हें ताने दें. कम परसेंट हों या ज्यादा बच्चे को डांटने की बजाए उसकी सराहना करें. उसके भी सपने होंगे, उसने भी सोचा होगा कि वो बड़ा होकर क्या बनेगा. उससे उस पर बात करें.

क्योंकि यकीन मानें, 65 हो या 95. बोर्ड एग्जाम के नतीजे किसी को याद नहीं रहते. किसी को फर्क नहीं पड़ता कि आपके कितने मार्क्स हैं. मायने ये रखता है कि आपने अपनी जिंदगी में क्या हासिल किया. आपने जो कर रहे हैं उससे आप खुश हैं या नहीं. क्योंकि उम्र की तरह ही परसेंट भी सिर्फ नंबर ही तो हैं.

इसलिए नंबर का टेंशन नहीं लेने का. जरूरी ये है कि आप अपनी कोशिशों में ईमानदार रहो, जमकर मेहनत करो और जिंदगी के हर मोमेंट को एन्जॉय करो.

 

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