ममता बैनर्जी की पॉलिटिक्स अपनी जगह है, लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसी बातें करने वाले कितने घिनौने हैं
अगर ये पॉलिटिक्स है, तो इसपे लानत और सौ दफ़े लानत
कोलकाता में घमासान मचा हुआ है. टीवी नहीं देखते तो भी मालूम चल गया होगा आपको.
झटपट में मामला रहा ये:
तीन फरवरी को सीबीआई के 5 अफसरों की टीम कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर छापा मारने पहुंची. राजीव ने 2013 में शारदा चिटफंड घोटाले की एसआईटी जांच की अगुआई की थी. आरोप है कि उस जांच में सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई.
सीबीआई टीम और कोलकाता पुलिस के बीच कथित तौर पर हाथापाई हुई. पुलिस ने टीम को कमिश्नर बंगले में जाने से रोका, वारंट दिखाने को कहा. फिर पांच अफसरों को हिरासत में ले लिया. उन्हें शेक्सपियर सरणी थाने ले जाया गया. बाद में विवाद बढ़ने पर उनको छोड़ दिया गया. ममता बनर्जी ने सीबीआई के छापे का विरोध किया. मेट्रो चैनल स्टेशन के पास धरना शुरू कर दिया. 4 फरवरी की सुबह- सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. असल में सीबीआई ने राजीव कुमार के घर जो छापा मारा था, उसके पीछे सुप्रीम कोर्ट का मई, 2014 में दिया गया एक जांच आदेश है. एसआईटी जांच के बाद मई, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी.
सांकेतिक तस्वीर: ट्विटर
इसी आधार पर सीबीआई ने राजीव कुमार के घर छापा मारा था. इस हिसाब से ये गिरफ्तारी सीबीआई के काम में बाधा हुई. और सीबीआई के काम में बाधा को सुप्रीम कोर्ट के आदेश में अड़ंगा माना गया. यही दावा लेकर सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की. सीबीआई ने कहा टीम को जांच से रोककर सबूतों से छेड़छाड़ की जा रही है. सबूत नष्ट किए जा रहे हैं. इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने सीबीआई को 24 घंटे के अंदर ये सबूत देने को कहा कि सबूतों से छेड़छाड़ हुई है. साथ ही 5 फरवरी की सुबह 10.30 बजे मामले की सुनवाई लगा दी.
इसमें ओपिनियन ये चल रहा है, कि गलती ममता की या सीबीआई की. पॉलिटिक्स कौन खेल रहा है, और गलती किसकी है इस पर काफी देर तक बहस की जा सकती है. लेकिन वो हम नहीं करेंगे. क्योंकि मुद्दा कुछ और है.
पॉलिटिक्स से परे ममता बैनर्जी के ऊपर जो व्यक्तिगत टिप्पणियां चल रही हैं, उन को देख कर किसी भी सभ्य व्यक्ति का घिना जाना स्वाभाविक है.
ये देख लीजिए:
तस्वीर: ट्विटर
माना कि भई ममता बैनर्जी की पॉलिटिक्स आपके हिसाब से गलत है. ठीक है, आपको ऐसा लगना इस बात को दिखाता है कि आप सोचने समझने वाले इंसान हैं.डेमोक्रेसी में सबको ये हक़ होता है. ओपिनियन अलग होना ही तो खूबसूरती है इसकी. लेकिन ओपिनियन के नाम पर कुछ भी कचरा चेप रहे हैं तो दिक्कत तो होगी न बॉस. ममता की पॉलिटिक्स पर उनकी आलोचना करने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि किन पॉइंट्स पर हल्ला बोलने से उनकी कमी सामने आएगी. लेकिन जो लोग उनके महिला होने की वजह से उनके पीछे पड़े हैं, उनको सवाल करने पर कोई क्रेडिबल जवाब मिलेगा, इस बात की हमें उम्मीद कम ही है.
ममता बैनर्जी को डायन या चुड़ैल कहकर आप उनकी पॉलिटिक्स पर चोट नहीं कर रहे बंधु. अपना गलीज चेहरा दिखा रहे हैं. जिसे हर बार हर जगह देखा जा चुका है. यही शक्ल उनमें भी दिखाई देती है जो स्मृति ईरानी को गाय कहते हैं. प्रियंका गांधी के स्तनों पर मजाक बनाकर सोशल मीडिया पर चलाते हैं. अंगूरलता डेका की ‘हॉट फोटोज’ शेयर करते हैं.
इनकी आलोचना करने पर हम आपको कांग्रेस/बीजेपी/आम आदमी पार्टी के पैसे टिकाए हुए लोग लगते हैं. हमें इन भद्दी टिप्पणियों में आपके भीतर छुप कर बैठा स्त्रीद्वेषी नज़र आता है. वो आदमी जो अपने घर की औरतों के सम्मान की बात करके ‘बाहर’ की औरतों पर घिनौनी टिप्पणियां करता है. वही जहर सोशल मीडिया पर उगलता है.
ये तस्वीर बहुत शेयर हो रही है. कैप्शन है कि काश ममता को किसी ‘लड़के’ ने उस समय पसंद कर लिया होता. एक घर बर्बाद होता. एक राज्य नहीं. कहना क्या चाहते हैं?
तस्वीर: ट्विटर
- ममता तब ‘सुंदर’ थीं, तो उनको लड़का मिल जाता ? उनको घर बसा लेना चाहिए था?
- अगर ममता घर बसा लेतीं तो क्या पॉलिटिक्स में नहीं आतीं?
- अगर ममता पॉलिटिक्स में हैं, तो क्या उनको आपकी इच्छा के अनुसार ‘ब्यूटीफुल’ होना चाहिए था?
औरत कुछ बोले, आपके मन मुताबिक़ न बोले, तो उसे पागल कह देना आपकी पॉलिटिक्स है? ऐसी पॉलिटिक्स पर लानत और सौ दफ़े लानत.
- अगर एक महिला पॉलिटिक्स जॉइन कर लेती है, खुल कर बोलती है, तो क्या वो घर बर्बाद कर लेती है अपना? क्या यही टिप्पणी वसुंधरा राजे या स्मृति ईरानी पर की जाए तो क्या उसका विरोध नहीं होना चाहिए?
- अगर कोई तथाकथित रूप से ‘खूबसूरत’ स्त्री पॉलिटिक्स में आ भी जाती है, तो कौन सी उसकी इज्जत कर लेते हैं लोग. उसकी पूल में नहाती हुई फोटो, शराब पीती फोटो, सिगरेट फूंकती फोटो, उसके बॉयफ्रेंड की सीक्रेट फोटो, न जाने क्या-क्या शेयर किया जाता है सोशल मीडिया पर.
ममता के मामले में भी ये फोटो शेयर की गई. इसका क्या मतलब बनता है? किसी भी पॉलिटिशियन की कोई ऐसी तस्वीर क्यों ही शेयर करेगा?
- सुषमा स्वराज की भी तभी तक इज्जत की गई जब तक उन्होंने पार्टी लाइन से परे पैर नहीं रखा. वीज़ा कांड में उनको उनके ही समर्थकों ने बेहद भद्दी-भद्दी टिप्पणियों के साथ ट्रोल किया था.
- इससे ये साबित होता है कि पॉलिटिकल विरोध इन सभी मामलों में घास चरने चला जाता है. उस समय सिर्फ औरतों को चुड़ैल, जादूगरनी, कुलटा, रंडी, वेश्या, इस तरह के खिताब नवाजे जाते हैं.
क्योंकि कोई भी गाली औरत के लिए तब बड़ी होती है जिसमें उसके साथ किसी मर्द का आसरा नहीं होता. उसे पब्लिक प्रॉपर्टी मान लिया जाता है. ममता बैनर्जी की पॉलिटिक्स की आलोचना की आड़ में अपना स्त्रीद्वेष मत छुपाइए साहब.
सड़ांध यहां स्क्रीन के परे तक आती है.
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