उन लड़कों के नाम ख़त जिन्हें कभी किसी ने प्रेम पत्र नहीं लिखे

किसी ने नहीं बताया कि किसी लड़के से पूछना हो उसका नाम, तो उसे 'सागर जैसी आंखों वाला' कहा जा सकता है क्या

प्रेरणा प्रथम प्रेरणा प्रथम
अप्रैल 07, 2019

सुनो,

कल सुना, दोस्तों से कह रहे थे. तुम्हें इश्क में यकीन नहीं. फिर हंस दिए थे. झेंप कर. तुम्हारे दोस्तों ने नहीं देखा. मैंने देखा था.

क्यों कहा था?

सच में नहीं करते? या डर लगता है? मन चट गया है? बॉलीवुड वाला प्यार देख-देख कर? सही बात है. चटना भी चाहिए. मैं भी नहीं देखती. कोई मर जाता है, तब प्यार समझते हैं लोग. फिर रुलाते बैठ कर. तुमसे तो देखीं भी नहीं जातीं न ऐसी फिल्में. सबसे ज्यादा इनअप्रोप्रिएट समय पे हंस देते हो. इसलिए दोस्तों के साथ नहीं जाते न?

पता है मुझे. बहुत वन-साइडेड लगता है हर जगह सब कुछ. जैसे सब कुछ 2-D में चल रहा हो. गहराई है ही नहीं. आंखें गड़ा-गड़ा कर देखो तब भी ना दीखे. लड़के को प्यार हो जाता है, तो लड़की की तारीफ में कसीदे पढ़ देता है. इतने कि छठी क्लास से दसवीं क्लास तक के सप्रसंग व्याख्या वाले प्रश्न एक गाने से ही निकल जाएंगे. लड़की बस निहार देती है. कभी-कभी गा देती है. ज्यादा भरोसा करती है तो कंधे पर सिर रखकर रो देती है.

लड़कों से प्यार करने की रीत सिखाई ही नहीं जाती अपने यहां. इज्जत और शर्म को प्यार का बैरोमीटर बना छोड़ दिया जाता है. लड़की प्यार करेगी, तो सवाल नहीं करेगी. खाना खिलाएगी. मोज़े धो देगी. परिवार में झगड़ा होगी तो पति के पीछे जाकर छुप जाएगी.

किसी ने नहीं बताया कि किसी लड़के से पूछना हो उसका नाम, तो उसे ‘सागर जैसी आंखों वाला’ कहा जा सकता है क्या. क्या उसकी कलाई पर उंगलियां फिराते हुए उसे ये कहा जा सकता है, कि उसकी पेशानी पर पड़े निशान पर दुलार आता है? देखा तो नहीं. पर मन है कि ऐसा भी हो तो कितना प्यारा हो. नहीं?

जो दिखता है वो बड़ा सिलबिल सा प्यार है. पर यही बताया गया. इस वजह से डरते हो?

ये पेड़-पहाड़ चीर देने, चांद-तारे तोड़ लाने वाली बातें बहुत बकवास हैं. एकदम बकवास. जब कमसिन उम्र थी, तब भी इन पर हंसी आती थी. अब वो भी नहीं आती. प्यार बड़ा कॉम्प्लिकेटेड काम हो गया है लोगों की नज़र में. चार जोक तुमने भी देखे होंगे. लड़कियां खर्च बहुत कराती हैं. उफ़ महंगाई. हाय महंगाई. मुझे उम्मीद है तुम इग्नोर कर देते होगे उनको. सच्चाई के परे खालीपन नहीं होता. ठोस होता है वो. झूठ पतरे जैसा पतला होता है. बजता बहुत है. इसलिए सब सुन लेते हैं. तुम न, इयरफोन लगा लिया करो.

गली बॉय में एक सीन है, मालूम? उसमें न सफ़ीना और मुराद एक दूसरे से बोलते नहीं हैं बहुत ज्यादा. हाथों और आंखों से बात कर लेते हैं. बस में उनको बैठे हुए स्क्रीन पर देख रही थी. उंगलियां उलझाए, एक इयरफ़ोन शेयर करते हुए. अपनी याद आ गई. पर तब हम सिर्फ दोस्त थे. दोस्ती से परे कुछ भी नहीं था. सोचा भी नहीं. आज सोचा. लगा, बता दूं. शायद तुम वैसा फील नहीं करते होगे. जैसा रहे, मुझे चलेगा. क.. क.. क.. किरन वाला सीन नहीं होगा, डोंट वरी.  

यही दिक्कत हो जाती है कभी-कभी. प्यार जैसा हम ढूंढ़ते हैं, वैसा नहीं मिलता. तब नहीं मिलता. जिससे मांगते हैं उससे नहीं मिलता. और बिन मांगे मिलने वाली चीज़ की कद्र नहीं होती. मैंने भी नहीं की थी. तुमने भी नहीं की होगी. ऑप्शन वाली जेनेरेशन में होना अजीब सा लगता है. खाने के लिए 25 जगहें. पीने के लिए 35. प्यार करने के लिए रोज़ के 50 स्वाइप. बढ़िया है. सब कहते हैं खराब चीज़ है. खोखला लगता है. मैं तो कहती बढ़िया है. चुनो. धोखे खाओ. सीखो इंसान क्या चीज़ है. इंसानों में घर मत ढूंढो. नहीं मिलेंगे. कुछ चलते फिरते कुएं होंगे, कुछ खिड़कियां. एक इंसान किसी का घर नहीं हो सकता. ये हम समझते नहीं हैं.

छोड़ो न, क्या बोर करने बैठ गई मैं. तुमने अब तक पढ़ना छोड़ कर दो-तीन सिगरेटें फूंक डाली होंगी. चिट्ठी पे गिरी हों तो फूंक कर राख हटा देना. वो अमृता प्रीतम ने बड़ा प्यारा सा कुछ तो कहा था. हां, याद आ गया.

एक दर्द था

जो सिगरेट की तरह

मैंने चुपचाप पीया है

सिर्फ़ कुछ नज्में हैं -

जो सिगरेट से मैंने

राख की तरह झाड़ी है.  

तुम ऐसे तो ना झाड़ते होगे राख. टूट-टूट कर अपने आप गिरती रहती है. तुम्हारा ध्यान कहीं और होता. देखा है मैंने. कभी-कभी लगता है देखने के चक्कर में न, मेरा बोलना रह जाता है. मन ही मन पचहत्तर बातें बोल जाती हूं. फिर ध्यान आता कि कुछ नहीं कोने में खड़ी हूं बस. फोन निहार रही हूं. पर पता नहीं उस पर क्या है. घर आकर खुद को धौल जमाने की इच्छा होती. नालायक. बोलती क्यों नहीं. बोल लिया कर. जबान घिसती थोड़े न है.

नहीं होता.

भूल जाती हूं.

तुम्हारी कंजी आंखें और डिंपल कुछ सोचने ही नहीं देते. बोलने ही नहीं देते. मतलब अब इनके सामने कोई क्या ही बोलेगा. अ थिंग ऑफ ब्यूटी इज अ जॉय फॉरएवर. अंग्रेजी के कोई कवि लिख गए. नाम नहीं याद. गूगल ना करूंगी, चिट्ठी लिखने का फ्लो टूट जाएगा. तुम कर लेना गूगल. प्यारी कविता है. वही न, तुम हो. अ थिंग ऑफ ब्यूटी. हंसते हुए कोने से निकल जाते हो, कुछ सोचते हुए पेन इधर-उधर रख देते हो, फिर ढूंढते हुए परेशान हो जाते हो. कन्फ्यूज सी. धीमी-सी हंसी हंसते हो. फिर सर झुका लेते हो. मैं घूरती नहीं. लेकिन नज़र कभी-कभी मेरी बात नहीं सुनती.

जब किसी से कुछ सवाल पूछते हो, कसम से एकदम बबुआ लगते हो. कुछ लोगों के सवाल पूछने में लम्पटई होती है. अपना ज्ञान दिखाने की. बघारने की. कुछ की आंखों में जवाब देने की आतुरता होती. साफ़ पता चलता. पूछने के लिए नहीं. अपने जवाब की जमीन तैयार करने के लिए पूछा जा रहा है कुछ. तुम में वो नहीं. देखा मैंने.  

बच्चों जैसे सवाल पूछते हो. इसे बनाए रखना. मैं रहूं या ना रहूं आस पास, तुम कभी सवाल पूछोगे तो मुझे पता चल जाएगा.

भोलेपन की फ्रीक्वेंसी दूर तक जाती है.

लिखने की वजह नहीं थी कोई. जैसे प्यार करने की नहीं होती. जैसे गले लग कर घूंट-घूंट आंसू पी लेने में नहीं होती. जैसे फूल की पंखुड़ी निकाल-निकाल ‘लव्स मी, लव्स मी नॉट’ वाला खेल खेलने की नहीं होती. कहना था, कहने में शब्द उड़ कर कहीं निकल जाते हैं. वापस नहीं आते. एक तो यहां की हवा में धूल बहुत है. शब्द मुंह से निकलते ही भारी से हो जाते हैं. शायद ध्यान भटक जाए. मेरी जुबान फिसल जाए. इन सब चीज़ों से बड़ी कोफ़्त होती मुझे. इसलिए सब कुछ बांध-बूंध पोटली में ले आई, और यहां उलट दिया. रखना चाहो, तो रखना. कुछ कभी लगे, तो बता देना. मैं यहीं मिलूंगी. मेटाफर में भी दूर जाने की बात लिखने में सांस फूल गई. नहीं जाऊंगी. इधर ही रहूंगी. इसी चिट्ठी के साथ. इसी स्याही में. बता देना.

ओह एंड वेट, लिखते-लिखते याद आ गया. अ थिंग ऑफ़ ब्यूटी जो है न, जॉन कीट्स ने लिखी है. अब तुम्हें गूगल नहीं करना पड़ेगा.

हंस लो इसी बात पर. अच्छे लगते हो.

 

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