लीज़ा रे याद हैं? ये वो एक्ट्रेस हैं जो कैंसर से लंबी लड़ाई लड़ने के बाद मां बनीं
लीज़ा के संघर्षों की कहानी.
लीज़ा रे दो बेटियों की मां बनी हैं. ये खुशी उनके जीवन में सेरोगेसी के ज़रिए आई. बेटियों का नाम उन्होंने सूफी और सुलील रखा. लीज़ा ने वोग मैग्ज़ीन को दिए इंटरव्यू में अपने जीवन संघर्षों के बारे में बताया.
उन्होंने बताया- ‘मां होना आपके दिल को खुशियों से भर देता है. ये ऐसा भी है जैसे आप बीच रोलर कोस्टर राइड में कपड़े बदलने की कोशिश कर रहे हो. हर दिन कुछ नया सीख रहे होते हो. अब मेरे जीवन में नए तरह का उत्साह और प्यार है. एक तरह से पूर्णता है जिसे शब्दों में समझाना बहुत मुश्किल है.’
लीज़ा इंडोकैनेडियन एक्टर हैं. उन्होंने वॉटर जैसी बेहतरीन फिल्म में रोल किया है. कई सीरियल्स और फिल्मों का हिस्सा रही हैं. उनके पिता बंगाली हिंदू थे और मां पॉलिश.
लीज़ा बहुत खुश हैं लेकिन उनका ये सफर आसान नहीं रहा. 2009 में उन्हें कैंसर हो गया. कैंसर भी वो जो बहुत रेयर, मल्टिपल म्येलोमा. इस कैंसर में हमारे शरीर की सफेद रक्त कोशिकाएं(व्हाइट ब्लड सेल्स) अपने आप को अनगिनत संख्या में बढ़ाने लगती हैं. वैसे तो ये कोशिकाएं हमारे शरीर में इंफेक्शन से लड़ने के लिए होती हैं पर मल्टिपल म्येलोमा में ये बहुत अधिक प्रोटीन पैदा करने लगती हैं. जो कि हमारी हड्डियों और खून को नुकसान पहुंचाने लगता है. इस बीमारी का इलाज बहुत मुश्किल है. लीज़ा ने स्टेम सेल ट्रांसप्लांट कराया और अब इस बीमारी की गिरफ्त से बाहर हैं. खैर, अब भी उन्हें कई तरह की सावधानियां रखना पड़ता है.
कैंसर होने के बाद लीज़ा मां नहीं बन सकती थीं. लीज़ा ने बताया कि उन्होंने एडॉप्शन के लिए भी कोशिश की लेकिन अंतर्राष्ट्रीय एडॉप्शन एक लंबा प्रोसेस है इसलिए उन्होंने सेरोगेसी के ज़रिए अपनी बेटियों को जन्म देने का निर्णय लिया. भारत में कमर्शियल सेरोगेसी पर बेन लगा दिया गया. इस कारण लीज़ा भारत में सेरेगोसी नहीं करा पाईं. लीज़ा की बेटियों ने जॉर्जिया में जन्म लिया. जॉर्जिया में सेरोगेसी कानूनी है और लोग इसका समर्थन भी करते हैं. लीज़ा 2 महीनों के लिए जॉर्जिया में ही रहीं.
उनकी बेटियां स्वस्थ्य हैं. लीज़ा कहती हैं कि मैं सेरोगेसी के बारे में सबको इसलिए बताना चाहती हूं क्योंकि बाकी बहुत सी चीज़ों की तरह सेरोगेसी को भी टेबू माना जाता है. लोग इसके बारे में बात नहीं करना चाहते. बहुत लोगों को सेरोगेसी के बारे में गलत जानकारियां हैं.
अपनी बेटियों के बारे में वो बताती हैं कि ‘दोनों थोड़ा अलग-अलग हैं. सूफी अभी से किसी सीईओ की तरह व्यवहार करती है. वहीं सलील हर चीज़ को बारीकी और उत्सुकता के साथ देखती है जैसे कि कोई कवि. मैं मेरी बेटियों को सबकुछ करने की आज़ादी दूंगी. वो जो भी अपनी ज़िन्दगी में करना चाहें करें. साथ ही कोशिश करूंगी कि उन्हें सुरक्षित रखूं. समय-समय पर उन्हें सलाह देती रहूं.’
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