महिला किसानों की दयनीय स्थिति: इन्हें पता ही नहीं कि इनका कितना शोषण हो रहा है

एक तो किसान, ऊपर से औरत!

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
दिसंबर 01, 2018
देश के हर कोने से मार्च में शामिल होने आईं महिला किसान. तस्वीर- ऑडनारी

'कभी सोचा था दिल्ली में ऐसी सड़कों पर चलने का मौका मिलेगा?

मतलब?

अरे, इतनी खाली सड़कों पर.

हां, कभी नहीं.'

ये भले ही हमारे लिए मज़ाक की बात रही पर हज़ारों किसानों के लिए ये जीने-मरने का सवाल था. असल में, है. 29-30 नवंबर 2018. किसान मुक्ति मार्च. दिल्ली. रामलीला मैदान से संसद मार्ग. चारों ओर बैरिकेड्स और पुलिस बल. बीच में हज़ारों किसान, पैदल चलते हुए. ये क्रांति, आमजन की क्रांति है. लाल, हरे, पीले झंडे लिए ये लोग आगे बढ़ रहे हैं. कोई नारे लगा रहा है, कोई चुनौती दे रहा है. एक उम्मीद में ये हुजूम बढ़ता जा रहा है. शायद वापस जाकर इनकी परेशानियां थोड़ी सी कम हो जाएं. इनके ज़ख्मों को राहत मिले. पता नहीं वापस जाकर ये चैन की नींद सो सकेंगे या नहीं. ये खट रहे हैं. दिन-रात. रात-दिन. और, ये चक्कर बस चलता जा रहा है.

img_20181130_110126_120118034628.jpgहरियाणा के सुदूर इलाकों से आईं महिला किसान. तस्वीर- ऑडनारी

हर साल हज़ारों किसान दिल्ली आते हैं. मार्च निकालते हैं. सरकार घोषणाएं करती है. फिर भी इनकी परेशानियां हैं कि कम ही नहीं होतीं. कितने लाचार और मजबूर हैं ये. मज़दूर हैं ये. मज़दूर ऊपर से महिला. महिला होते ही आप एक सीढ़ी अपने आप पीछे चले जाते हैं. इसके लिए आपको कोई खास योग्यता नहीं चाहिए. बस, आपका महिला होना काफी है. इस रैली में बहुत सी महिलाएं शामिल हुईं. किसानों की बात बहुत से प्लेटफॉर्म्स पर हुई होगी लेकिन महिला किसानों की? हमने बात की कुछ महिला किसानों और मज़दूरों से. आइए जानते हैं कि उनकी परेशानियां क्या हैं?

img_20181130_104930_120118034652.jpgतमिलनाडु में मजदूरों और किसानों की हालत बयां करते ये लोग. तस्वीर- ऑडनारी

पल्ही, बिहार से आईं ललिता देवी बताती हैं कि उनके यहां हर बार सूखा पड़ जाता है. ये उनकी सबसे बड़ी समस्या है. धान नहीं होता. खेती-बाड़ी तो है नहीं. दूसरों के खेतों में काम करती हैं. घर नहीं है. गांव में झोपड़ी बनाकर रहती हैं. इस ही झोपड़ी में उनका पूरा परिवार रहता है. मंहगाई हर दिन बढ़ रही है. गैस के दाम आसमान छू रहे हैं. राशन की दुकान पर राशन नहीं मिलता. 5 महीने में एक बार राशन दे दिया जाता है. पूरा दिन मजूरी करने के बाद कई बार उन्हें केवल ढाई किलो चावल मिलता है. ये समस्या केवल उनकी नहीं है. उनके साथ आईं सुनयना देवी, रिंकू देवी और 10-15 महिलाएं भी इन्हीं परेशानियों से जूझ रही हैं.

रिंकू देवी की बेटी जूली कुमारी स्कूल नहीं जा पाती. नहीं, वो बीमार नहीं रहती. स्कूल में मास्टर ही नहीं आते. ड्रेस नहीं मिलती. खाना नहीं मिलता. यानी सरकार के सारे दावे खोखले हैं. सारी बातें झूठी.

img_20181130_113902_120118034739.jpgये हैं जूली, जिनके लिए इनकी मां कहती हैं कि 'गरीब हैं तबहै तो ऐसा कपरा पहिना के लाए हैं.' तस्वीर- ऑडनारी

महाराष्ट्र से आईं मंजू बाई(बदला हुआ नाम) बताती हैं कि हम यहां इसलिए आए हैं ताकि हमारा कर्ज़ माफ हो सके. जो आश्वासन सरकार ने हमें दिए थे वो पूरे हों.

साथ ही उनकी एक समस्या ये भी है जिनके खेत हैं वो मशीनों से धान कटा लेते हैं. इससे मालिक को तो फायदा होता है पर मजदूरों का महीनों का काम छिन जाता है. 

हरियाणा से आईं राजकुंवर (बदला हुआ नाम) का भी यही कहना है. उनके ऊपर 50 हज़ार रुपए कर्ज़ है. जिसे वो भर पाने में असमर्थ हैं. जब उनसे मैंने पूछा कि वो पी. साईंनाथ को जानती हैं तो वो बड़ी खुशी से बताती हैं कि हां जानते हैं. जब पूछा कि उनकी रिपोर्ट में क्या मांगे हैं तो कहती हैं कि नहीं पता.

img_20181130_110454_120118034838.jpgअपने छोटे से बच्चे को भी इस रैली में लेकर आई ये महिला. तस्वीर- ऑडनारी

पी. साईनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं. उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की है. जिसके तहत किसान अपनी मांगें सरकार के सामने रखने की बात कर रहे हैं. पी साईनाथ का कहना है कि सरकार को किसानों के लिए एक विशेष सत्र बुलाना चाहिए. तीन हफ्तों के इस सत्र में किसानों की सभी मांगों का ज़िक्र हो. उनकी सभी परेशानियों का हल खोजा जाए.

खैर, पी. साईनाथ के नेतृत्व में किसानों की मांगों का क्या होगा इस बारे में तो अभी कुछ नहीं कहा जा सकता पर एक बात जो इन औरतों और कई और औरतों से बात करने के बाद मुझे सबसे ज़्यादा खटकी वो ये है कि इन्हें मजूरी के रूप में आदमियों की तुलना में आधे और कभी-कभी तो आधे से भी कम पैसे दिए जाते हैं. मजूरी से यहां तात्पर्य उन पैसों से है जो किसी मजदूर को काम करने के बाद दिए जाते हैं. आपको ये बात भले ही बड़ी लगे लेकिन इन औरतों को ये बात कुछ भी नहीं लगती. इन्हें लगता है कि ऊपर से ही इतना पैसा आ रहा है इसलिए इन्हें भी कम ही पैसे मिलते हैं. जबकि ऐसा नहीं है. मनरेगा के तहत हर राज्य में मजदूरी तय है. हर इन्सान के लिए.

img_20181130_113440_120118034857.jpgमहिलाओं का दर्द बाकी किसानों से ज़्यादा है. तस्वीर- ऑडनारी

बिहार से आई औरतों ने बताया कि उन्हें 50 या 80 रुपए मिलते हैं. जबकि आदमियों को 200 रुपए. काम एक है. दोनों खेतों में काम करते हैं. बराबर काम करते हैं पर मजदूरी अलग मिलती है. महाराष्ट्र में भी यही होता है. आदमी को 100 रुपए और औरतों को 50 या 60 रुपए. हरियाणा में औरतों को 250 तो आदमियों को 400 रुपए मिलते हैं. बिहार, मधेपूरा में औरतों को 50 रुपए मिलते हैं तो आदमियों को 200 तक. कभी-कभी औरतों को 100 रुपए तक मिल जाते हैं. इन्हें लगता है कि ऊपर यानी सरकार से इतना ही पैसा आता है इसलिए इतना ही मिलता है. औरतों को पता ही नहीं है कि उनके साथ औरत होने के कारण भेदभाव किया जा रहा है. उन्हें लगता है कि मालिक के पास ही पैसा नहीं है तो उन्हें कहां से मिलेगा? उन्हें ये भी लगता है कि कोई उनकी बात नहीं सुनेगा तो वो किसे बोलें?

img_20181130_131857_120118034927.jpgनवादा, बिहार से आई ये औरतें, मैथिली में अपनी परेशानियां बयां करती हैं. तस्वीर- ऑडनारी

ये जो औरत होना ही आपको नीचा बना देता है न, ये सोच इतने गहरे पैठी हुई है कि ये औरतें अपने लिए ही नहीं लड़ पातीं. इन्हें लगता है इनकी मेहनत का वो ही दाम है जो इन्हें दिया जा रहा है. इन्हें पता है कि इनके साथ काम करने वाला आदमी भी उतना ही काम कर रहा है और उसे ज़्यादा पैसे मिलते हैं पर ये कुछ नहीं करतीं. कर ही नहीं पातीं क्योंकि इन्हें ये गलत ही नहीं लगता. ये ही सबसे बड़ी जड़ है औरतों के साथ जुड़ी परेशानियों की. इनका अनुकूलन ही इस तरह किया जाता है कि ये अपने साथ हुए भेदभाव को समझ ही नहीं पातीं. इन्हें लगता है कि जो भी इनके साथ होता है वो सही है. कभी सवाल ही नहीं करतीं. किसान रैली में आईं सैकड़ों औरतों ने यही बताया कि उन्हें आदमियों की तुलना में कम पैसे दिए जाते हैं पर ये बात उन्हें हवा के बहने जितनी सामान्य लगती है. जो कि असल में एक बहुत बड़ा भेदभाव है.  

 

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