लाख विरोधों के बीच प्रयाग में किन्नर अखाड़े की पेशवाई ऐसी निकली कि लोग देखते रह गए

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का कहना है कि मान्यता नहीं देंगे.

लालिमा लालिमा
जनवरी 09, 2019
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी. फोटो- ऑडनारी

उत्तर प्रदेश का प्रयागराज, सज चुका है. वहां की दीवारों पर चित्रकारी हो चुकी है. सड़कों और गलियों में होर्डिंग्स लग चुकी हैं. 15 जनवरी से यहां हजारों-लाखों लोगों का आना शुरू हो जाएगा. प्रयागराज इन सभी लोगों के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुका है. 15 जनवरी से कुंभ का मेला शुरू हो जाएगा.

इन तैयारियों के बीच, प्रयागराज में 6 जनवरी यानी रविवार के दिन कुछ बहुत ही स्पेशल हुआ. देवत्व यात्रा निकाली गई, यानी पेशवाई निकाली गई. ये यात्रा निकाली 'किन्नर अखाड़े' ने. प्रयाग के कुंभ के इतिहास में, पहली बार किन्नरों ने पेशवाई निकाली है. किन्नर संन्यासी हाथी, घोड़े और ऊंट पर सवार होकर शहर की गलियों से निकले, लोगों ने उनका बढ़िया से स्वागत भी किया. जान लें कि किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हैं.

2_750_010919074006.jpgलक्ष्मी नारायण त्रिपाठी. फोटो- ऑडनारी

ऐसा माना जाता है कि कुंभ में उसी अखाड़े की ज्यादा चलती है, जिस अखाड़े के पास नागा साधुओं की संख्या सबसे ज्यादा हो. क्योंकि नागा साधु कुंभ की जान माने जाते हैं. लेकिन इस बार सीन इसके उल्टा ही दिख रहा है. रविवार के दिन प्रयागराज की सड़कों पर, जब किन्नर अखाड़े की पेशवाई निकली, तब का नजारा हर अखाड़े की चमक फीकी करने के लिए काफी था. कुंभ में अभी तक 13 अखाड़ों को ही पेशवाई का अधिकार प्राप्त था, लेकिन रविवार को किन्नर अखाड़े ने देवत्व यात्रा निकालकर इसकी संख्या 14 कर दी.

3_750_010919074018.jpgलक्ष्मी नारायण त्रिपाठी. फोटो- ऑडनारी

परिषद नहीं देता मान्यता

एक है अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद. इस परिषद ने अभी तक 13 अखाड़ों को मान्यता दी हैं. और यही अखाड़े कुंभ में पेशवाई, यानी देवत्व यात्रा निकालते हैं. इन अखाड़ों में किन्नर अखाड़ा शामिल नहीं है. अखाड़ा परिषद, किन्नर अखाड़े को अखाड़ा मानता ही नहीं है. यहां तक कि किन्नर अखाड़े ने रविवार को जो यात्रा निकाली, परिषद ने उसे भी पेशवाई मानने से इनकार कर दिया है.

7_750_010919074033.jpgफोटो- ऑडनारी

हमने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी से बात की. पूछा कि क्या इस बार किन्नर अखाड़ा, 14वें अखाड़े के रूप में कुंभ में शामिल हो रहा है? जवाब मिला-

'किन्नर अखाड़े को मान्यता है ही नहीं. 13 अखाड़ों को मान्यता मिली हुई है. ये अखाड़े अनादिकाल से हैं. किन्नर अखाड़े के साथ ऐसा नहीं है, ये एक समूह है, लेकिन अखाड़ा नहीं. एक दिन लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का मन किया, तो उन्होंने अखाड़ा बना दिया. और मान्यता मांगने लगीं. ऐसे मान्यता नहीं मिलती. दूसरा- किन्नरों को संन्यास लेने का अधिकार भी नहीं है. जिनके अंग भंग नहीं होते हैं, केवल वो ही संन्यास ले सकते हैं. किन्नरों के साथ ऐसा नहीं है. ऐसे में वो संन्यासी नहीं कहलाएंगे. वो श्रद्धालु हो सकते हैं, लेकिन संन्यासी नहीं. उनके पूर्वजों ने तो कभी अखाड़े की मांग नहीं की, ये सब लक्ष्मी नारायण का एक प्रोपेगेंडा है. रही बात रविवार को निकाली गई यात्रा की, तो वो कोई पेशवाई नहीं है. पेशवाई केवल अखाड़े ही कर सकते हैं. वो जो भी था एक जुलूस था. कुंभ में कोई भी जुलूस निकाल सकता है, श्रद्धालु के रूप में. किन्नर यहां श्रद्धालु के रूप में आएं, कोई दिक्कत नहीं. लेकिन उनका समूह अखाड़ा नहीं है.'

5_750_010919074047.jpgफोटो- ऑडनारी

खबर है कि किन्नर अखाड़ा, जूना अखाड़े का हिस्सा बनने वाला है. लेकिन अभी हिस्सा बना है या नहीं, ये स्पष्ट नहीं हो सका है. (कन्फर्म होते ही, स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी.)

किन्नर अखाड़े का इतिहास

साल 2015 में किन्नर अखाड़ा बना था. 2016 में उज्जैन में कुंभ हुआ था. तब पहली बार किन्नर अखाड़े ने किसी कुंभ में हिस्सा लिया था. कह सकते हैं कि उज्जैन कुंभ से ही किन्नर अखाड़ा अस्तित्व में आया. अब प्रयाग कुंभ में हिस्सा ले रहा है. भले ही परिषद, इसे मान्यता नहीं देता है, लेकिन मेला प्रशासन ने किन्नर अखाड़े को सारी सुविधाएं दी हैं.

9_750_010919074101.jpgफोटो- ऑडनारी

लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का कहना है, 'लोग कहते हैं कि यूपी की सोच रूढ़िवादी है. यूपी की सोच छोटी है. राइट विंग के लोग हैं. बहुत सारी गलत धारणाएं हैं. ये बदल रही हैं. और हम धर्म में आए. हमारे साथ पूरे देश के किन्नर जुड़े. उज्जैन में हमने पहली बार देवत्व यात्रा निकाली, प्रयाग कुंभ में आने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. तब जाकर आ पाए.'

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