नसबंदी करवाने के बाद इस आदमी ने जो लिखा वो हर पुरुष को पढ़ना चाहिए
केरल में रहने वाले हसीब अंजू ने फेसबुक पर एक ज़बरदस्त पोस्ट किया.
केरल में रहने वाले हसीब अंजू ने जो किया वो बाकी मर्दों के लिए मिसाल है. हसीब ने वासेक्टोमी करवाई है. अब ये वासेक्टोमी क्या होता है?
ये जानने के लिए हमने डॉक्टर वंदना श्रीवास्तव से बात की. उन्होंने बताया:
“ये एक तरह की सर्जरी होती है. अंडकोश की थैली में कुछ ट्यूब्स होते हैं. इनके अंदर स्पर्म होते हैं. सर्जरी की मदद से ये ट्यूब या तो ब्लॉक कर दिए जाते हैं, या तो काट दिए जाते हैं. मकसद ये होता है कि सेक्स के दौरान स्पर्म शरीर के बाहर न निकलें. इस केस में औरत प्रेगनेंट नहीं होगी. ये बहुत ही आम सर्जरी है.”
खैर. अगर इन सर्जरी के बारे में सुनकर आपकी हवा टाइट हो गई है तो हम समझ सकते हैं. ऑपरेशन से सबको डर लगता है. पर गर्भनिरोध के लिए औरतों पर जो ऑपरेशन किया जाता है वो इन सर्जरी से कई गुना ज़्यादा रिस्की होता है.
यही बात हसीब मर्दों को समझाना चाहते हैं. वासेक्टोमी करवाने के बाद उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट किया. वो इस सर्जरी से जुड़े सारे मिथक दूर करना चाहते हैं. हसीब का मकसद है कि लोगों की आंखें खुलें.
हसीब केरल की पलक्कड़ डिस्ट्रिक्ट के रहने वाले हैं. हाल-फ़िलहाल में उनकी पत्नी ने दूसरे बच्चे को जन्म दिया. बच्चे के जन्म के बाद हसीब ने वासेक्टोमी करवा ली. इसके बारे में फेसबुक पोस्ट पर भी लिखा. साथ ही ये भी लिखा कि उन्होंने ये सर्जरी क्यों करवाई. पोस्ट मलयालम में है. कई ज़रूरी सवाल उठाता है और सोशल मीडिया पर छाया हुआ है.
जैसे पुरुषों के लिए वासेक्टोमी होती है. औरतों में गर्भनिरोध के लिए ट्यूबेक्टोमी नाम की सर्जरी होती है. ये वासेक्टोमी कई ज़्यादा दर्दनाक और रिस्की है. ये कैसे होती है. ये बताया डॉक्टर वंदना श्रीवास्तव ने:
“फैलोपियन ट्यूब्स एक तरह के ट्यूब्स होते हैं जो गर्भाशय तक जाते हैं. अंडे इसके ज़रिए गर्भाशय तक जाते हैं. अगर यहां ये स्पर्म के कॉन्टैक्ट में आएं तो महिला प्रेगनेंट हो जाती है. ट्यूबेक्टोमी में ये ट्यूब्स या तो काट दिए जाते हैं या ब्लॉक किए जाते हैं जिससे अंडे गर्भाशय तक न पहुंचें.”
दूसरे बच्चे के बाद, हसीब और उनकी पत्नी ने फ़ैसला किया कि वो और बच्चे नहीं पैदा करेंगे. दूसरा बच्चा ऑपरेशन से पैदा हुआ था. दोनों ने ये फ़ैसला किया था कि वो या तो वासेक्टोमी करवाएंगे या तो ट्यूबेक्टोमी.
हसीब ने अपने पोस्ट में वासेक्टोमी बनाम ट्यूबेक्टोमी डिबेट छेड़ी. सवाल काफ़ी सिंपल थे. पर जायज़ थे. उन्होंने लोगों से पूछा कि अगर उनके पास ये दो तरह की सर्जरी करवाने के ऑप्शन हों, तो वो क्या करवाएंगे? वो जो खाल के अंदर होती है या वो जिसमें पेट चीरा जाता है. ज़ाहिर सी बात है सब आसान वाली ही करवाएंगे. इसके बाद हसीब ने पूछा कि हमेशा औरतों को ये रिस्की सर्जरी करवाने के लिए क्यों फ़ोर्स किया जाता है. जबकि पुरुष उससे ज्यादा सिंपल सर्जरी करवा सकता है.
साथ ही हसीब ने अपना एक्सपीरियंस भी बताया. ये सर्जरी करवाने में उनके मात्र 20 मिनट लगे. एक दिन काम के बाद वो अपने मकान मालिक से मिलने गए. वो अस्पताल में एडमिट थे. वहां उन्होंने वासेक्टोमी के बारे में जनरल सर्जन से बात की. एक-दो टेस्ट करवाए, ऑपरेशन करवाया, कपड़े पहने, बिल भरा, दवाइयां खरीदीं, और घर आ गए. अकेले. ये इतना आसान और सिंपल था. हसीब ने ये भी बताया कि उनको सिर्फ़ इंजेक्शन लगने के दौरान हल्का सा दर्द हुआ था. उसके बाद कोई दर्द महसूस नहीं हुआ.
हसीब ने अपने पोस्ट में बताया कि वासेक्टोमी का कोई नुकसान नहीं है. इससे सेक्स करने में कोई परेशानी नहीं होती. सब कुछ वैसे ही रहता है जैसे पहले था. न ही दर्द या कोई चोट रहती है. पर वहीं ट्यूबेक्टोमी में औरतों को इन्फेक्शन होने का ख़तरा रहता है. साथ ही ये सर्जरी काफ़ी कॉम्प्लेक्स भी होती है.
हसीब ने अपने पोस्ट के अंत में एक बहुत ही ज़रूरी सवाल पूछा. सवाल था कि हमेशा औरतों से ही क्यों उम्मीद की जाती है कि वो दर्द झेलें. वो भी तब जब वो बच्चा पैदा करने के दौरान इतना दर्द झेल चुकी होती हैं. आदमी गर्भनिरोध के लिए ये सर्जरी क्यों नहीं करवा सकते?
जब भी बात गर्भनिरोध की आती है तो इसकी ज़िम्मेदारी हमेशा औरत के कन्धों पर ही पड़ती है. अब भले ही गोलियां खा-खाकर उसकी सेहत की बैंड बज जाए. कुछ पुरुषों को गर्भनिरोध से कोई लेना-देना ही नहीं होता. बदकिस्मती से औरतें ये आराम अफ़ोर्ड नहीं कर सकतीं.
उम्मीद है, हसीब की ये बात लोग समझ पाएंगे.
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