कठुआ फैसले और अलीगढ़ हत्याकांड के बाद, जान लीजिए क्या हैं बच्चों के लिए बने कानून

बालमजदूरी और अपहरण से लेकर यौन अपराधों तक, क़ानून बच्चों की कैसे करता है मदद

पिछले कुछ दिनों से बच्चों के साथ अपराध का मामला सुर्ख़ियों में बना हुआ है. जब से अलीगढ़ में दो साल की बच्ची की हत्या का मामला सामने आया है, तब से ही इस पर लगातार बहस चल रही है. आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग उठ रही है. इस बीच कठुआ केस में भी फैसला आ गया है. 8 साल की बच्ची के गैंगरेप-मर्डर के इस मामले में कोर्ट ने 6 लोगों को दोषी पाया है. इनमें से तीन को उम्रकैद और तीन को पांच साल की कैद हुई है. दो साल पहले का प्रद्युम्न मर्डर केस भी आपको याद ही होगा जिसमें 7 साल के बच्चे की उसके स्कूल के ही एक सीनियर ने गला रेतकर हत्या कर दी थी.

बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण के लगातार बढ़ते मामलों को रोकने के लिए साल 2012 में केन्द्र सरकार ने पॉक्सो एक्ट पास किया. इसके तहत नाबालिग बच्चों(लड़का-लड़की दोनों) के साथ होने वाले यौन अपराध में कार्रवाई के साथ-साथ बच्चों को सेक्शुएल हैरेसमेंट, सेक्शुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा मिलती है. इस एक्ट के अंतर्गत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की जाती है.

पॉक्सो के अलावा बच्चों के लिए और भी कई कानून हैं हमारे देश में. जो बच्चों को न सिर्फ यौन शोषण बल्कि फिजिकल एब्यूज, मेंटल अब्यूज और मारपीट से भी बचाते हैं.

इन्हें जानना हर किसी के लिए बेहद ज़रूरी है.

kid-school_750x500_061219120515.jpgबच्चों के खिलाफ किए जाने वाले अपराधों में सज़ा सख्त करने की मांग उठती रही है.

सबसे पहले तो ये कि कानून के अनुसार बच्चा कौन है?

जुविनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के अनुसार 18 साल की उम्र तक किसी को भी माइनर (minor) यानी बच्चे की तरह ट्रीट किया जाएगा. सात साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया गया कोई भी क्राइम क्राइम की श्रेणी में नहीं आता. चाहे फिर वो मर्डर ही क्यों न हो. बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध और उन अपराधों से सुरक्षा के लिए बने कानून ये रहे:

-भ्रूण हत्या से संबंधित (पैदा होने से पहले मार देना)- सेक्शन 315 और 316 IPC (IPC- Indian Penal Code भारतीय दंड संहिता)

-नवजात हत्या- सेक्शन 315 IPC

-आत्महत्या के लिए बच्चे को उकसाना- सेक्शन 305 IPC

-माता-पिता या अन्य द्वारा बच्चे के खिलाफ कोई अपराध करना या उन्हें त्याग देने की मंशा से छोड़ देना- सेक्शन 317 IPC

-अपहरण:

  • देश से बाहर भेजने के लिए अपहरण – सेक्शन 360 IPC
  • कानूनी गार्जियन के पास से अपहरण – सेक्शन 361 IPC
  • फिरौती के लिए अपहरण- सेक्शन 363 के साथ सेक्शन 384 IPC
  • भीख मंगवाने के लिए अपहरण- सेक्शन 363 –A IPC
  • शादी के लिए मजबूर करने को अपहरण- सेक्शन 366 IPC
  • गुलामी कराने के लिए अपहरण- सेक्शन 367 IPC
  • चोरी-चकारी के उद्देश्य से अपहरण (ये केवल दस वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर लागू होगा)- सेक्शन 369 IPC

-नाबालिग लड़कियों का सेक्स के लिए इस्तेमाल – सेक्शन 366 A IPC

-वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों को बेचना- सेक्शन 372 IPC

-वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों को खरीदना- सेक्शन 373 IPC

-रेप- सेक्शन 376 IPC

इसके अलावा बालविवाह और बालमजदूरी रोकने के लिए भी कानूनी प्रावधान बने हैं, जो स्पेशल और लोकल कानूनों के तहत आते हैं. अधिकतर मामलों में सजा सात से दस साल की है. अपराध की गंभीरता और उसके नेचर के साथ उसकी सज़ा भी बढ़ती जाती है. उदाहरण के तौर पर यौन शोषण के मामलों में आईपीसी की धाराओं के साथ-साथ POCSO भी लागू किया जाता है. 

बालमजदूरी के लिए क्या?

labour_750x500_061219120659.jpgएक रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक करोड़ 26 लाख बाल मजदूर हैं.

बालमजदूरी रोकने के लिए 1986 में एक्ट बना था. चाइल्ड लेबर प्रोहिबिशन और रेगुलेशन एक्ट. इसे 2016 में अपडेट किया गया था अमेंडमेंट के साथ. ये 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कमर्शियल रूप से काम करने से बचाने के लिए बनाया गया कानून है. यानी कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह के उद्योग (चाहे वो खतरनाक हो या नहीं) में नहीं लगाया जा सकता. 14 साल से 18 साल के बच्चों के लिए 2016 की एमेंडमेंट ने ‘किशोर लेबर’ (एडोलेसेंट लेबर) की परिभाषा दी है. इसमें खतरनाक उद्योगों को छोड़ कर बाकी जगहों पर उन्हें काम के लिए रखा जा सकता है. खतरनाक उद्योग वैसे जहां के लिए प्रॉपर ट्रेनिंग की आवश्यकता के बिना काम करना असम्भव हो. या उसके बिना जान का खतरा हो.

दोषी पाए जाने पर छह महीने से लेकर दो साल तक की सज़ा का प्रावधान है. 20,000 से लेकर 50,000 तक का जुर्माना भी.

जो बच्चे अपराध करें उनका क्या?

16 वर्ष से कम उम्र के जो बच्चे अपराध करते हैं, उनको किसी भी अपराध के लिए मौत की या उम्रकैद की सजा नहीं दी जाती. ऐसा द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर के सेक्शन 27 में मेंशन किया गया है. अपराधी के नाबालिग होने की स्थिति में उसके खिलाफ जुविनाइल जस्टिस एक्ट के तहत कार्रवाई होती है. मामले की सुनवाई जुविनाइल जस्टिस बोर्ड में होती है.इस एक्ट में साल 2015 में एक संशोधन हुआ था. इसके मुताबिक, रेप और मर्डर जैसे मामलों में अपराध की जघन्यता, आरोपी के स्टेट ऑफ माइंड और उसके इंटेंशन पर बहस के बाद 16 से 18 साल तक के आरोपी के खिलाफ एडल्ट की तरह केस चलाया जा सकता है.

वहीं, आर्टिकल 21 A कहता है कि 6 वर्ष से से लेकर 14 वर्ष की उम्र तक सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी जानी चाहिए. 

बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए हमारे संविधान में कई प्रावधान हैं, कड़े कानून हैं. इसके बावजूद हम आए दिन बच्चों से रेप, उनके मर्डर या उनके साथ मारपीट की घटनाएं सुनते हैं, देखते हैं. कई जगहों पर छोटे-छोटे बच्चे मजदूरी करते नजर आते हैं. ये बच्चे एक खुशहाल और उम्मीदों से भरी जिंदगी डिजर्व करते हैं. उन्हें बेहतर जिंदगी देने के लिए एक समाज के तौर पर शायद हमें खुद को बेहतर बनाना होगा.

 

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