अगर आपको भी कर्नाटक चुनाव की भसड़ समझ में नहीं आई तो यहां आइए

किसकी सरकार बनेगी और कैसे बनेगी

कर्नाटक में चल रहा पॉवर प्ले जानिये यहां

न्यूज में अभी धड़ाधड़ खबर चल रही है कि कांग्रेस ने 120 कमरे बुक किए हैं बेंगलुरु के ईगल्टन रिसॉर्ट में. क्या चल रहा है ? कर्नाटक में चुनाव का मौसम है. वो राहत इन्दौरी कह गए हैं न- सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या. बस वही है. लेकिन इस बार बड़ी इंटरेस्टिंग तस्वीर बनी है. आइये आपको बताते हैं क्या चल रहा है. कर्नाटक में 12 मई को चुनाव हुए. वहां पर अभी तक कांग्रेस की सरकार थी. उसके सीएम यानी चीफ मिनिस्टर सिद्धरामैय्या थे. कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में 224 सीटें हैं. इनमें से 222 पर वोटिंग हुई. दो पर नहीं हुई क्योंकि एक सीट पर नकली वोटर आई कार्ड मिले. दूसरी सीट पर नॉमिनेशन फ़ाइल करने के बाद उम्मीदवार की डेथ हो गई. अब ये सीटों का क्या चक्कर है. 2014 में हुए चुनावों से ये कैसे अलग है.

क्या डिफ़रेंस है लोकसभा और विधानसभा चुनावों में

ये थोड़ा समझ लें. फिर एकदम क्लियर होकर बात करेंगे. जिस चुनाव में मोदी जी पीएम बने, वो लोकसभा चुनाव था. पांच साल में होता है. जेनेरल इलेक्शन बोलते हैं उसको. देश में दो लेवल पर सरकारें चलती हैं. एक सेंटर यानी केंद्र लेवल पर, दूसरी स्टेट यानी राज्य लेवल पर. स्टेट लेवल पर जो चुनाव होते उनको विधानसभा चुनाव कहते हैं. इनमें जो लोग जीतते हैं उनको एमएलए यानी मेम्बर ऑफ़ लेजिस्लेटिव असेम्बली कहा जाता है. किसी भी पार्टी को किसी राज्य में सरकार बनाने के लिए उस राज्य की विधान सभा की कुल सीटों का आधा और प्लस 1 जीतना ज़रूरी है. जैसे मान लीजिये कर्नाटक चुनाव में 222 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं तो कांग्रेस या बीजेपी को सरकार बनाने के लिए कम से कम 111 +1 यानी 112 सीटों पर जीत दर्ज करनी ही होगी.

मोदी जी ने कर्नाटक में 21 रैलियां की थीं. मोदी जी ने कर्नाटक में 21 रैलियां की थीं.

यहां ही हो गया पंगा कर्नाटक में. सिर्फ यहीं नहीं, ये पहले भी मणिपुर और गोवा के विधान सभा चुनावों में हो चुका था. तो दिक्कत क्या आई. कर्नाटक के उदाहरण से समझिये. बीजेपी इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो सरकार बना लेगी. उसे 104 सीटें ही मिली. जो 112 से 8 कम है. यानी पूर्ण बहुमत उसे भी नहीं मिला. कांग्रेस को 78 सीटें मिलीं.

इनके अलावा एक तीसरी वहां की लोकल पार्टी भी है जिसके लीडर अभी कुमारस्वामी हैं. इस पार्टी का नामा है जनता दल सेक्यूलर( JDS ). इसको शुरू किया था एच डी देवगौड़ा ने. वो भारत के प्रधानमंत्री भी रहे थे 1996 से 1997 तक. उन्हीं के छोटे बेटे हैं एच डी कुमारस्वामी. येदियुरप्पा बीजेपी के सीएम कैंडिडेट हैं. बीजेपी के पास भी नंबर नहीं हैं सरकार बनाने के लिए. कांग्रेस के पास भी नहीं. JDS के पास 37 सीटें हैं, और वो जिसको भी समर्थन देगी, वो ही पार्टी बनाएगी सरकार. तो ये चल रहा है. अभी तक मामला ये है कि कुमारस्वामी ने कहा है कि वो कांग्रेस का समर्थन लेने को तैयार हैं. कुमारस्वामी ने ये भी कहा कि बीजेपी ने उनको सौ करोड़ रुपये का ऑफर दिया था. जिसे ठुकरा दिया गया.

कुमारस्वामी ने तगड़ा स्टैंड लिया बीजेपी के खिलाफ. कुमारस्वामी ने तगड़ा स्टैंड लिया बीजेपी के खिलाफ.

ऐसी हालत में सरकार कैसे बनती है?

यहां पर रोल आता है गवर्नर का. हर राज्य का एक राज्यपाल यानी गवर्नर होता है. पूर्ण बहुमत मिले या ना मिले, गवर्नर ही पार्टियों को बुलाकर सरकार बनाने का क्लेम करने को कहते हैं. भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने इंडिया टुडे को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा कि गवर्नर को सबसे ज्यादा सीटों वाली पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रण देना चाहिए.

बीजेपी के पास सबसे ज्यादा सीटें तो हैं, लेकिन किसी और का समर्थन नहीं है. और किसी को मनमुताबिक पोट लेने की हरकत करने के लिए अमित शाह यानी मोटाभाई फेमस हैं. इसलिए कांग्रेस अपने सारे एमएलए लोगों को उठा कर एक साथ रख रही है.

कांग्रेस के पास अभी अपने एमएलएज को बचाने की चिंता है. कांग्रेस के पास अभी अपने एमएलएज को बचाने की चिंता है.

कांग्रेस के पास ज्यादा सीटें हैं तो वो क्यों सपोर्ट कर रही है JDS को? उलटा होना चाहिए न.

यहां मामला थोड़ा डिफरेंट है. और थोड़ा सा मुश्किल. लेकिन समझना आसान है. इस समय कांग्रेस समझौते में शर्त रखने की हालत में नहीं है. कई क्षेत्रीय पार्टियों से छोटी हो कर रह गई है. अगर बीजेपी को इस स्टेट से बाहर रखना है तो कांग्रेस को ही झुक कर JDS को मनाकर अपने पाले में रखना होगा, और इसका मतलब ये है कि सीएम कुमारस्वामी बनेंगे. कांग्रेस का चीफ मिनिस्टर नहीं बनेगा.

इस चीज़ से कांग्रेस के कुछ लिंगायत एमएलए नाराज़ हैं ऐसी खबर आई है, क्योंकि कुमारस्वामी वोक्कालिगा समुदाय से हैं. और लिंगायत समुदाय वालों की वोक्कालिगाओं के साथ बनती नहीं है. ये एक और दूसरा काफी लंबा टॉपिक है जिसपर फिर बात हो सकती है.

कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धरामैय्या को भरोसा है कांग्रेस जेडीएस की सरकार बनेगी. कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धरामैय्या को भरोसा है कांग्रेस जेडीएस की सरकार बनेगी.

सीटों की इस लड़ाई में JDS क्यों दे रही है कांग्रेस का साथ? क्योंकि बीजेपी के पास काफी ज्यादा सीटें हैं. वो इतनी सीटों के साथ नहीं मानेंगे कि सीएम कुमारस्वामी बन जाएं. तो वहां पर उनका थोड़ा नुकसान है. कांग्रेस के साथ रहने में ये फायदा है कि उनको अपनी बात का वज़न बढ़ाने का मौका मिल जाएगा.

अब अगर गवर्नर बीजेपी को बुलाते हैं सरकार बनाने के लिए तो कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. राष्ट्रपति के पास जाकर कह सकती है कि हमारे एमएलए ज्यादा हैं. गवर्नर के सामने परेड करा सकती है कि भई देख लो हमारे इतने एमएलए हैं फिर भी तुम सरकार नहीं बनाने दे रहे हो. क्या गजब बात है. लेकिन एक छोटी सी बात जान लीजिये. गवर्नर वजुभाई वाला बीजेपी के पुराने वफादार हैं. अब आप खुद ही समझ लीजिये.

वजुभाई वाला ने नरेन्द्र मोदी के लिए अपनी सीट छोड़ दी थी. वजुभाई वाला ने नरेन्द्र मोदी के लिए अपनी सीट छोड़ दी थी.

कुमारस्वामी ने भी साफ़-साफ़ सिग्नल दिए हैं कि कांग्रेस के सपोर्ट से खुश है उनकी पार्टी और उसके ऑफर को एक्सेप्ट भी कर लिया है. तो कुल मिलाकर कर्नाटक में ये चल रहा है. आगे भी आपको बताते रहेंगे. पढ़ते रहिये ऑडनारी को. कोई सवाल है तो पूछिए. हम बताएंगे.

 

 

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