पिता को लकवा मार गया, बेटी ने घर चलाने के लिए खोल लिया लड़कों का सैलून
लड़कों की तरह बाल कटवाए, कपड़े पहनें और खोल दिया सैलून.
उत्तर प्रदेश में एक जिला है कुशीनगर. वहां के पडरौना क्षेत्र में एक गांव है बनवारी टोला गांव. इस गांव में दो बहनें रहती हैं- ज्योति और नेहा. ज्योति 18 साल की हैं, नेहा 16 की. अब आप सोच रहे होंगे कि हम इन दो बहनों की बात क्यों कर रहे हैं. वो इसलिए क्योंकि ये दोनों बहनें काफी अलग हैं, बाकी लोगों से. दोनों काम ही कुछ ऐसा कर रही हैं, जो इन्हें बाकी लोगों से अलग बना रहा है.
दोनों अपने गांव में सैलून चलाती हैं. आदमियों की दाढ़ी बनाती हैं, बाल काटती हैं. आपने अपने गांव-शहर में कई सैलून देखे होंगे. जिनमें आपने केवल आदमियों को मर्दों की दाढ़ी बनाते और बाल काटते देखा होगा. लड़कियों को नहीं देखा होगा. नेहा और ज्योति, यही काम कर रही हैं, इसलिए अलग हैं बाकियों से.
क्या है इन बहनों की कहानी-
- नेहा और ज्योति के पिता का नाम ध्रुव नारायण है. उनकी छह बेटियां हैं. वो गांव में दाढ़ी-बाल बनाने की छोटी सी गुमटी लगाया करते थे. इससे होने वाली कमाई के दम पर उन्होंने चार बेटियों की शादी भी करवा दी थी. पांच साल पहले तक सब ठीक चल रहा था. लेकिन फिर साल 2014 में सब बदल गया.
- ध्रुव नारायण को लकवा मार गया. उस टाइम नेहा 11 साल की थीं, और ज्योति 13 साल की थीं. पिता को लकवा मारा, तो गुमटी भी बंद हो गई. खाने के लाले पड़ने लगे. ज्योति ने हिम्मत नहीं हारी. परिवार का सहारा बनने की ठानी. और बंद पड़ी दुकान खोली.
अपने सैलून में ज्योति. फोटो- ऑडनारी (स्ट्रिंगर- संतोष सिंह)
- बहुत मेहनत की, काम सीखने में. जमकर काम किया, जरा भी आसान काम नहीं था, लेकिन किया. पांच साल में छोटी सी दुकान को सैलून बना दिया. छोटी बहन नेहा ने भी, ज्योति का साथ दिया. आज दोनों बहनें, सैलून चला रही हैं.
- दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ज्योति ने बताया कि काम काफी मुश्किल था, लेकिन उन्हें घर संभालना था. इसलिए उन्हें ये काम करना पड़ा. आज ज्योति और नेहा की कमाई से ही घर चल रहा है. और दोनों बहनें अपने पिता का इलाज भी करवा रही हैं.
- गांव में दाढ़ी बनाने का काम, आदमी ही करते आए थे. ज्योति के दादा-पापा ने ये काम किया था. ऐसे में लड़की होने के नाते, इस काम को करना काफी मुश्किल था. ज्योति ने नया आइडिया अपनाया. अपना पूरा गेटअप ही बदल डाला. ब्वॉयकट बाल कटवा लिए, लड़कों जैसे कपड़े पहनने लगीं, बर्ताव भी लड़कों जैसा कर लिया. ताकि उनकी दुकान में लोग आ सकें. यहां तक की नाम भी बदल डाला. दीपक नाम रख लिया अपना.
- ज्योति बताती हैं, कि गांव में सब जानते हैं कि वो लड़की हैं. लेकिन टाइम के साथ-साथ लोगों ने भी उनकी सच्चाई को एक्सेप्ट कर लिया, और ढलते गए.
- दोनों बहनें रोजाना 400 रुपए कमा लेती हैं. लेकिन वो हमेशा ये काम नहीं करना चाहतीं. ज्योति और नेहा ब्यूटी पार्लर खोलना चाहती हैं. ज्योति का कहना है कि वो सम्मान चाहती हैं, इसलिए सारी जिंदगी इस काम को नहीं करेंगी. इससे उन्हें सम्मान नहीं मिलता. फिलहाल, उनके पिता की तबीयत पहले से बेहतर है. अब वो भी कई बार दुकान आते हैं. बाहर बैठे रहते हैं.
- ज्योति कहती हैं, कि सोसायटी में पुरुषों का ही दबदबा है. ऐसे में इस काम को जारी रखना, बहुत मुश्किल है. उन्हें बहुत परेशानी झेलनी पड़ी, और अब भी झेलनी पड़ रही है. परेशानी कम जरूर हुई है, लेकिन खत्म नहीं.
- ज्योति की मां का नाम है लीलावती. कहती हैं कि उन्हें अपनी बेटियों पर गर्व है. दोनों की हिम्मत की वजह से ही उनका परिवार संभला है. घर इनकी मेहनत से ही चल रहा है.
- ध्रुव नारायण कहते हैं कि उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है, कि समाज क्या कहता है उनके बारे में. उनकी बेटियां ईमानदारी से काम कर रही हैं. और आगे भी करेंगी.
इसे भी पढ़ें-मंजू देवी: 5 बच्चों की मां जो पोस्टमॉर्टम करती हैं, दिन भर लाशें चीरकर सिलती हैं
लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे