गुरमीत राम रहीम ने जिस पत्रकार का मर्डर करवाया था, उसकी पत्नी की कहानी सुनिए
16 साल से बच्चों के साथ पति के लिए लडती रही ये बहादुर औरत.
'16 साल में सब बदल गया, लेकिन मेरी मां वहीं खड़ी हैं, जहां छत्रपति उन्हें छोड़कर गए थे.' ये कहना है पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की बेटी श्रेयसी का. श्रेयसी ने ये बात अपनी मां कुलवंत कौर के लिए कही.
कुलवंत पिछले 16 साल से इंसाफ का इंतजार कर रही थीं. उनके चेहरे पर पंचकुला सीबीआई कोर्ट के उस फैसले के बाद मुस्कान आई, जिसमें डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पत्रकार छत्रपति की हत्या के मामले में, उम्रकैद की सजा सुनाई गई. 17 जनवरी के दिन, सीबीआई अदालत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए राम रहीम को सजा सुनाई.
सजा के ऐलान के बाद, कुलवंत कौर ने राहत की सांस ली. कुलवंत 63 साल की हैं. और बहुत ही शांत स्वभाव ही महिला हैं. खुशी हो या गम, अपने ही तरीके से हैंडल करती हैं. साल 2002 में उनके पति, रामचंद्र छत्रपति की मौत हो गई थी. उसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. लंबी लड़ाई लड़ी, और जीत भी हासिल की.
गुरमीत राम रहीम. फोटो- इंडिया टुडे
ऑडनारी की टीम ने छत्रपति की बेटी श्रेयसी से बात की. उनसे उनकी मां कुलवंत के बारे में जाना. अपनी मां के बारे में श्रेयसी कहती हैं, 'मां और पापा के बीच अच्छी बॉन्डिंग थी. वो हर बात मां को बताते थे. प्रोफेशनल लाइफ के बारे में भी उन्हें बताते थे. मां हमेशा उनसे कहती थीं, कि थोड़ा सोचकर काम करो. जब पापा ने राम रहीम के खिलाफ लिखना शुरू किया, तब भी मां ने यही कहा था. पिता हमेशा कहते, मैं हर वक्त अपना कफन सिर पर बांधकर चलता हूं. मां को बहुत चिंता होती थी उनकी.'
रामचंद्र छत्रपति की बेटी श्रेयसी. फोटो- फेसबुक
राम रहीम के ऊपर दो साध्वियों ने रेप का आरोप लगाया था. उस वक्त रामचंद्र छत्रपति ने उन साध्वियों का साथ दिया. अपने अखबार में उन्होंने राम रहीम के खिलाफ लिखना शुरू किया. श्रेयसी बताती हैं कि उसके बाद से ही छत्रपति को डेरा की तरफ से धमकियां मिलने लगी थीं. लेकिन फिर भी छत्रपति नहीं रुके. उनका मकसद था, राम रहीम की करतूत सबके सामने रखना, इसलिए वो अपना काम करते रहे. फिर आया साल 2002 का वो दिन, जिस दिन सब कुछ बदल गया. 24 अक्टूबर 2002 के दिन, रामचंद्र के घर के सामने, उन्हें गोलियां मार दी गईं. उनका दिल्ली के अपोलो अस्पताल में इलाज हुआ. लेकिन वो बच नहीं सके. और 21 नवंबर 2002 के दिन उन्होंने दम तोड़ दिया. राम रहीम के ऊपर छत्रपति की हत्या करवाने का आरोप लगा. केस चला, 16 साल तक चला, और अब जाकर राम रहीम को सजा मिली.
छत्रपति के चार बच्चे थे- दो लड़का और दो लड़की. बड़े लड़के का नाम था अंशुल. जब छत्रपति की मौत हुई, तब अंशुल 19 साल का था. इतनी छोटी उम्र में ही अंशुल ने ठान लिया कि वो अपने पिता के हत्यारे को सजा दिलवाकर ही दम लेगा. अंशुल बिना हिम्मत हारे लड़ता रहा. वकीलों ने उसका साथ दिया. बिना पैसे लिए केस लड़ा.
अंशुल छत्रपति, पिता रामचंद्र की तस्वीर के साथ. फोटो- फेसबुक
कुलवंत कौर, जो अपने पति को कहती थीं कि वो अखबार में कुछ भी लिखने से पहले थोड़ा सोच लिया करें. वो औरत, जिसे हरदम अपने पति की जान की फिक्र होती थी. उसने हिम्मत नहीं हारी. अपने बेटे को हिम्मत देते रही. एक बार भी अपने बेटे से, कदम पीछे खींचने के लिए नहीं कहा. उसे कई लोगों ने डराया. कहा कि अंशुल के साथ भी गलत हो जाएगा, उसे भी मार दिया जाएगा, इसलिए उसे रोक लो, लेकिन कुलवंत ने किसी की नहीं सुनी. और अपने बेटे की हिम्मत बढ़ाते गई.
16 साल बाद उन्हें न्याय मिला, तब कुलवंत ने अपनी बेटी से धीरे से कहा, 'बधाई हो बेटा.' उनके चेहरे पर 16 साल में पहली बार, राहत दिखाई पड़ी. दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुलवंत कहती हैं कि उनके लिए बीते 16 साल बहुत कठिन थे. बहुत मुश्किलें झेली इन सालों में, लेकिन कोर्ट के फैसले से उन्हें सुकून मिला है. उन्होंने बताया कि इस लंबी लड़ाई में, बहुत से लोग ऐसे भी मिले, जो उनसे ये कहते कि डेरा के पास बहुत पैसा है, उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे. ऐसे में थोड़ा डर लगता, लेकिन कुलवंत को भरोसा था कि उन्हें इंसाफ जरूर मिलेगा. वो कहती हैं कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं. वो जानती थीं कि देर से ही सही, लेकिन उनके साथ अदालत न्याय करेगा. वो जज जगदीप सिंह को भी शुक्रिया कहती हैं. वो कहती हैं कि सारे जज को जगदीप सिंह की तरह ही होना चाहिए.
रामचंद्र छत्रपति. फोटो- फेसबुक
श्रेयसी बताती हैं कि उनकी मां और पिता के बीच अच्छी बातचीत होती थी. उनकी शादीशुदा जिंदगी बहुत अच्छी थी. ऐसे में जब छत्रपति की अचानक मौत हो गई, तब कुलवंत के लिए पति के बिना रहना बहुत मुश्किल हो गया. श्रेयसी ने बताया, 'मेरे पिता एक अच्छे पति भी थे. वो खाना बनाने में मेरी मां की मदद भी करते थे. दोनों की मैरिड लाइफ बहुत अच्छी थी. ऐसे में उनकी मौत के बाद, मेरी मां को उनकी कमी हमेशा महसूस हुई. वो पहले से ही शांत स्वभाव की थीं, पिता की मौत के बाद और भी ज्यादा शांत हो गईं.'
राम रहीम की सजा के बाद, श्रेयसी ने भी एक कविता लिखी. टाइटल दिया 'अब कातिल कभी सो नहीं पाएगा', यहां पढ़ें उनकी कविता-
उस रात कोई नहीं सोया था
न घर में बैठे हम
न आईसीयू के बाहर चिंतित खड़ी मां
उस रात के बाद हम कई दिन नहीं सोये
पापा के घर लौटने के इंतज़ार में,
और फिर पापा लौट आये
उसी कफ़न में लिपटे हुए जो बड़े जूनून के साथ उन्होंने अपने साथ रखा था हमेशा और फिर उस कफ़न पर लिपटे फूलों ने कभी सोने नहीं दिया हमे
उन रातों में
हम ही नहीं जगे थे अकेले
छत्रपति भी जगे थे हमारे साथ
और कहते रहे
सो मत जाना
मेरे चैन से सो जाने तक
वह कहते रहे
सो मत जाना
कातिल के सलाखों में जाने तक अब पापा चैन से सो रहे हैं
और जेल के अँधेरे में जग रहा है कातिल आज रात कातिल सो नहीं पाएगा छत्रपति का कफ़न उसके गले का फंदा बन
हर झपकी से उसे अचानक
जगायेगा, डरायेगा, रुलाएगा ,
हां ! कातिल अब कभी सो नहीं पायेगा
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