इंदिरा गांधी, जिन्हें बचपन में 'बेवकूफ' और 'बदसूरत' पुकारा गया, बड़े होने पर 'बूढ़ी डायन'
इंदिरा के अन-पॉलिटिकल किस्से.
भारत जैसे लोकतंत्र की पॉलिटिक्स के बारे में चाय-बिस्कुट पर चर्चा होती ही रहती है. चार लोग इकट्ठा होते हैं, बातें होती हैं तो राजनीति शहर के गोलचक्कर की तरह बीच में खड़ी होती है. एक न एक बार वहां से गुज़रना हो ही जाता है लोगों का. अब राजनीति की बात हो और गांधी परिवार का नाम ना आए ऐसा कैसे हो सकता है. इसी में नाम आता है इंदिरा गांधी का.
इंदिरा गांधी वो जो आज़ाद भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. इंदिरा गांधी वो जिन्होंने अपने परिवार के खिलाफ जाकर अपनी मर्जी से शादी की और उस शादी में धोखा खाया. इंदिरा गांधी वो जिन्होंने देश में इमरजेंसी लगाकर लोकतंत्र का एक ऐसा अध्याय लिखा जो सबके लिए एक सबक की तरह आज भी खड़ा है. इंदिरा गांधी वो, जो एक राजनेता के तौर पर इतनी तेज़-तर्रार थीं कि 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया. उनकी पॉलिटिकल समझ और रुतबे का ऐसा डर बैठ गया था कि 1971 में जब इंदिरा अमेरिका गई थीं, तब उस समय वहां के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अपने सलाहकार हेनरी किसिंगर से बात करते समय उन्हें ओल्ड विच यानी बूढ़ी डायन कहा था. ओवल ऑफिस के रिकॉर्ड्स इस बात की तस्दीक करते हैं.
रिचर्ड निक्सन की अगुवाई में अमेरिका पाकिस्तान का समर्थन कर रहां था. फोटो: विकिमीडिया
लेकिन एक राजनेता से परे इंदिरा गांधी थीं कौन? क्या राजनेता या वो लोग जिन्हें हम लीजेंड मानकर एक तख़्त पर हम सबसे ऊपर खड़ा कर देते हैं, उनकी अपनी कोई कहानी नहीं होती? इंदिरा की भी रही होगी. आज हम बात करेंगे उन्हीं चंद किस्सों के बारे में. वो बातें जिन्होंने इंदिरा को इंदिरा बनाया. गांधी नाम से तो उन्हें पूरी दुनिया जानती है.
- इंदिरा जब बेहद छोटी थीं, तब वानर सेना नाम के एक दल की नेता बनी थीं. पांच साल की उम्र में उन्होंने एक होली जलती देखी विदेशी सामान की. अपनी विदेशी गुड़िया भी उसमें फेंक दी. इसके बाद 12 साल की उम्र में वानर दल की नेता बनीं. इसमें बढ़ते बढ़ते लगभग 60000 बच्चे-बच्चियां हो गए थे जो इधर से उधर लिफ़ाफ़े, चिट्ठियां वगैरह पहुंचकर स्वतंत्रता सेनानियों की मदद करते थे. विरोध या धरने प्रदर्शन के नोटिस चिपकाना भी इन्हीं का काम था. बड़ी होती इंदिरा घर में अकेलेपन के बीच में तमाम मकामों से गुजरीं. पिता नेहरू जेल में थे. उनकी बुआ विजयलक्ष्मी पंडित भी इस मामले में कोई मदद नहीं कर पाईं जो उनके साथ थीं उस वक़्त. बल्कि इंदिरा को और ज्यादा अकेला होने पर मजबूर कर दिया जब 13 साल की छोटी सी उम्र में इंदिरा ने विजयलक्ष्मी को बार-बार कहते सुना, ‘ये लड़की तो बदसूरत और बेवकूफ है’. इस बात ने इंदिरा को जितनी चोट पहुंचाई, उतनी शायद बहुत कम ही बातें पहुंचा पाईं उनके जीवन के शुरुआती सालों में.
इंदिरा अपने पिता के परिवार के साथ कम्फर्टेबल नहीं रह पाईं कभी. फोटो: विकिमीडिया
- इंदिरा ने फ़िरोज़ गांधी से शादी की. फ़िरोज़ पारसी थे. इंदिरा हिन्दू. उस समय यानी 1942 में इस तरह की बेमेल शादी एक बहुत बड़ा स्कैंडल थी. तिस पर से इंदिरा का अपना पति खुद चुनना लोगों को खल गया. बहुत बवाल मचा. लोग इतने नाराज़ हुए कि लगने लगा इनकी शादी ही नहीं हो पाएगी. तब महात्मा गांधी को जनता के सामने अपना समर्थन देना पड़ा इस शादी को. पब्लिक स्टेटमेंट में उन्होंने ये भी कहा कि जो लोग गालियां भरी चिट्ठियां भेज रहे हैं उनसे गुज़ारिश है कि अपना गुस्सा छोड़कर आने वाली शादी को अपना आशीर्वाद दें.
इंदिरा की शादी पूरे देश में विवाद का विषय बनी. फोटो: विकिमीडिया
- इंदिरा की शादी सफल नहीं थी. फ़िरोज़ के ऊपर कई महिलाओं के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखने का आरोप लगा था. इंदिरा इन सबसे टूट गई थीं. फ़िरोज़ की मौत के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान अपने बच्चों संजय और राजीव पर लगा दिया. दोनों पायलट थे. राजीव को पॉलिटिक्स में रुचि नहीं थी, संजय को कुछ ज्यादा ही थी. वो सारे राजनीति के किस्से फिर कभी. इंदिरा की जिंदगी में एक फांस और थी, वो थे उनकी बहू मेनका गांधी. उनके प्रिय बेटे संजय की पत्नी. इंदिरा और मेनका की कभी बनी नहीं ढंग से. संजय की मौत के बाद मेनका ने उनके कुछ पूर्व साथियों के साथ एक रैली अटेंड की. ये वो समय था जब इंदिरा राजीव को पॉलिटिक्स में प्रोमोट करने की कोशिश में लगी हुई थीं. मेनका की इस हरकत से इंदिरा बेहद नाराज़ हुईं, और उन्हें घर से निकलने को कह दिया. मेनका के बैग घर के बाहर निकले हुए रखे रहे, प्रेस ने उन्हें खूब कवर किया. इस पर खूब गॉसिप हुई, चटकारे लेकर गप्पें मारी गईं. मेनका तो घर से चली गईं, लेकिन अपने साथ वरुण को लेती गईं. अपने प्यारे पोते से बिछड़ना इंदिरा के लिए एक बहुत बड़ा धक्का था.
इंदिरा अपने दूसरे पोते और पोती, राहुल और प्रियंका से भी बेहद प्यार करती थीं. फोटो: इंडिया टुडे
- अपने करियर में इंदिरा गांधी ने दुश्मन काफी बनाए, तो दोस्त भी कम नहीं कमाए. जिस समय इंदिरा भारत को लीड कर रही थीं, उसी समय एक और नेता थीं विश्व पटल पर जिनका लोहा हर कोई मान रहा था. वो थीं इंग्लैण्ड की प्राइम मिनिस्टर मार्गरेट थैचर. उन्हें इतिहास में आयरन लेडी के नाम से जाना जाता है. इंदिरा और मार्गरेट एक दूसरे से 1976 में मिली थीं. 1984 में जब मार्गरेट थैचर एक बम ब्लास्ट में मरते मरते बचीं, तब इंदिरा ने उनसे सहानुभूति जताई थी. उसी के कुछ हफ्ते बाद जब इंदिरा की हत्या हुई, तब मार्गरेट जान की धमकियों को नज़र अंदाज़ करते हुए भी इंदिरा के अंतिम संस्कार में आयीं. उन्होंने राजीव को एक ख़त भेजा, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘ मैं किसी तरह बयान नहीं कर सकती कि आपकी मां की मृत्यु की खबर सुनकर मुझे कैसा महसूस हो रहा है, सिवाय ये कहने के कि ये मेरे परिवार के एक अपने को खोने जैसा है. हमारी कई बातचीतों में एक नजदीकी और आपसी समझ थी जो हमेशा मेरे साथ रहेगी. वो सिर्फ एक महान राजनेता ही नहीं बल्कि एक गर्मजोश और सबका ध्यान रखने वाली महिला थीं’.
इंदिरा के जाने के बाद भारतीय पॉलिटिक्स में एक नया युग शुरू हुआ. फोटो: इंडिया टुडे
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