कोई खेल खेलने के लिए बुर्क़ा पहनना अनिवार्य क्यों हो?

और अगर कोई पहनकर खेलना चाहे, तो उसे हटवाया क्यों जाए?

क्या दूसरे देश के खिलाड़ियों के लिए धार्मिक आधार पर ड्रेस कोड का नियम सही है?

एक खिलाड़ी अपने खेल के लिए कई समझौते करने को तैयार रहता है. क्योंकि हम खेल को अपनी ज़िंदगी में सबसे ऊंचा दर्जा देते हैं. लेकिन कुछ चीजों से समझौता नहीं किया जा सकता.

ये कहते हुए भारत की चेस स्टार सौम्या स्वामीनाथन ने एशियन नेशंस कप चेस चैंपियनशिप 2018 में हिस्सा न लेने का फैसला किया. सौम्या ने ये फैसला इसलिए लिया क्योंकि इस चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए उन्हें अपने मानवाधिकारों से समझौता करना होगा..

दरअसल ये चैंपियनशिप ईरान के हमादान शहर में 26 जुलाई से 4 अगस्त 2018 तक होनी है. और यहां औरतों को हिजाब या बुर्का पहनना अनिवार्य है. सौम्या नहीं चाहतीं कि उन्हें जबरदस्ती हिजाब पहनना पड़े. सौम्या ने कहा कि खिलाड़ी पर धार्मिक आधार पर ड्रेस कोड नहीं थोपा जाना चाहिए. इसलिए अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सौम्या के पास यही उपाय बचा कि वो इस चैंपियनशिप हिस्सा न लें.

8 साल की उम्र से चेस खेल रही हैं सौम्या. फोटो क्रेडिट: facebook/soumya 8 साल की उम्र से चेस खेल रही हैं सौम्या. फोटो क्रेडिट: facebook/soumya

अपने फेसबुक पेज पर सौम्या कहती हैं, 'ईरान में हिजाब पहनने की अनिवार्यता को मैं अपने मानवाधिकारों हनन मानती हूं. ये मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विश्वास, विचार और धर्म का उल्लंघन है. ऐसा लगता है कि अपने अधिकारों की रक्षा मैं ईरान न जाकर ही कर सकती हूं. मैं समझ सकती हूं कि ऑर्गनाइजर चाहते हैं हम अपने नेशनल टीम ड्रेस या फॉर्मल स्पोर्ट्स कपड़ों में हों, लेकिन स्पोर्ट्स में धार्मिक ड्रेस कोड की जगह नहीं होती.'

सौम्या ने लिखा, 'मुझे ये बताते हुए दुःख हो रहा है कि मैं एशियन नेशंस कप चेस चैंपियनशिप 2018 में हिस्सा लेने से इनकार कर रही हूं. क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मुझे किसी दबाव में हिजाब या बुर्का पहनना पड़े. मैं बेहद निराश हूं ये देखकर कि आधिकारिक प्रतियोगिता आयोजित कराते वक्त खिलाड़ी के अधिकार को इतनी कम महत्ता दी जाती है.'

सौम्या चेस में तीन बार नेशनल जूनियर गर्ल्स चैंपियन रही हैं. फोटो क्रेडिट: facebook/soumya सौम्या चेस में तीन बार नेशनल जूनियर गर्ल्स चैंपियन रही हैं. फोटो क्रेडिट: facebook/soumya

सौम्या कहती हैं कि भारत का प्रतिनिधित्व करना हर बार गर्व की बात रही है. उन्होंने अफसोस जताया कि वो इतनी महत्वपूर्ण प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकतीं.

ये पहली बार नहीं है जब कोई खिलाड़ी किसी ईवेंट से ऐसे ही मसले की वजह से निकला हो. साल 2016 और 2013 में भारत की बेहतरीन शूटर हिना सिद्धू भी ईरान के इसी अनिवार्य नियम के तहत एशियन एयरगन चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं ले सकी थीं. हिना ने हिजाब पहनने से इनकार कर दिया था. हिना ने भी कहा था कि विदेशी मेहमानों और खिलाड़ियों पर हिजाब पहनने की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए.

कौन हैं सौम्या स्वामीनाथन?

आठ साल की उम्र से चेस खेल रही सौम्या महाराष्ट्र के पुणे से हैं. सौम्या चेस में तीन बार नेशनल जूनियर गर्ल्स चैंपियन रही हैं. साल 2007 में सौम्या को वुमन इंटरनेशनल मास्टर और 2008 में वुमन ग्रैंड मास्टर के टाइटल से नवाज़ा जा चुका है.

लक्ष्य एनजीओ सौम्या को सपोर्ट देता है. फोटो क्रेडिट: facebook/soumya लक्ष्य एनजीओ सौम्या को सपोर्ट देता है. फोटो क्रेडिट: facebook/soumya

सौम्या के इस फैसले को सोशल मीडिया पर सराहा जा रहा है. सौम्या के चैंपियनशिप में हिस्सा न लेने से लोग भले ही निराश हैं, लेकिन इसे महिला अधिकारों के सम्मान के तौर पर समर्थन दिया जा रहा है.

बीते दिनों हमने आपको एक ऐसी लड़की के बारे में बताया था जो हिजाब पहनकर पावर लिफ्टिंग करती है. मज़ीज़िया नाम की इस लड़की को बुर्क़ा पहनने के लिए विरोध का सामना करना पड़ा था. यहां पर हमारा सवाल बस इतना है कि किसी के कपड़े उसके खेल को परिभाषित क्यों करते हैं, खासकर जब मसला औरत का हो.

 

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