भारतीय एक्टर्स की वो विदेशी फिल्म जो ऑस्कर लाने का दम रखती है
बॉलीवुड के शोर में जिस अच्छे सिनेमा की हम कद्र नहीं करते वो विदेश में इतिहास रच देता है.
क्या होता है जब घर झोले में भरकर लोग उस जगह चले जाते हैं जहां घर की बात करने का कोई मतलब नहीं होता?
लार्ड ऑफ द रिंग्स तीन फिल्मों की एक सीरीज़ है. उसमें दूसरी फिल्म का नाम द टू टावर्स है. उस फिल्म में एक सीन है. फ्रोडो बैगिन्स और सैमवाइज़ गैमजी शायर (shire) से दूर जा चुके हैं. उनको सौरोन की अंगूठी बर्बाद करने के टास्क में काफी मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं. उबड़ खाबड़ रास्ते, भूख प्यास, राक्षस, सब कुछ का सामना करते वो चले जा रहे हैं. उसी के बीच एक मुश्किल रास्ते से गुज़रते हुए सैमवाइज़ के झोले से एक डिब्बा गिरता है. फ्रोडो और सैम रस्सी पर लटके हुए हैं. सैम फ्रोडो से कहता है उसे पकड़ ले. फ्रोडो वो डब्बा पकड़ लेता है. सैम उसे बेहद संभाल कर वापस रख लेता है. फ्रोडो के पूछने पर, कि इसमें क्या है, सैम बताता है कि उसमें मसाले हैं. शायर के.
ये कि वो घर का एक टुकड़ा है.
फ्रोडो और सैम इतनी दूर आ चुके हैं अपने घर से कि उनको ये भी पता नहीं कि वो कभी वापस लौट पाएंगे या नहीं, लेकिन अपने साथ घर को लिए चलने की इच्छा सबमें होती है. कुछ लोग घर की खुशबू मसालों में लपेट लेते हैं, कुछ वहां के आंगन की मिट्टी के सोंधेपन में. कुछ लोग वहां के तौर तरीकों में.
नॉर्वे की पाकिस्तानी मूल की डिरेक्टर इरम हक़ अपने हिस्से का पाकिस्तान एक फिल्म में उड़ेल आई हैं और अब ये फिल्म नॉर्वे की तरफ से ऑस्कर में भेजी गई है. ऑस्कर क्या? एकेडमी अवार्ड्स. पूरी दुनिया की फ़िल्मी दुनिया के अवार्ड्स का बाप. उसमें फॉरेन फिल्म्स की भी एक कैटेगरी होती है. नार्वेजियन भाषा में बनी ये फिल्म उसी कैटेगरी में चुनी जाने के लिए भेजी गई है.
हम इस बारे में क्यों बात कर रहे हैं. इसलिए बात कर रहे हैं क्योंकि इस फिल्म के लीड रोल में आदिल हुसैन और एकावली खन्ना हैं जो कि भारतीय हैं. आदिल हुसैन वही जिन्होंने इंग्लिश विंग्लिश में श्रीदेवी के पति का किरदार निभाया था. एकावली खन्ना भी फिल्मों और टीवी एडवर्टिज़मेंट्स में दिखती रही हैं. उनकी हालिया फिल्म्स थीं 'अंग्रेजी में कहते हैं' और 'वीरे दी वेडिंग'.
फिल्म का नाम है What Will People Say. नार्वेजियन भाषा में Hva Vil Folk Si. कहानी है एक पाकिस्तानी परिवार की जो नॉर्वे में बस गया है. आदिल हुसैन (मिर्ज़ा) और एकावली खन्ना(नजमा) की बेटी हैं मारिया मोज्देह (निशा). ये फिल्म इरम की असल जिंदगी से काफी मिलती जुलती है. फिल्म में निशा नॉर्वे में पैदा हुई लड़की है जिसके पेरेंट्स अपने पाकिस्तान को भूलना नहीं चाहते . वो इस कंफ्लिक्ट में बड़ी होती है. इरम को भी 14 साल की उम्र में उनके पेरेंट्स ने पाकिस्तान भेज दिया था. उस का उनके मन पर काफी गहरा असर पड़ा. ये फिल्म उनका दस्तावेज है बिताये गए उस समय का. झेले गए उस एक एक पल का.
एकावली का किरदार इस फिल्म में नजमा का है. निशा की मां. वो किरदार जिससे ये आशा होती है कि वो अपनी बेटी को समझेगी. लेकिन उसका व्यवहार ऐसा कहीं से नहीं होता कि निशा को कोई सहारा मिल सके. एकावली से हमने बात की इस बारे में.
उन्होंने इस रोल के बारे में और इसको लेकर अपनी समझ के बारे में हमसे काफी बातचीत की. उन्होंने इस किरदार को लेकर कई बातें साझा कीं. जैसे नजमा का निशा के प्रति इतना कड़वाहट से भर जाना कैसे संभव है. इतना कि वो अपनी बेटी को खुद से अलग करके दूर देश भेज दे? नजमा के लिए प्यार का आईडिया सिर्फ इस चीज़ से रिफ्लेक्ट होता है कि उसका कंट्रोल कितना है. वो चीज़ उसके लिए उसकी अपनी बेटी पर भी लागू होती है. पेरेंट्स अपने बच्चों के ज़रिये जीना चाहते हैं, और नजमा के लिए जीना वही है जो उसने अभी तक देखा.
16-17 साल की कच्ची उम्र में अपना देश छोड़ कर एक ऐसे देश आ जाना जहां की न बोली समझ में आती हो, न कल्चर, वहां पर एक चीज़ जो सुकून देती है और कांस्टेंट रहती हैं वो है अपने संस्कृति से जुड़े रहना. नजमा की जिंदगी में जो कंट्रोल उसने अपने बाप-भाई और पति से देखा वही उसके लिए प्यार की सीख बन गया, जो उसकी बेटी निशा पर भी उतरा. पितृसत्ता इसी तरह औरतों के ज़रिए आगे बढती है, बिना उन्हें इसका एहसास दिलाए. निशा के कनफ्लिक्ट और आइडेंटिटी क्राइसिस में ये चीज़ नीम चढ़ा करेला साबित हुई. सबसे ज्यादा चुभने वाली बात ये थी कि उसकी मां को कुछ पता भी नहीं था कि वो अपनी बेटी के साथ क्या कर रही है.
इरम ने ये पूरी कहानी एक ऐसी पीढ़ी की जिंदगी खांचे में उतारने के लिए बनाई जिसका हिस्सा वो खुद रही हैं, और अभी भी करोड़ों लोग इससे रिलेट कर सकते हैं.
एकावली ने बताया कि इरम की इच्छा थी कि कोई ऐसी एक्ट्रेस इस किरदार को निभाए जो परदे पर लोगों का ध्यान तो खींचे, लेकिन उसका किरदार लोगों की नफरत का केंद्र भी बने. जब ये ऑडिशन करना था, तब एकावली कोलकाता में थीं और उनको रात के 10.30 बजे फ़ोन आया कि उन्हें अगले दिन 12 बजे मुंबई में ये ऑडिशन देना है. हबड़-तबड़ में तैयारी हुई, और ऑडिशन क्लियर हुआ.
आज ये फिल्म इतिहास रचने के कगार पर है. नॉर्वे की तरफ से ये फिल्म ऑस्कर में भेजी गई है और ऐसी फिल्म है जिसमें लीड रोल में भारतीय हैं. भारतीय नागरिक हैं. आदिल और एकावली. स्लमडॉग मिलियनेयर में देव पटेल और फ्रीडा पिंटो ने मुख्य किरदार निभाया था. वो भारतीय ओरिजिन के थे, लेकिन भारतीय नागरिक नहीं थे. देखते हैं क्या होता है.
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