क्या करें, अगर आपका पति आपको पीटता या सास ताने मारती है
अगर ससुराल में दम घुटता हो, तो ये जरूर पढ़ें.
आप पढ़ रहें हैं हमारी स्पेशल सीरीज़ औरतों के कानून का पहला भाग.
मेरे घर के काम करने वाली दीदी को उसका पति पीटता था. इतनी शराब पीता था कि बच्चों को खाने को नहीं मिलता था. दीदी ने कुछ साल बच्चों की खातिर सब सहा. पर जब पानी सर के ऊपर से निकलने लगा, तो उसने शिकायत दर्ज करवा दी. कई औरतें हैं जो इस तरह शादियों में दसियों साल बिता चुकी हैं. मगर परिवार की इज्जत और बच्चों की ख़ुशी की वजह से चुप रहती हैं. आज उन्हें ये जान लेना चाहिए कि उनकी ख़ुशी और सुकून भी जरूरी है.
सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि पीड़ित महिला को इस शोषण के खिलाफ क्या कदम उठाना है, इसकी भी जानकारी नहीं होती. बल्कि हममें से कई औरतों को तो ये तक पता नहीं होता कि वो क्या-क्या हरकतें हैं जो घरेलू हिंसा में आती हैं.
तो आइए, समझते हैं क्या है घरेलू हिंसा और इसके खिलाफ कानूनी तौर पर कौन से कदम उठाए जा सकते हैं.
क्या और कितने तरह की होती है घरेलू हिंसा?
प्रिवेंशन ऑफ़ डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 (घरेलू हिंसा की रोकथाम अधिनियम 2005) के तहत घरेलू हिंसा चार तरह की होती है.
I. शारीरिक हिंसा- किसी भी तरह की शारीरिक तकलीफ, दर्द या ज़िन्दगी को खतरा हो, तो ये शारीरिक हिंसा हुई. डराना और धमकाना भी इसका एक हिस्सा है.
II. यौन हिंसा- यौन हिंसा वो है, जिसमें किसी भी औरत के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे, उनको बेइज्ज़त किया जाए या उनके प्राइवेट पार्ट्स पर हमला हो.
III. भावनात्मक शोषण- भावनात्मक शोषण वो होता है, जैसे लड़की पैदा होने पर गाली-गलौच करना, मज़ाक करना या तंज कसना. या ऐसी कोई भी बात करना जो किसी को मानसिक तौर पर परेशान करे.
IV. आर्थिक दुर्व्यवहार- आर्थिक दुर्व्यवहार वो है, जब महिला को रोज़मर्रा के खर्चे के लिए पैसे नहीं दिए जाते, ना ही बच्चों के पालन-पोषण के लिए कुछ दिया जाता है. जिन चीजों पर किसी का हक़ है, वो उससे ले लिया जाए. अगर महिला नौकरी नहीं करती, पैसों के लिए अपने पति पर निर्भर है और वो पति उसे पैसे देना बंद कर दे, जिससे महिला को रोज़ तकलीफ पहुंच रही हो, ये भी हिंसा ही है.
ये जरूरी नहीं है कि घरेलू हिंसा सिर्फ महिला का पति करे. उसके घरवाले और रिश्तेदार भी घरेलू हिंसा कर सकते हैं.
प्रिवेंशन ऑफ़ डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 के तहत शोषण की शिकार हुई महिलाओं को न्याय देने के साथ आर्थिक और मेडिकल सहायता देने का भी प्रावधान है. इस कानून के तहत अगर पीड़ित महिला शिकायत करने के बाद भी उसी घर में रहना चाहती है, तो वो रह सकती है, उसे कोई घर से नहीं निकाला जा सकता. अगर पीड़िता के पास रहने की जगह नहीं है, तो वो भी उपलब्ध कराने का कानून है. अगर शोषण का शिकार महिला को अपनी जान का खतरा है, तो वो पुलिस प्रोटेक्शन की भी मांग कर सकती है.
आमतौर पर ये माना जाता है कि अगर किसी महिला का पति उसकी पिटाई करता है, तो फौरन पुलिस के पास जाना चाहिए. असल में घरेलू हिंसा के मामले में चीज़ें थोड़ी अलग होती हैं.
1. महिला को एक वकील रखना होगा, जो केस को मजिस्ट्रेट तक ले जाएगा.
2. महिला हेल्पलाइन से भी मदद मांगी जा सकती है.
3. अगर पीड़िता वकील नहीं कर सकती, तो उसे अपने क्षेत्र के प्रोटेक्शन ऑफिसर की सहायता लेनी होगी. सरकार ने हर क्षेत्र में प्रोटेक्शन अधिकारी नियुक्त कर रखा है. किसी क्षेत्र का प्रोटेक्शन ऑफिसर कौन है, इसकी जानकारी पुलिस से ली जा सकती है.
4. ये प्रोटेक्शन ऑफिसर पीड़िता की शिकायत दर्ज करता है. वो महिला के साथ हुई घरेलू हिंसा और उसकी मांगों की फाइल तैयार करता है. यही फाइल पुलिस स्टेशन और मजिस्ट्रेट के पास भेजी जाती है.
5. फाइल मिलने पर मजिस्ट्रेट अपने विवेकानुसार सर्विस प्रोवाइडर को आदेश देता है कि वो शिकायत करने वाली महिला के लिए रहने की जगह दिलाए और कानूनी कार्रवाई के दौरान महिला को आर्थिक मदद मुहैया कराए. सर्विस प्रोवाइडर इलाके का एनजीओ हो सकता है.
6. शिकायत दर्ज होने के तीन बाद महिला के पति और उसके परिवार को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया जाता है. इस पेशी के दौरान शिकायत करने वाली महिला को भी मौजूद रहना होता है.
7. शिकायत दर्ज कराने के बाद मुकदमा होगा या नहीं, ये केस पर निर्भर करता है. अगर केस सच्चा होता है, तो पति और उसके घर वालों के खिलाफ कार्रवाई होती है.
8. महिला को बयान दर्ज कराने के लिए कोर्ट बुलाया जाता है.
9. शिकायत कराने वाली महिला के पति और उसके घरवालों को फौरन जेल नहीं होती, मामला साबित होने के बाद ही कोई एक्शन लिया जाता है.
अगर बच्चे हैं, तो उनका क्या होगा?
अगर शोषण का शिकार महिला के बच्चे हैं, तो वो अपने बच्चों की कस्टडी ले सकती है. इसके लिए कोर्ट में अर्जी देनी होती है. अगर इजाज़त मिल जाती है, तो महिला को ये तय करना होता है कि वो बच्चों को अपने पति से मिलने की मंजूरी देना चाहती है या नहीं. बच्चों की कस्टडी लेने वाली महिला अगर कमाती नहीं है, तो भी उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि कोर्ट बच्चों के पालन-पोषण व खर्चे के लिए उसके पति को हर महीने का खर्चा देने का आदेश देगी. अगर कोर्ट के आदेश पर भी पति खर्चा नहीं देता है, तो उसे जुर्माना भरना होगा.
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