एक 'हिंदू दुल्हन' कौन हो सकती है, इसपर मद्रास हाई कोर्ट ने बहुत अहम फ़ैसला सुनाया है

इस फ़ैसले से 'दुल्हन' की परिभाषा बदल गई है.

सरवत फ़ातिमा सरवत फ़ातिमा
अप्रैल 24, 2019
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने चौके पर चौके मारे थे. एक के बाद एक ऐतिहासिक फ़ैसले सुनाए थे. सितंबर 2018 में केरल हाई कोर्ट ने कहा था कि लेस्बियन जोड़े लिव-इन में रह सकते हैं. साल 2019 में भी मद्रास हाई कोर्ट ने एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) कम्युनिटी के हक में काफ़ी दमदार फ़ैसला सुनाया है.

क्या है ये फ़ैसला ?

मद्रास हाई कोर्ट ने 22 अप्रैल को एक फ़ैसला सुनाया. ‘हिंदू मैरिज एक्ट’ के मुताबिक, ‘ब्राइड’ यानी दुल्हन की जब बात आएगी तो उसमें ट्रांससेक्शुअल भी शामिल होंगे. यानी वो लोग जो पैदा लड़का हुए थे, पर वो ख़ुद को औरत मानते हैं. औरत बनने के लिए वो सर्जरी और हॉर्मोन की मदद लेते हैं. इस फ़ैसले के तहत दुल्हन अब सिर्फ़ वो नहीं जो पैदा औरत हुई थी.

किसने सुनाया फ़ैसला ?

ये फ़ैसला जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने सुनाया. उन्होंने फ़ैसला सुनाते समय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भी ज़िक्र किया. जो कोर्ट ने होमोसेक्शुअलिटी को कानूनी अपराध न होना घोषित करते समय सुनाया था. साथ ही उन्होंने रामायण और महाभारत का भी ज़िक्र किया. उनके मुताबिक शरीर शब्द का मतलब सिर्फ़ शरीर तक सीमित नहीं रहना चाहिए.

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(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)

क्यों सुनाया गया ये फ़ैसला ?

अरुण कुमार और श्रीजा ने अक्टूबर 2018 में शादी की थी. तूतीकोरिन के एक मंदिर में. श्रीजा एक ट्रांसवुमन हैं. यानी वो पुरुष पैदा हुई थीं, पर ऑपरेशन करवाकर अब वो औरत की ज़िन्दगी जी रही हैं. जब शादी रजिस्टर करवाने की बारी आई तो रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के अधिकारीयों ने उसे रजिस्टर करने से मना कर दिया.

थक-हारकर इस जोड़े को कोर्ट कि मदद लेनी पड़ी.

प्रशासन का कहना था कि मैरिज रजिस्ट्रार के पास ये अधिकार था कि वो शादी रजिस्टर करने से मना कर सकता था. क्योंकि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन पांच के मुताबिक, सिर्फ़ एक औरत ही अपनी शादी के दिन दुल्हन कहलाती है.

ये तर्क भी जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने ख़ारिज कर दिया.

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