डियर आयुषी, याद रखो कि जो वक्त है, बस आज और अभी है, कल जैसा कुछ नहीं

कल या थोड़ी देर बाद की आदत जो है, इसी ने मुझे कामकाजी बनने से रोक रखा है. तुम इस चक्रव्यूह में मत फंसना.

आशुतोष चचा आशुतोष चचा
दिसंबर 20, 2018
प्रतीकात्मक तस्वीर- Pixabay

आप पढ़ रहे हैं हमारी सीरीज- 'डियर आयुषी'. रिलेशनशिप की इस सीरीज में हम हर हफ्ते 'चचा' की एक चिट्ठी पब्लिश करेंगे. वो चिट्ठी, जिसे वह अपनी बेटी आयुषी के लिए लिखते हैं. इन चिट्ठियों से आपको ये जानने को मिलेगा कि एक पिता अपनी बेटी के लिए क्या चाहता है. ये चिट्ठियां हर उस पिता की कहानी बयान करेंगी, जिनके लिए उनकी बेटी किसी 'परी' से कम नहीं होती, जिनके लिए उनकी बेटी कुदरत की सबसे प्यारी रचना होती हैं.

dear-ayushi_122018061506.png

डियर आयुषी,

मैं तुम्हारे साथ बैठकर जब भी फेसबुक लाइव करता हूं तो तुम बीच में कहती रहती हो मेरे पापा का बड्डे है. तुमको तो रोज बड्डे चाहिए. यहां एक दिन कम हो गया. हालांकि दिन कम होने की कोई खास टेंसन नहीं है. रोज ऐसा कौन सा दशरथ मांझी की तरह पहाड़ खोद रहे हैं जो इतिहास में नाम लिखवा जाएंगे. अगर ऐसे ही चलता रहा तो इतिहास भूगोल नागरिक शास्त्र सब मुझे भूल जाएंगे. अपने काम टालने की इतनी बुरी आदत है कि क्या कहें. कभी-कभी तो लगता है कि आज कुछ कर लेता तो इतिहास बना देता. लेकिन नहीं, बड्डे वाला डे भी निकल गया.

अपना काम टालने की आदत मजाक में नहीं लेनी चाहिए. तुमको कूल लोग व्हाट्सऐप पर मैसेज भेजेंगे. जब तुम बड़ी हो जाओगी. मैसेज ये- आज करे सो काल कर, कल करना है सो परसों, जल्दी-जल्दी क्यों करता है अभी तो जीना बरसों. कसम से बता रहे हैं महा झुट्ठई है ये. मैंने बहुत सारे प्लान बनाए. 8-10 गाने लिखे और फिर छोड़ दिए. 2-4 कहानियां लिखीं और कल पर छोड़ दीं. एक उपन्यास टाइप का लिखने बैठा तो 10 पन्ने लिखकर कल पर छोड़ रखा है.

बहाने बहुत सारे हैं मेरे पास. इस वीकेंड पर लिखेंगे. पहले छोटा वाला काम खतम कर लें तब ये बड़ा काम उठाएं. पता नहीं कब तक पूरा होगा, कैसे करें. इन्हीं सब बहानों में उलझकर 10-20 चीजें होल्ड पर डाल रखी हैं. उनमें से अगर एक भी पूरी हो जाती तो कुछ बन जाते. बेवकूफ नहीं, सच में कुछ बन जाते. ऑफिस का काम जितना वक्त नहीं लेता उससे ज्यादा फोन खा लेता है. गजब अड़ंगा डाल रखा है मुझे महान आदमी बनने में. मुझे पता है कि मैं अपनी छोटी-छोटी कल्पनाओं के सहारे स्टीव जॉब्स या स्टीवन स्पीलबर्ग बनने नहीं जा रहा, लेकिन कल पर टालने की आदत ने तो कुछ भी बनने लायक नहीं छोड़ा है.

beach-1326656_960_720_750x500_122018061547.jpgप्रतीकात्मक तस्वीर- Pixabay

मैं तुमको एक राज़ की बात बताऊं. ये चिट्ठी भी मैं कल लिखने वाला था. क्योंकि आज मैंने इतने मैसेज लिखे हैं कि उंगलियां घिस गई हैं. इस थकान वाले बहाने पर तो मैंने काबू पा लिया. लेकिन ये सिर्फ एक चिट्ठी थी. अगर चार पन्ने लिखने होते तो लैपटॉप उठाकर किनारे रखता और फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप, यूट्यूब पर जुटा होता. फोन पर बात ज्यादा हो नहीं पाती तो उसकी ज्यादा टेंसन नहीं. तुम्हें पता है मुझे लिरिक्स लिखने में एवरेज 20 मिनट लगते हैं. लेकिन चार-चार लाइन लिखकर बहुत सारे छोड़ रखे हैं. और फोन की लत ऐसी है कि टाइम देखने के लिए उठाते हैं, फिर सारे नोटिफिकेशन, मैसेज देखकर वापस रख देते हैं. फिर याद आता है कि टाइम तो देखा ही नहीं.

ये कल या थोड़ी देर बाद की आदत जो है, इसी ने मुझे कामकाजी बनने से रोक रखा है. तुम इस चक्रव्यूह में मत फंसना. कभी-कभी तो ऐसा होता है कि सैटरडे का दिन टाइमपास करने में और संडे उसी पर अफसोस करने में बीत जाता है. तुमको हमेशा याद रखना चाहिए कि जो वक्त है, बस आज और अभी है. अगर ये हाथ से निकल गया तो तुम्हारा बहुत जरूरी हिस्सा ले गया. इसे वेस्ट मत करो, इस्तेमाल कर लो.

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group