डियर आयुषी, सवाल पूछना कभी मत छोड़ना
जिस दिन तुमसे सवाल न पूछने को कहूं, ये चिट्ठी मुझे पकड़ा देना
आप पढ़ रहे हैं हमारी सीरीज- 'डियर आयुषी'. रिलेशनशिप की इस सीरीज में हम हर हफ्ते 'चचा' की एक चिट्ठी पब्लिश करेंगे. वो चिट्ठी, जिसे वह अपनी बेटी आयुषी के लिए लिखते हैं. इन चिट्ठियों से आपको ये जानने को मिलेगा कि एक पिता अपनी बेटी के लिए क्या चाहता है. ये चिट्ठियां हर उस पिता की कहानी बयान करेंगी, जिनके लिए उनकी बेटी किसी 'परी' से कम नहीं होती, जिनके लिए उनकी बेटी कुदरत की सबसे प्यारी रचना होती हैं.
डियर आयुषी,
तुम्हारी मम्मी जब भी फोन करती हैं तो बाकी बातें बाद में, तुम्हारी शिकायतें पहले करती हैं. तुम उनको इतना परेशान भी तो करके रखती हो. तुम्हारे सवाल ग्लोबल वार्मिंग की तरह बढ़ते जा रहे हैं. जितने सवाल तुम करती हो उतने अगर यक्ष कर लेता तो युधिष्ठिर अपने भाइयों को कभी न बचा पाते. कभी कभी तो लगता है कुदरत ने हमें बच्ची नहीं क्वेस्चन पेपर सेट करके दिया है. दो दिन पहले तुमने सिंकाई वाला हॉट बैग देखकर जो सवालों की लिस्ट मम्मी को सौंपी थी, अभी तक वो उनके जवाब खोज रही हैं. ये कहां से आया? मुझे क्यों नहीं दिखा? अच्छा पीपी ने दिया? तो पीपी ने आपको क्यों दिया? मुझे क्यों नहीं दिया, क्या वो मुझे प्यार नहीं करती? इससे क्या करते हैं? अच्छा पीठ और पेट के नीचे रखते हैं? दर्द करता है तो? हां मेरी पीठ दर्द कर रही है, इसको गरम करो. अच्छा सुई लगवाने पर इसको लगाया जाता है? चलो मुझे सुई लगवा दो.
तुम्हारा क्यूरियोसिटी लेवल यही रहा तो पता नहीं क्या होगा. जो भी होगा, अच्छा होगा. तुमको मैं जिस दिन कहूं कि तुम बहुत सवाल पूछती हो, कम पूछा करो. इस वाली चिट्ठी का प्रिंटआउट मेरे हाथ में पकड़ा देना. ह्यूमन नेचर है यार, बंदा खुद लिखकर भूल जाता है. मैं कुछ भी भूल जाऊं, तुम सवाल पूछना मत भूलना. ये हमको धरती के बाकी स्पीसीज से अलग करता है. तुमने देखा है न कि इंसान का दिमाग शरीर के सबसे ऊपर के हिस्से में होता है. वो इसीलिए कि हम किसी भी काम को करने से पहले, कुछ भी बोलने से पहले अपने दिमाग की राय लें, उससे सवाल पूछें.
सांकेतिक तस्वीर: ट्विटर
तुम्हें पता है कि जब बच्चा पैदा होता है तो उसका क्यूरियोसिटी लेवल टॉप पर होता है. वो हर चीज मुंह में भर लेता है. उसको अपने शरीर के एक ही सेंसर के बारे में पता रहता है. मुंह. क्योंकि सबसे पहले उसका ही इस्तेमाल शुरू होता है, दूध पीने में. हाथ पैर वगैरह तो उसके कंट्रोल में रहते नहीं. तो सामने दिखती हर चीज को चखकर वो महसूस करता है कि ये क्या है. थोड़ा बड़ा होता है तो उसके मम्मी पापा उसको खाने से रोकते हैं और बोलते हैं- अरे ये खतरनाक चीज है. ये मिट्टी है. ये प्लास्टिक है. ये चाकू है. ये खेलने के लिए है. ये खाने के लिए है. तब तक उसका मुंह खाने के साथ बोलने भी लगता है. तो उसको अहसास हो जाता है कि उसके पास मुंह या जीभ के अलावा दो सेंसर और हैं. मम्मी पापा. उनसे भी सवाल करके ठीक ठाक जानकारी जुटाई जा सकती है.
सांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे
उसके बाद मम्मी पापा स्कूल में डाल देते हैं. वहां टीचर्स का काम ही यही होता है कि वो बच्चे की क्यूरियोसिटी शांत करें. उनके सवालों का समुचित जवाब दें. खेल तब बदल जाता है जब मम्मी पापा या टीचर्स ये कहने लगते हैं- जितना कहा है उतना सुनो. फालतू सवाल न करो. जिनकी ड्यूटी जवाब देने की है वो सवाल करने से ही रोकने लगते हैं. या एक जवाब देने के बाद बता देते हैं कि यही अंतिम सत्य है. हमारा एक्सपीरिएंस ही सर्वोपरि है. हमने जो किताबों में पढ़ा है वही बेस्ट है. इसके आगे दुनिया नहीं है. तथाकथित धार्मिक गुरू लोग भी यही करते हैं. वो हर आदमी की उत्सुकता को आस्था की कुल्हाड़ी से काट देते हैं. सवाल पूछने की सलाहियत के बिना, उत्सुकता रहित इंसान का दिमाग जानवर जैसा होता है. जानवरों को इससे ऑफेंड नहीं होना चाहिए, वो अलग क्वालिटीज में बेस्ट हैं.
तुम्हारे सवाल हमको कभी कभी मुश्किल में भी डालते हैं. मम्मी का सैनिटरी पैड देखकर भी तुमने सवालों की झड़ी लगा दी थी. कुछ सवालों का जवाब हम अभी दे नहीं सकते. अगर दे भी देंगे तो वो तुम्हें समझ नहीं आएगा. अगर एक स्टेप आ भी गया तो अगला सवाल उससे बड़ा होगा. तो मैं तुम्हें बता देता हूं कि ये समझने में तुम्हें थोड़ा टाइम लगेगा. तो सही वक्त का इंतजार करो. मैं तुम्हें कोई झूठ बताकर या टालकर नहीं रखूंगा. जितना मुझे पता है वो सारे जवाब दूंगा. जो नहीं जानता उसके लिए तुम्हें रिसर्च करने की सलाह दूंगा. लेकिन तुम कभी सवाल करना मत छोड़ना. किसी के दबाव में नहीं, जवाब के अभाव में नहीं.
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