डियर आयुषी: कोई इंसान कितना भी गन्दा हो, उससे कुछ न कुछ सीखा जा सकता है
आप पढ़ रहे हैं हमारी सीरीज- 'डियर आयुषी'. रिलेशनशिप की इस सीरीज में हम हर हफ्ते 'चचा' की एक चिट्ठी पब्लिश करेंगे. वो चिट्ठी, जिसे वह अपनी बेटी आयुषी के लिए लिखते हैं. इन चिट्ठियों से आपको ये जानने को मिलेगा कि एक पिता अपनी बेटी के लिए क्या चाहता है. ये चिट्ठियां हर उस पिता की कहानी बयान करेंगी, जिनके लिए उनकी बेटी किसी 'परी' से कम नहीं होती, जिनके लिए उनकी बेटी कुदरत की सबसे प्यारी रचना होती हैं.
डियर आयुषी,
अभी तो छोटा भीम और बाल हनुमान देख लो. बड़ी हो जाओ तो बियर ग्रिल्स का शो दिखाऊंगा. अभी तुम उसको देखकर बोर हो जाओगी क्योंकि उसमें बच्चों के लायक कुछ नहीं है. वो एक बैग लेकर कहीं भी कूद जाता है. उसके पास एक चाकू रहता है. कुछ भी काटने के लिए. एक चक मक पत्थर रहता है. ज्वाला प्रज्ज्वलित करने के लिए. अरे आग जलाने के लिए यार. उसको हर जिंदा चीज में प्रोटीन दिखता है. सांप, बिच्छू, मेढक, कीड़े सब खा लेता है. बहुतै गन्दा है. ऑफकोर्स सब स्क्रिप्टेड होता है, फिर भी.
मैंने तुमको कई बार बताया है कि कोई इंसान कितना भी गन्दा हो, उससे कुछ न कुछ सीखा जा सकता है. ये आदमी तो ख़ैर शो करता है और ऐसे कैमरे के सामने ग़रीबी, एडवेंचर दिखाने के लाखों रुपये लेता है. लेकिन एक आदमी सच में ऐसा ही था. जो सब कुछ छोड़कर जंगल निकल गया था. वहां से उसकी लाश ही मिली थी. उसी की ज़िंदगी पर 'इनटू द वाइल्ड' पिच्चर बनी है. इन लोगों का उदाहरण मैं तुमको पकाने के लिए नहीं दे रहा मेरी बच्ची. वो तो तुम मेरी सुरीली आवाज में गाना सुनकर भी पक सकती हो. ये लोग हमें समझाते हैं कि हमारी बेसिक ज़रूरतें बहुत कम हैं. हम जो सारी जिंदगी हाय हाय करते रहते हैं, वो दरअसल हमारी नासमझी है.
सांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे
लालच बहुत तरह के मोटीवेशन देता है. मुझे बहुत साल पहले एक ब्रांच मैनेजर मिला था. जब मैं लखनऊ में चार हजार रुपये महीने की नौकरी करता था. लखनऊ के ब्रांच मैनेजर्स की एक खासियत होती है कि एसी सिर्फ उसी के केबिन में लगा होता है. उसके पीछे का राज़ मुझे कभी समझ नहीं आया. उस मैनेजर ने हमको सेल्स के लिए बहुत मोटिवेट किया. मेरे पास टूटी साइकिल थी. वो कहता था कि तुम डेढ़ सौ सीसी पल्सर खरीद लो. तुम्हारी ज़रूरत बढ़ेगी तो कमाई खुद बढ़ जाएगी. फिर तुमको कमाई बढ़ाने की चिंता होगी. फिर तुम और मेहनत करोगे. और शाम तक एक सेल ले गिरोगे.
मल्टी लेवल मार्केटिंग वाले इसी तरह मोटिवेट करते हैं. इत्ता बना लो तो बाइक, इत्ता बना लो तो कार, इत्ता बना लो तो सिंगापुर में बंगला, इत्ता बना लो तो एमा वॉटसन के साथ शादी. बेसिकली वो मेम्बर बनाने को नहीं बेवकूफ़ बनाने को मोटिवेट करते हैं. जिसका बेस होता है वही लालच. आयरनी ये है कि इन धंधों में बेरोजगार ही फंसते हैं. क्योंकि जिनके पास काम है वो इनकी बात सुनता नहीं. जिनके पास नहीं है वो काम पाने के लिए 'भागते भूत की लंगोटी भली' में फंस जाते हैं.
सांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे
मैं जब 3 साल पहले दिल्ली आया तो कमाई कम थी. अब उसकी डेढ़ गुनी है. मैं कैलकुलेट करता हूँ तो लगता है कि अब कम है. मैं हिसाब लगाता हूँ कि आखिर मेरी कौन सी ज़रूरतें बढ़ गईं. पता चला कि ज़रूरतें तो वही हैं. जितनी रोटियां खाता था, अब भी उतनी ही खाता हूं. तुम्हारे स्कूल का ख़र्च बढ़ा है बस. असल में वो बदल गया है जिसे दुनिया 'लाइफ़ स्टाइल' कहती है. भौकाल ने घेर लिया. अगर ये भौकाल माइनस कर दें तो अब भी ज़रूरतें उतनी ही हैं. मैं काफ़ी दिन परेशान रहा कि अगर कमाई न बढ़ी तो कैसे काम चलेगा. फिर जब दिमाग सारी दौड़ भाग करके हार गया तो हल मिला. मन ने कहा कि जैसे थे, वही रहो. टेंसन लेने का नहीं. ज़रूरतें घटा लो, ज़िन्दगी आसान हो जाएगी.
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