डियर आयुषी, मस्त रहो मस्ती में, बस आग न लगाओ बस्ती में
तुम ऐसी जगह हो जहां किसी के पास किसी को जज करने की फुर्सत नहीं
आप पढ़ रहे हैं हमारी सीरीज- 'डियर आयुषी'. रिलेशनशिप की इस सीरीज में हम हर हफ्ते 'चचा' की एक चिट्ठी पब्लिश करेंगे. वो चिट्ठी, जिसे वह अपनी बेटी आयुषी के लिए लिखते हैं. इन चिट्ठियों से आपको ये जानने को मिलेगा कि एक पिता अपनी बेटी के लिए क्या चाहता है. ये चिट्ठियां हर उस पिता की कहानी बयान करेंगी, जिनके लिए उनकी बेटी किसी 'परी' से कम नहीं होती, जिनके लिए उनकी बेटी कुदरत की सबसे प्यारी रचना होती हैं.
डियर आयुषी,
तुम्हारे स्कूल की गली के कोने में पड़े चार पिल्ले और उनकी मां तुम्हें पहचानने लगे हैं. वो बच्चे 15-20 दिन के हैं लेकिन तुमको देखते ही दौड़ लेते हैं. आज तुम उनके लिए जो बैलून लेकर गई थी, वो गिफ़्ट उनके किसी काम का नहीं है. चारों ने उसकी चिंदी उड़ा दी है. लौटकर देखोगी तो उसके अवशेष भी नहीं मिलेंगे. अब तुम उनके साथ काफ़ी कम्फर्टेबल हो गई हो. लेकिन पहले दिन तुम उनको छूने से डर रही थी. मैंने सोचा था कि शायद तुम उनकी मम्मी से डर रही हो. लेकिन तुमने कहा था 'कोई देखकर हंसेगा तो नहीं?' मुझे बड़ा झटका लगा था. इतनी सी उम्र में तुमने ये क्या रोग पाल लिया? कौन हंसेगा तुम्हें देखकर?
सांकेतिक तस्वीर: ट्विटर
चार लोग क्या कहेंगे? चार लोग देखकर हंसेंगे. इन दो लाइनों ने कितनी जिंदगियां ख़राब की हैं. कल ही गोरखपुर की एक लड़की की ख़बर पढ़ रहा था. उसके मां बाप उसकी शादी करना चाहते हैं. वो नहीं करना चाहती है. उसकी उम्र भी शादी के लायक नहीं है. उसके अलग सपने हैं. लेकिन मां बाप को उससे मतलब है न उसके सपनों से. उनको अपनी जिद से मतलब है बस. और उस ज़िद की जड़ में वही भाव है- क्या कहेंगे लोग. लड़की शादी के लायक हो गई लेकिन घर बिठा रखे हैं. बहुत पढ़ लिख जाएगी तो देखो क्या गुल खिलाएगी. पड़ोसी क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या कहेंगे? ये बेकार की बातें छोटे से शुरू होकर मन में इतना बड़ा रूप धर लेती हैं कि उसके आगे अपने बच्चों की ज़िंदगी भी कुछ नहीं लगती.
ऐसा नहीं है कि चार लोगों के कहने या हंसने के डर से सिर्फ बच्चों को ज़्यादा नम्बर लाने को मजबूर करते हैं, लड़कियों की पढ़ाई छुड़ाते हैं, उनके घर से निकलने पर पाबंदी लगाते हैं, उनके रिलेशनशिप स्टेटस पर पहरा बिठाते हैं, मर्ज़ी से शादी करने पर हॉनर किलिंग करते हैं, बल्कि वो अपनी ज़िंदगी भी बर्बाद करके रखते हैं. न अपने मन का कुछ कर पाते हैं, न खा पाते हैं, न पहन पाते हैं, न हंस पाते हैं, न नाच पाते हैं, न एन्जॉय कर पाते हैं. लोगों की बातों से डरने वालों की ज़िंदगी से बुरा कुछ नहीं होता. उनकी केस स्टडी की जाए तो उसमें इतनी निगेटिविटी निकलकर आएगी जो उसके सम्पर्क में आने वाले हर इंसान को डिप्रेस कर देगी.
एक बात समझनी बहुत इम्पॉर्टेंट है. दूसरों के हंसने या कहने से डरने वालों में ये खूबी होती है कि वो भी दूसरों को देखकर हंसते हैं. लोगों के चरित्र पर उंगली उठाते हैं. खाने, पीने, चलने, हंसने पर जज करते हैं. उनको अपनी क्वालिटी का पता होता है और वैसे ही दुनिया को समझते हैं. लेकिन समझने वाली बात ये है बच्ची कि कोई कुछ नहीं समझता. तुम ऐसी जगह हो जहां किसी के पास किसी को जज करने की फुर्सत नहीं. मैंने अपने जीवन में किसी के सोचने या हंसने की फिक्र नहीं की. हंसने का क्या कहें, मैं तो हंसाने के धंधे में ही घुसा हुआ हूँ. तो किसी के हंसने पर मुझे चिंता नहीं होती बल्कि अच्छा लगता है. तो तुम इस बात की टेंसन कभी न लेना कि कोई क्या कहेगा. तुम्हें जो करना है करो. मस्त रहो मस्ती में, बस आग न लगाओ बस्ती में. तुमको देखकर अगर कोई हंसेगा तो हंसने दो, जब तुम अपनी मंज़िल पर होगी तो उनके दांत अंदर हो जाएंगे.
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