'डियर आयुषी, दुख आने पर रोना मत बल्कि डांस करना, ताकि दुख तुम्हारे सामने बौना हो जाए'
पढ़िए ऑडनारी की 'डियर आयुषी' सीरीज का पहला खत.
आप पढ़ रहे हैं हमारी सीरीज- 'डियर आयुषी'. रिलेशनशिप की इस सीरीज में हम हर हफ्ते 'चचा' की एक चिट्ठी पब्लिश करेंगे. वो चिट्ठी, जिसे वह अपनी बेटी आयुषी के लिए लिखते हैं. इन चिट्ठियों से आपको ये जानने को मिलेगा कि एक पिता अपनी बेटी के लिए क्या चाहता है. ये चिट्ठियां हर उस पिता की कहानी बयान करेंगी, जिनके लिए उनकी बेटी किसी 'परी' से कम नहीं होती, जिनके लिए उनकी बेटी कुदरत की सबसे प्यारी रचना होती हैं.
'डियर आयुषी
मैं ऑफिस से कूदते हुए घर पहुंचता हूं तो रोज़ सोचता हूं आज तुम्हारा वीडियो शूट करूंगा. मुझे दरवाजे पर देखकर तुम जैसी खुशी से चहकती हो और आकर लिपट जाती हो. वो खुशी मैं वहीं लपेटकर जेब में भर लेना चाहता हूं. मैं नहीं चाहता कि तुम ज्यादा जल्दी बड़ी हो जाओ. तुम्हारी ये मासूमियत और चहकना गंभीरता में बदल जाए, मैं इमेजिन नहीं कर पाता. तुमको दो दिन पहले मैंने डांस क्लास जॉइन कराई. अब तुम मम्मी के साथ एक घंटे वहां रहती हो. डांस टीचर के कड़े अनुशासन में.
अनुशासन वाले डस्सू जोक के लिए सॉरी. लेकिन डांस तुम्हारे लिए बहुत जरूरी लगा मुझे. उसकी ढेर सारी वजहें हैं. पहली तो ये कि तुमको डांस पसंद है और तुम्हारे स्टेप्स काफी इम्प्रेसिव होते हैं. लैपटॉप पर गाने बजाकर जो तुम नाचती हो तो मुझे लगता ही नहीं कि तुम मेरी बेटी हो. अरे मैं नहीं नाच पाता न. मेरे डांस स्टेप्स इतने खराब हैं कि मैंने कभी नाचने की जुर्रत नहीं की. यहां तक कि अपने इसी कॉम्प्लेक्स की वजह से मैं लोगों को नाचते भी नहीं देख पाता. मैंने जी खोलकर पहली बार 28 साल की उम्र में डांस किया, वो भी बॉस के घर पार्टी में. मैं नहीं चाहता कि तुमको नाचने के लिए 28 साल इंतजार करना पड़े. तुम अभी से इतनी कॉन्फिडेंट रहो.
दूसरी वजह है शरीर का चुस्ती फुर्ती से भरा होना. इंसान जितना ज्यादा उछलता कूदता है, उसके शरीर के साथ मन में भी ऊर्जा भरी रहती है. मैं अजगर जैसे लोगों को भी देखता हूं जो 10 घंटे सोने के बाद भी नींद में रहते हैं. सोते सोते इतना थक जाते हैं कि उनको नींद आने लगती है. तुम ये पढ़कर मुझे बिल्कुल जज मत करना, मैं वैसा बिल्कुल नहीं हूं. मैंने जिम जॉइन किया था डेढ़ महीने के लिए लेकिन हो नहीं पाया. इसका ये मतलब नहीं है कि मैं अजगर जैसा ढिल्लू हूं. फिर भी मैं चाहता हूं कि तुम मेरे जितनी आलसी न बनो. सही तरीके से खाने पीने और सोने के अलावा डांस अच्छी एक्सरसाइज साबित हो सकती है, शरीर को स्वस्थ और एक्टिव रखने के लिए.
तुम्हें डांस सिखाने की तीसरी वजह ये है कि हममें दुख-तकलीफ से लड़ने का मेकेनिज्म भी विकसित होना चाहिए. हमारे पास एक ऐसी चीज होनी चाहिए जो हम भारी तकलीफ में इस्तेमाल कर सकें. मेरा किसी अलौकिक शक्ति पर विश्वास नहीं है. इसलिए मुझसे ये नहीं कहते बनता कि 'भगवान न करे तुम्हारे साथ ऐसा हो.' मुझे पता है कि जिंदगी हमेशा पटरी पर नहीं दौड़ती. अक्सर डीरेल होती है. फिर हम उसको खींचकर पटरी पर लाते हैं. वो बीच की लड़ाई जिसको हम दुख कहते हैं, वो सबकी जिंदगी में आते ही हैं. इस लड़ाई का सबका अपना तरीका है. कोई तकिए में मुंह देकर रोता है, कोई खुद को कमरे में बंद कर लेता है, कोई नदी किनारे सुनसान इलाके में बैठकर उसमें कंकड़ मारता है, कोई दीवार से सिर टकराता है, कोई मोबाइल पटककर तोड़ देता है, कोई रोने के लिए कंधा खोजने लगता है, कोई मां के आंचल में छिप जाता है. मैं ऐसी परिस्थितियों में शांत हो जाता हूं. लेकिन मेरी इच्छा है कि ऐसा दुख सामने आने पर तुम डांस करो. तुम्हें ऐसा करते देख दुख तुम्हारे सामने बौना हो जाएगा.
तुम्हारे पापा'
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