जब लड़कियां सबरीमाला में घुस सकती हैं तो निजामुद्दीन दरगाह में क्यों नहीं?
सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख़्त गिराए जाएंगे. कर्टसी: तीन युवा लड़कियां.
सबरीमाला में औरतों की एंट्री इस साल सुप्रीम कोर्ट ने शुरू करने के ऑर्डर दे दिए हे. इससे भी दो साल पहले मुंबई की मशहूर हाजी अली दरगाह में औरतों का जाना शुरू हो गया था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने औरतों की एंट्री पर लगी रोक हटाई थी. फिर सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा गया था. अब दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह में भी औरतों की एंट्री के लिए अर्जी दाखिल कर दी गई है.
ये अर्जी दाखिल करने वाली तीन लड़कियां पुणे से हैं. दीबा. शिवांगी. अनुकृति. लॉ स्टूडेंट्स हैं. नवभारत टाइम्स में छपी खबर के अनुसार महिलाओं को औलिया के रौजे (जहां कब्र होती है वो कमरा) में जाने की इजाज़त नहीं है. ऐसा पिछली कई सदियों से होता चला आ रहा है. बाकी दरगाह में आने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा है.
रौजे वाले कमरे में औरतों को जाने नहीं दिया जाता. तस्वीर: पीटीआई
दीबा से ऑडनारी ने बात की.
आपने इस मुद्दे पर पेटिशन फ़ाइल करने का कैसे सोचा?
हम तो 27 नवम्बर को चादर चढ़ाने आए थे. अन्दर नहीं जाने दिया गया. वहां आई बाकी औरतों के साथ भी बहुत ही बुरा व्यवहार किया जा रहा था. फिर हमने इस मामले पर और जानकारी जुटाई तो देखा कि हाजी अली दरगाह में भी ऐसा ही हुआ था. वहां भी औरतों की एंट्री को लेकर इसी तरह का मामला उठा था. वो घटना इंस्पिरेशन बनी हमारी.
फिर इस मामले को आगे कैसे बढ़ाया आपने? आप लॉ की स्टूडेंट हैं, इससे कुछ मदद मिली?
हां. मैं सेल्फ सफिशियेंट हूं इससे डील करने में. सबसे पहले तो मैंने और मेरी दोस्तों ने सम्बंधित थाने के SHO को मेल किया मगर कोई रिप्लाई नहीं आया. फिर हमने पेटिशन फ़ाइल की. इस मामले में जो रेस्पोंडेंट्स हैं वो हैं
- पुलिस कमिश्नर दिल्ली
- निजामुद्दीन औलिया दरगाह के ट्रस्टी
- यूनियन ऑफ इंडिया
अभी तक इस मामले में रिस्पोंडेंट्स का कोई जवाब नहीं आया है.
मामला दिल्ली हाई कोर्ट में गया है. तस्वीर: पीटीआई
इस मामले को लेकर आपकी पर्सनल राय क्या है?
मैं इसे धार्मिक मसला नहीं मानती. ये जेंडर का मुद्दा है. निर्णय तो जो लेना होगा वो कोर्ट ही लेगा. हम तो अपने हक़ के लिए लड़ रहे हैं. मैं खुद मुस्लिम हूं. मुझे पता है कि इस्लाम के किसी भी टेक्स्ट में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा महिलाओं के दरगाह में जाने के बारे में.
चादरपोशी करने के लिए सिर्फ पुरुष ही जाते हैं दरगाह में. तस्वीर: पीटीआई
आम तौर पर जब धार्मिक मुद्दों से जुड़े ऐसे मामले सामने आते हैं तो उसका रिएक्शन एक्सट्रीम होने की सम्भावना होती है. आपको इस चीज़ का डर नहीं?
नहीं. मेरी फैमिली मुझे सपोर्ट कर रही है. किसी ने भी ये नहीं कहा है मेरी फैमिली को कि मुझे ये नहीं करना चाहिए. जब आएंगे तो देखी जाएगी.
इस मामले की अगली हियरिंग 11 एप्रिल को रखी गई है. इस मुद्दे से जुड़ी सभी खबरें हम आपको अपडेट करते रहेंगे.
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