मैंने अखबार में दुल्हन खोज रहे दूल्हे का ये इश्तेहार देखा और अपना तन-मन दे बैठी!
हाय मेरे चौड़ी छाती वाले राजपूत, कहां थे तुम!
मेरी मम्मी कहा करती हैं कि लड़की की शोभा तभी बढ़ती है जब वो ‘अपने घर’ चली जाए. यहां अपने घर से मतलब है ‘ससुराल’. मिडिल क्लास परिवार की इच्छा बेटे के इंजीनियर बनने, बेटी के सरकारी नौकरी पाने, और इन दोनों की अच्छी जगह शादी हो जाने तक ही सीमित होती है. बेटे की खूब दहेज लेके, बेटी की बिना कुछ लिए दिए.
इसलिए जब बिना किसी लेन-देन वाले शादी की बात करते हैं तो कान खड़े हो जाना लाजिमी होता है. ऐसा ही एक ऐड छपा अखबार में जिसमें एक करोड़पति (हमने नहीं कहा, उसने खुद बताया) अपने लिए एक पत्नी ढूंढ रहा है. यहां तक ठीक.
उस बन्दे ने खुद को क्षत्रिय बताया, ये भी बताया कि वो इंडस्ट्रियलिस्ट है. लिखा उच्च महत्वाकांक्षा वाली लड़की चाहिए, लेकिन नॉन-फेमिनिस्ट.
बस इतना देखते ही मेरे दिल में कमल खिल गए. यही तो वो मर्द था जिसे मैं ढूंढ रही थी. रहा न गया तो मैंने मेल लिखकर इनसे पूछ ही लिया कि आखिर फेमिनिस्ट की परिभाषा क्या है. जवाब ये आया.
लब्बोलुआब इस पूरे मेल का ये है कि
- फेमिनिस्ट औरतें पुरुषों से नफरत करती हैं.
- फेमिनिस्ट औरतें घर तोड़ती हैं.
- फेमिनिस्ट औरतें लेफ्टिस्ट होती हैं.
- फेमिनिस्ट औरतों की वजह से परिवार बर्बाद हो रहे हैं.
- फेमिनिस्ट औरतों का यही सब चलता रहा तो बेचारे भारतीय मर्दों को वियतनाम और ट्यूनीशिया से पत्नियां लानी पड़ेंगी.
भला हो दूल्हे राजा का, जो इन्होंने मुझ भोली को बता दिया कि फेमिनिज्म होता क्या है. वरना मैं तो फेमिनिज्म को कुछ इस तरह समझती थी:
- फेमिनिज्म का मतलब औरतों और पुरुषों को समाज में मिलने वाले मौकों, इज्जत, और स्पेस में बराबरी से है. मर्दों को नीचा दिखाने से नहीं. किसी भी मूवमेंट में उसका निजी फायदा उठाने वाले लोगों की कमी नहीं होती. फेमिनिज्म में भी कुछ ऐसे एलिमेंट ज़रूर होंगे. लेकिन उनकी वजह से पूरी मूवमेंट या पूरा आन्दोलन ख़ारिज नहीं हो जाता.
- फेमिनिज्म ने औरतों को पढ़ने की आज़ादी दी. वोट कर खुद सरकार चुनने की आजादी दी. अपने लिए कमाने की आज़ादी दी. अपने फैसले खुद ले सकने की आजादी दी.
- अगर किसी की आज़ादी से किसी को दिक्कत हो रही है, और वो उस आज़ादी का विरोध कर रहा है, तो यह बात साफ हो जाती है कि उस व्यक्ति की गुलामी से किसी का फायदा हो रहा है. उस फायदे को हाथ से निकलता देख लोग तिलमिला जाते हैं, उस आज़ादी की बुराई करते हैं. जब अश्वेत लोगों ने अपनी गुलामी का विरोध करना शुरू किया तो उनके श्वेत मालिक तिलमिलाए थे. कई अश्वेतों ने मूवमेंट का विरोध किया था. ये कहकर कि उनके मालिक उनका ध्यान रखते हैं. उनको हर सुविधा देते हैं. लेकिन गुलामी तो गुलामी थी. ख़त्म होनी थी, हुई.
- अगर एक देश की औरतें आज़ाद हो गई हैं, अपने लिए सोचने लग गई हैं, तो दूसरे देशों में जाकर पत्नी ढूंढना उपाय है, ऐसा सोचने वालों की सोच पर तरस आने पर भी तरस आता है. इस तरह की सोच अभी अमेरिका जैसे देशों में घर कर गई है कि वहां की औरतें कुछ ज्यादा ही आज़ाद हैं, इसलिए अब वहां के मर्दों को भारत और चीन जैसे देशों में अपने लिए पत्नी ढूंढनी चाहिए. यहां के मर्द अमेरिका नहीं जा सकते, इसलिए वियतनाम और दूसरे छोटे देशों में पत्नी ढूंढने की बात करने लगे हैं.
इस ऐड ने, और इन भाईसाब...ऊप्स, सज्जन ने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए. सच में, ये पुरुष न होते तो हमारा दिमाग विकसित कैसे होता. और हां, इस ऐड में फेमिनिज्म की शर्त के बाद उम्मीद की किरण शुरू होती है. जाति, धर्म बंधन नहीं.और बेचारा दहेज भी नहीं मांग रहा. सोच रही हूं फेमिनिज्म त्यागकर इनके चरणों में समर्पित हो जाऊं.
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