थेथर होती हैं औरतें - मृदुला शुक्ला

सर्दियों में औरतें शाल या स्वेटर नहीं पहनतीं साड़ी पर, आखिर क्यों?

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दिसंबर 11, 2018
मृदुला शुक्ला

मृदुला शुक्ला लेखिका और टीचर हैं. विज्ञान पढ़ाती हैं बच्चों को. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से हैं. इस वक़्त गाज़ियाबाद में रहती हैं. उम्मीदों के पांव भारी हैं नाम का काव्य संकलन छप चुका है. इला त्रिवेणी सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. स्त्रीवादी लेखन में रुचि है और काफी लिखा भी है. आज पढ़िए इन्हीं की कलम से निकली ये पोस्ट जो सोशल मीडिया पर हर जगह वायरल हो रही है.

सर्दियों में शादियों में स्त्रियों के स्वेटर न पहनने पर खूब बात होती है, चुटकुले बनते हैं .वजह तो पता होगी! न पता हो तो मैं बता देती हूं. थेथर होती हैं औरतें. कभी सर्दी की ठण्ड सुबह जब आप रजाई में दुबके होते हैं, तब नहा कर चौके में जाकर आपके लिए नाश्ता बनाती मां या पत्नी की बात की है कभी? पूछते हैं क्या स्त्रियां किस मिट्टी की बनी होती हैं उन्हें ठण्ड क्यों नहीं लगती? उस वक्त आप उन्हें ममतामयी, महान, देवी और जाने क्या कह कर बेवकूफ बना ले जाते हैं. तब चुटकुले आपके हलक में फंस जाते हैं. मई-जून की गर्मी में जब चौका तप रहा होता है आप एयर कंडिशनर, कूलर पंखा (जो भी आपकी हैसियत में हो) में बैठे होते हैं. आपके लिए गरमागरम फुल्के उतारे जा रहे होते हैं. कभी उनके साथ उस गर्मी में जाकर काम करके देखिए. शहरी औरतें तो सुविधाजनक कपड़ों में होती हैं ग्रामीण स्त्रियाँ सिंथेटिक साड़ियों में सिर ढंके आधा जीवन चौके में बिता देती हैं. उनकी पीठ पेट गर्दन पर घमौरियों की परतें चढ़ती जाती है. घर का वह हिस्सा जो सबसे गर्म होता है वहां एसी पंखा कूलर क्यों नहीं लगता? सोचिएगा कभी. अधिकांश पुराने घरों में रसोई में खिड़की तक नहीं होती थी. और कभी-कभी तो रौशनदान भी नहीं.

backless_750x500_121118112718.jpgऔरतों के सर्दियों में भी शॉल स्वेटर न पहनने पर बहुत चुटकुले बनते हैं.

कभी किसी स्त्री को रसोई में काम करते देखिए. अधिकांश समय वो चिमटे की मदद के बिना काम करती है. उसकी कोमल उंगलिओं के पोर अधिक उष्म सहिष्णु होते. हमारी भाषा में इसे कहते है थेथर होना. हां औरतें थेथर होती हैं. परिवार को ताजा गर्म और स्वास्थ्यवर्धक खाना मिले, इसके लिए उन्हें गर्मी-सर्दी की परवाह करना अलाउड नहीं है. औरतें कैसे कर पाती हैं यह सब, कभी आप सबके दिमाग में ये प्रश्न क्यों नहीं उठते? चुटकुले यहां बनने चाहिए थे मगर तब आपकी सुविधाओं में खलल पड़ेगा. उसे दस बीस पीढ़ी तक सर्दी गर्मी का एहसास होने दीजिए. सामान्य मध्य वर्ग और निम्न वर्ग की महिलाओं को शादी में मायके ससुराल से साड़ियां मिलती हैं महंगी भारी भरकम काम वाली (औकात के अनुसार). उनके पास शादी ब्याह के अतिरिक्त कोई जगह नहीं होती उन्हें पहनने की. और ज्यादातर घरों में साड़ी के अतिरिक्त कोई परिधान अलाउड भी नहीं होता. ससुर-जेठ के सामने पल्ला करना होता है, मगर उन साड़ियों के साथ स्वेटर शाल बनाने की जरूरत बाजार ने भी नहीं महसूस की. बाज़ार भी अब तक समाज के इस उपेक्षित वर्ग की जरूरत को कैश करने के मूड में नहीं दिखता. बाज़ार जानता है अभी भी इस क्षेत्र में कोई स्कोप नहीं है. यदि बहुत कम संख्या में उपलब्ध है, तो परिवार और स्वयं स्त्रियां भी उसे खरीदने में हिचकती हैं. एक ही रात की तो बात है बिना स्वेटर के भी चला लेंगी काम. उन्हें तो वैसे ही कम लगती है ठंड. उन्हें कुछ दिनों का चैन दीजिए, उनकी देह को मौसम बदलने को महसूस करने दीजिए तब जाकर उनका थर्मोस्टेट सही होगा. फिर वो शादियों में आपके साथ सूट-कोट जूता-मोजा पहन कर शामिल होंगी.

बाकी बड़ी मेहनत से तैयार किये गए डिजायनर, ब्लाउज गहने दिखाना एक वजह तो है ही. मगर ध्यान रहे इस क्लास के लोगों की शादियां वातानुकूलित जगहों पर होती हैं जिनके घर-गाड़ी भी होते हैं वातानुकूलित. इन पर न तो चुटकुले गढ़े जाते हैं, न ही इन पर फर्क पड़ता है ऐसी बातों का. इस बार ठंड की सुबह की चाय आप खुद बनाइए. देखिए बहुत से चुटकुलों और सवालों के जवाब मिल जाएंगे. किसी भी अव्यावहारिक सामूहिक क्रिया के आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक पक्ष होते हैं. हो सकता है मुझसे कुछ पक्ष छूट गए हों मगर चुटकुले बनाना सबसे क्रूर प्रतिक्रिया और समाज का गड़बड़ाया हास्यबोध है. 

 

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