बदायूं पुलिस के रवैये से तंग आकर गैंगरेप की शिकार लड़की ने फांसी लगाकर खुद की जान ली
ज्यादती से थककर सुसाइड नोट में लिखा- 'मैं रोज बयान दे देकर परेशान हो गई हूं'
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में एक लड़की ने आत्महत्या कर ली. ये किसी अखबार की एक सिंगल कॉलम की खबर हो सकती है. जिसे हम और आप शायद सरसरी निगाह से देख कर आगे बढ़ जाएंगे. आती रहती हैं न ऐसी खबरें तो? क्योंकि इन ख़बरों में चेहरे नहीं होते. कोई जाना-पहचाना नाम नहीं होता.
अगर आप उसे पहचानते तो?
पच्चीस साल के आस-पास की रेशमा. दो साल पहले शादी हुई थी. पति के साथ रहती थी. इस साल की फरवरी में उसकी तबियत खराब हुई तो वो अपने मायके आ गई. डॉक्टर के पास दिखाने गई, तो उन्होंने कहा चेकअप के लिए बदायूं चली जाओ. वो जब वहां आई, तो बस स्टैंड पर उसे जान-पहचान के तीन लोग मिले. उन्होंने कहा, तुम्हारे पति की तबियत खराब है. जाना चाहो तो चलो, हम छोड़ देंगे. रेशमा भरोसा करके चली गई. उसे दिल्ली ले जा रहे हैं, ऐसा बताया था.
रेशमा अपने पति के पास नहीं पहुंच पाई.
पहचान छुपाने के लिए विक्टिम का नाम बदल दिया गया है.
तो कहां गई?
पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार रेशमा को उसके पति से मिलाने की जगह समीर, जोहिब और अरबाज़ नाम के ये तीन लोग उसे सिकंदराबाद ले गए. वहां एक कमरे में बंद किया. बारी-बारी से उसका रेप किया. फिर उसे किसी गांव में ले गए, और एक हफ्ते तक उसे वहां रखा. उसके कानों के कुंडल, गले की चेन, और पैरों की पाजेब छीन ली. चार हज़ार रुपए और मोबाइल जो उसके पास था वो भी छीन लिया. उसके बाद उसे दिल्ली लेकर जा रहे थे. ट्रेन में किसी साथ में सफ़र कर रहे आदमी का सेलफोन लेकर रेशमा ने अपने घर फोन किया. अपने माता-पिता को बताया कि उसे दिल्ली लेकर जा रहे हैं. उसके घरवाले दिल्ली पहुंच कर इंतज़ार कर रहे थे. वहां पर उन लोगों ने तीनों को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वो भाग निकले.
उसके बाद रेशमा वापस आ गई. अपने माता-पिता के साथ. पुलिस में शिकायत दर्ज करने के लिए पिता गए, तो उन्हें वहां से भगा दिया गया. 15 मई को अपहरण हुआ, 12 जून तक पुलिस की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं हुई.
अब जाकर शिकायत दर्ज हुई है.
शिकायत दर्ज करने के लिए भेजी गई अर्जी. तस्वीर: ऑडनारी/ अंकुर चतुर्वेदी
अब क्यों? अब ऐसा क्या हुआ?
क्योंकि रेशमा ने पुलिस के इस व्यवहार से तंग आकर अपनी जान दे दी. आत्महत्या कर ली. अपने घर में फांसी लगाकर. पीछे छोड़ गई तो सिर्फ चार पन्नों का एक सुसाइड नोट. ये नोट हमारे रिपोर्टर अंकुर चतुर्वेदी ने हमें दिखाया.
उस सुसाइड नोट का एक पन्ना. इसे हैंडराइटिंग मिलाने की जांच के लिए भेज दिया गया है.
इस सुसाइड नोट में रेशमा ने लिखा,
‘जब भी थाने जाओ कोई सुनता नहीं है. कोतवाल साहब हमारे पिताजी से उल्टी बात करके उन्हें वापस भेज देते हैं और मेरा मुकदमा नहीं लिखना चाह रहे हैं. अगर साहब आपको पैसे से मुकदमा लिखना है तो एक बार बताओ तो सही. मैं तो इस दुनिया को छोड़ कर जा रही हूं. हो सके तो एसपी साहब मुझे न्याय दिलाएं आपकी अति कृपा होगी. मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं. हो सके तो एक बार मेरा मुंह देखने आ जाना, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती हूं. मैं अब हर किसी को छोड़ कर जा रही हूं.
एसपी साहब मुझे उम्मीद है कि आप मुझे न्याय ज़रूर दिलवाएंगे. इस केस को इस तरह बंद मत कर देना. आपसे हाथ जोड़कर विनती कर रही हूं’.
बदायूं एसएसपी ए के त्रिपाठी ने बातचीत कर इस मामले की पूरी जानकारी दी.
ये एक मरती हुई लड़की के आखिरी शब्द हैं. जब ये आत्महत्या हुई और ये सुसाइड नोट सामने आया, तब मामला उछला. हमारे रिपोर्टर अंकुर चतुर्वेदी ने और जानकारी के लिए वहां बातचीत की तो पता चला कि ADG ने आदेश दिया था कि मुकदमा लिखा जाए. जब उस पर भी कोई एक्शन नहीं हुआ तब लड़की ने सुसाइड किया. उसके पति के साथ भी इंस्पेक्टर ने बदतमीजी की थी, ऐसा बताया गया. सुसाइड नोट पर जो हैंडराइटिंग है, उसकी जांच के लिए वो नोट आगे फॉरेंसिक को भेज दिया गया है. अभी ये स्थिति है कि ADG के आदेश से SSP (सीनियर सुपरिन्टेंडेंट ऑफ पुलिस) ने थाने के इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया है. पहले सिर्फ लाइन हाजिर किया था, अब सस्पेंड कर दिया है.
एक लड़की का ये कहना ही कि उसके साथ रेप हुआ है, शिकायत दर्ज करने को काफी है. फिर भी उसकी शिकायत दर्ज नहीं की गई. उसके घरवालों को तथाकथित रूप से बेइज्जत किया गया. उसे इस हालत तक निराश कर दिया गया कि उसने खुद को फांसी लगा ली. किसी के सस्पेंड हो जाने से क्या रेशमा लौट आएगी?
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