फिल्म रिव्यू: 'लस्ट स्टोरीज' यानी कामुकता की कहानियां

अनुराग कश्यप, ज़ोया अख्तर, दिबाकर बनर्जी और करण जौहर की चार छोटी फ़िल्में.

'लस्ट स्टोरीज' यानी 'कामुकता की कहानियां' एक नेटफ्लिक्स फिल्म है. नेटफ्लिक्स एक वेबसाइट है. जिसमें पैसे देकर अकाउंट बनाया जा सकता है. अकाउंट बनाकर आप उसमें लॉग इन करती हैं और फ़िल्में देखती हैं. मूल रूप से, दुनिया भर की फ़िल्में और टीवी शो आपतक पहुंचाना नेटफ्लिक्स का काम है. इन्हीं फिल्मों में कुछ फ़िल्में 'नेटफ्लिक्स ओरिजिनल' भी होती हैं, यानी उनमें नेटफ्लिक्स पैसे लगाता है.

'लस्ट स्टोरीज' को नेटफ्लिक्स के लिए बॉलीवुड के चार बड़े निर्देशकों ने डायरेक्ट किया है. ये हैं: अनुराग कश्यप, जोया अख्तर, दिबाकर बनर्जी और करन जौहर. इसमें आधे-आधे घंटे की चार कहानियां हैं, चारों निर्देशकों द्वारा.

'लस्ट स्टोरीज' एक ऐसा नाम है, जिसे इंडिया का सर्टिफिकेशन बोर्ड सुनते ही बदल देगा. ये एक 'लोडेड' शब्द है, 'लोडेड' बंदूक की तरह. फिल्म के पोस्टर में केवल महिला एक्टर्स हैं और हमें देखकर ही मालूम पड़ता है कि फिल्म सेक्स पर बात करने वाली है. मगर वो वाला सेक्स नहीं, जिससे बच्चे होते हैं, परिवार बनते हैं. बल्कि वो वाला सेक्स जिसके बारे में हम बात नहीं करते, जो खुद को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है, जिसे हम 'नाजायज़ संबंध' से लेकर 'हवस' तक कुछ भी कह सकते हैं.

फिल्म का पोस्टर. फिल्म का पोस्टर.

1.

अनुराग कश्यप: कहना क्या चाहते हो?

कास्ट: राधिका आप्टे, आकाश ठोसर

कालिंदी (राधिका आप्टे) एक प्रफेसर हैं. तेजस (आकाश ठोसर) उसकी क्लास में पढ़ता है. पहले सीन में दोनों तेजस के घर जाते हैं. संभवतः दोनों नशे में हैं. सेक्स के मामले में तेजस का एक्सपीरियंस बहुत कम है. चूंकि कालिंदी उम्र में बड़ी है, वो इस संबंध में डॉमिनेट करती है. उम्र में बड़ी होने के अलावा वो तेजस की प्रफेसर है. इसलिए तेजस उसके सामने एक साइलेंट पार्टनर की तरह है. इतना मूक, कि अगले दिन कालिंदी को खुद के ऊपर शक हो जाता है कि जो उसने किया वो कहीं यौन शोषण तो नहीं था.

कालिंदी शादीशुदा है. मगर वो एक ऐसे रिश्ते में है जिसे आम भाषा में 'ओपन मैरिज' कहा जाता है. यानी शादी के बाहर पति और पत्नी दूसरों से संबंध में रहते हैं और ये दोनों को ही स्वीकार्य होता है. कालिंदी को लगता है ये प्रेम का एक 'सेल्फ्लेस' तरीका है. जिसमें आपका साथी आपसे प्रेम तो करता है, मगर आप पर ये बंदिश नहीं लगाता कि आप सिर्फ उसी से प्यार करें. पर कालिंदी के मुताबिक़ वो खुद सेल्फिश है और ऐसा होने में कोई बुराई नहीं है. वो चाहती है कि वो और तेजस एक-दूसरे को अपने हर नए संबंध के बारे में बताएं.

अनुराग कश्यप की कहानी के ओपनिंग सीन में राधिका आप्टे. अनुराग कश्यप की कहानी के ओपनिंग सीन में राधिका आप्टे.

मगर तेजस उम्र में इतना छोटा है कि उसने प्रेम को एक्सप्लोर नहीं किया है. वो ये जानता है दो लोगों के बीच जो संबंध है उसे प्यार कहते हैं. वो सेक्स और प्रेम को अलग नहीं देख पाता है. इसलिए उसे कालिंदी की फिलॉसफी पल्ले नहीं पड़ती. वो अपनी गर्लफ्रेंड को छिपाता है क्योंकि उसे लगता है कि इससे कालिंदी हर्ट होगी.

इस फिल्म के क्या मायने हैं, समझना मुश्किल है. फिल्म के कई घंटे बाद भी समझ नहीं आता कि अनुराग कश्यप कालिंदी के चरित्र से क्या बताना चाह रहे हैं. क्या वे कह रहे हैं कि ओपन मैरिज में होने वाली, सेक्स को लेकर सहज एक औरत क्या वैसी हो जाती है जैसा एक स्टॉकर, एकतरफ़ा पुरुष प्रेमी होता है? चूंकि कालिंदी को तेजस की गर्लफ्रेंड पर क्रोध निकालते और तेजस को फॉलो करते देखा गया है, कालिंदी की छवि एक स्टॉकर की पता पड़ती है. महज एक स्टॉकर नहीं, एक पागल व्यक्ति की जो दूसरे व्यक्ति से अपनी बात मनवाने के लिए उसके घर में जाकर तलाशी लेने, उसका सामान बिखेरने पर आमादा है. तेजस का अफेयर साबित करने के लिए पागल है. ऐसी है, जिसे अंग्रेजी में मेनीयैक कहते हैं.

अनुराग कश्यप इसे लस्ट स्टोरी किस तरह और क्यों कहना चाहेंगे, शायद उन्हें अपने दर्शकों को बता देना चाहिए.

2.

ज़ोया अख्तर: लस्ट तो है, मगर किसका?

कास्ट: भूमि पेडणेकर, नील भूपलम

सेक्स सीन से शुरू हुई इस कहानी को देखकर पता नहीं पड़ता कि जो पुरुष और औरत साथ में बिस्तर पर हैं उनके बीच क्या संबंध है. अगले 5 मिनट में हमें मालूम पड़ता है कि सुधा (भूमि पेडणेकर) घर में मेड, यानी अजीत की नौकरानी है. पूरी फिल्म में भूमि ने सिर्फ एक डायलॉग बोला है. जब सेक्स के बाद अजीत उसे गाली देता है और वो पलटकर गाली देती है. मगर सेक्स के दस मिनट के अलावा सुधा को अपनी औकात याद रखनी होती है. अजीत को नाश्ता देना, उसका घर साफ़ करना, ऑफिस के लिए सब तैयार करना. फिर चले जाना.

मगर सुधा इतने में खुश है. इंसान अगर औरत और गरीब दोनों हो, तो वो अपनी औकात में संभलकर रहती है. अजीत उसे पूरे काम के पैसे देता है. उसके लिए सेक्स भी एक सेवा है, जो सुधा उसे मुहैय्या करवाती है. मगर सुधा अजीत से दिल लगा बैठी है. हालांकि इसके कोई मायने नहीं हैं. क्योंकि वो अनुराग कश्यप की कालिंदी की तरह पलटकर सवाल नहीं कर सकती.

नौकरानी की भूमिका में भूमि. नौकरानी की भूमिका में भूमि.

अजीत की शादी तय हो गई है और सुधा का काम मेहमानों को चाय पिलाना है. शिकायत के तौर पर वो बस अजीत को उसकी होने वाली पत्नी के सामने तीखी नज़रों से देख भर पाती है. क्योंकि वो बोले, इसकी अनुमति न उसकी आर्थिक स्थिति देती है और न ही, संभवतः, उसकी जाति.

कहानी के पुरुष किरदार के लिए ये एक लस्ट स्टोरी है. मगर केंद्रीय किरदार यानी सुधा के लिए ये लस्ट की कहानी नहीं. ज़लालत और अपनी इच्छाएं दबाने की कहानी है. और सच को अपनाकर, अजीत की शादी की मिठाई खाकर, आगे बढ़ने की कहानी है.

भूमि अपने किरदार में इतनी परफेक्ट लगती हैं कि उनको देखना एक सुखद एहसास है.

3.

दिबाकर बनर्जी: 'Bros before Hoes'

कास्ट: मनीषा कोइराला, जयदीप अहलावत, संजय कपूर

मनीषा कोइराला रीना के किरदार को वापस आते देखना और स्विमसूट पहनकर अपने मोटापे और बढ़ती उम्र पर बात करना इस कहानी का सबसे अच्छा दृश्य है. और दूसरा सलमान (संजय कपूर) का अपनी 'बेवफा' पत्नी रीना के सीने पर फूट-फूटकर रोना है.

मगर इस फिल्म की सिचुएशन हमारे लिए नई नहीं है. हम इसे 'लाइफ इन अ मेट्रो' में देख चुके हैं. जिसमें शादीशुदा, बाल-बच्चेदार लोगों के विवाहेतर संबंधों का विस्तृत चित्रण है. फिल्म की जो पॉजिटिव बात है, वो ये कि रीना के किरदार को अच्छी तरह एस्टेब्लिश करते हुए ये बता दिया गया है कि वो अपनी आज़ादी अपने पति से मांगेगी नहीं, क्योंकि वो आज़ाद है. सलमान उसे एक दोयम दर्जे का मनुष्य समझता है. जो उसके बच्चे पालने और उसके साथ पार्टियों में जाने के लिए बनी है. मगर ये महज सलमान का मेल ईगो नहीं है जिससे रीना को लड़ना है.

सुधीर और रीना के किरदार में जयदीप अहलावत और मनीषा कोइराला. सुधीर और रीना के किरदार में जयदीप अहलावत और मनीषा कोइराला.

रीना और सुधीर (जयदीप अहलावत) का 'अफेयर' है. सुधीर, सलमान का सबसे अच्छा दोस्त है. अगर दो सहेलियों को एक ही पुरुष से प्रेम हो तो उनमें मन-मुटाव हो सकता है. मगर जब दो पुरुषों को एक ही औरत में इंटरेस्ट हो तो वो एक-दूसरे के लिए खराब नहीं बनते. बल्कि औरत खराब बनती है. सुधीर रीना के सामने उससे प्रेम का दावा करता है मगर जब सलमान के साथ अकेले होता है तो उसे एडवाइस देता है कि वो अपनी पत्नी पर भरोसा करे. कि वो शादी न तोड़े. फिल्म में जो हमें दिखता है वो 'ब्रोज बिफोर होज़' की कहावत है. यानी भाई का नंबर गर्लफ्रेंड के पहले आता है. इस कहावत पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है, जिसमें गर्लफ्रेंड के लिए 'होज़' (hoes) यानी होर्स (whores) यानी 'रंडियों' जैसा शब्द इस्तेमाल किया जाता है.

सलमान को रीना और सुधीर के अफेयर के बारे में पता पड़ने के बाद भी सुधीर पर क्रोध नहीं आता. वो उससे कोई सवाल नहीं करता. न ही सुधीर रीना के साथ रहने का वादा करता है. क्योंकि अंततः दोनों पुरुष अपनी दोस्ती खराब नहीं करना चाहते. ये उनके बिजनेस के लिए भी अच्छा है, ये बताना न होगा.

रीना को अपने लस्ट के लिए पुरुष उपलब्ध हैं, मगर साथ देने के लिए नहीं.

4.

करन जौहर: एक भौंडी सेक्स कॉमेडी

कास्ट: कियारा अडवानी, नेहा धूपिया, विकी कौशल

करन की फिल्म का टॉपिक एक जरूरी टॉपिक है. रोज़ लाखों, करोड़ों महिलाएं अपने विवाहित जीवन में सेक्स के बाद असंतुष्ट सोती हैं. क्योंकि उनके पति उन्हें महज खुद को संतुष्ट करने का खिलौना समझते हैं. इसके अलावा, अपने बच्चे जनने की मशीन समझते हैं.

ऐसे में नवविवाहिता मेघा (कियारा अडवानी) तलाकशुदा रेखा मैडम (नेहा धूपिया) का साथ पाती है. रेखा मैडम के दो सपने हैं: वो एक बार उड़ते जहाज के टॉयलेट और एक बार अपने स्कूल की लाइब्रेरी में हस्तमैथुन करे. वो लाइब्रेरी में ऐसा करती है. जिसे एक पियन देख भी लेता है. मगर तलाकशुदा रेखा मैडम को इससे फर्क नहीं पड़ता. रोज़ असंतुष्ट सोने वाली मेघा उसका वाइब्रेटर चुराकर घर ले जाती है.

और फिर परिस्थिति ऐसी बनती है कि मेघा पूरे परिवार के बीच, डाइनिंग टेबल पर, ऑर्गैज्म महसूस करता हुआ पाती है. सास, पति, भाभी-- सब उसे कामुकता के साथ झटके लेते हुए, कराहते हुए देखते हैं.

करन जौहर का मकसद शायद ये था, जैसा कि अंत में, मेघा से सुनने को मिलता भी है, कि औरतों की हसरत केवल बच्चे पैदा करना नहीं होता. मगर इस चीज़ को शायद किसी और तरीके से भी दिखाया जा सकता था. मुझे ये परेशान नहीं करता कि परिवार के बीच ओर्गाजम का मुद्दा उछला. मुझे इससे कोई मॉरल परेशानी नहीं है. मगर मास्टरबेशन का अर्थ ही अकेले में खुद से किया जाने वाला मैथुन है. उसे परिवार के बीचोंबीच डाइनिंग टेबल पर प्रस्तुत कर हास्य पैदा करना बचकाना लगता है. ये शायद 'क्या कूल हैं हम' फिल्म का सीन हो सकता था. मगर इन कहानियों की बीच उसका प्लेसमेंट भौंडा है.

कियारा अडवानी का ऑर्गैज्म सीन. कियारा अडवानी का ऑर्गैज्म सीन.

सेक्स के वक़्त पुरुषों का मैथुन कम और औरतों का ज्यादा समय तक चलना एक बायोलॉजिकल सच है. ऐसे में जितनी बार मेघा का पति पारस (विकी कौशल) उसके अंदर जाकर बाहर आता है, मेघा गिनती है. कुल 5 बार में पारस को ऑर्गैज्म हो जाता है. हमसे अपेक्षित है कि हम इस बात पर हंसें कि पारस मेघा को संतुष्ट नहीं कर पाता. पारस के ऊपर दर्शकों का बोझ है. एक अनकही मर्दानगी साबित करने का. एक फेमिनिस्ट नज़रिये से जितना जरूरी ये समझना है कि औरतों को ऑर्गैज्म की जरूरत है, उतना ही जरूरी ये भी समझना है कि पुरुष वो सेक्स मशीन नहीं जो पॉर्न फिल्मों की तरह चालीस मिनट चले.

कुल मिलाकर मेघा का संतुष्ट न होना पारस की पूरी गलती नहीं है, क्योंकि पारस को संभवतः पता ही नहीं है कि उसकी पत्नी चाहती क्या है. पेनीट्रेटिव सेक्स का विकल्प एक बेहतर फोरप्ले या ओरल सेक्स में हो सकता है, इस बात से ये कहानी दूरी बनाए रहती है. और औरत की असंतुष्टि का बोझ पुरुष पर डाल देती है.

करन जौहर क्लीवेज दिखाती टीचरों को चित्रित करने में यकीन रखते हैं, ये उन्होंने एक बार फिर से साबित कर दिया है. अनुराग कश्यप की कहानी में भी एक टीचर थी, मगर उसे पॉर्न की हद तक सेक्सुअलाइज नहीं किया गया.

और अंत में

नेटफ्लिक्स की 'लस्ट स्टोरीज' अपने पोस्टर में केवल महिला किरदारों को दिखाती है. भले ही किसी निर्देशक या नेटफ्लिक्स ने ऐसा कहा न हो, मगर पोस्टर से ये सन्देश जाता है कि फिल्म औरतों की कामुक कहानियों, और सेक्स के प्रति उनकी 'सेल्फ-डिस्कवरी' की कहानियां होंगी. मगर ऐसा नहीं होता. इन चारों कहानियों में मजबूत महिला किरदार हैं. बल्कि वे ही फिल्म की जान हैं. मगर अनुराग कश्यप के अलावा किसी ने भी सेक्स के प्रति उनके रवैये को डिस्कवर करने की कोशिश नहीं की.

जो काम कुछ समय पहले आई 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' कर सकी--जिस तरह वो हर उम्र की औरतों की हसरतों को कैप्चर कर सकी, 'लस्ट स्टोरीज' वो करने में असफल रही.

 

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