बिहार में महिलाएं चुनाव लड़ तो रही हैं, लेकिन इसमें एक बहुत बड़ा झोल है
परदे के पीछे आखिर चल क्या रहा है?
लोकसभा चुनाव 2019.
अभी तक संसद में महिलाओं के 33 फीसद आरक्षण का बिल पास नहीं हुआ है.
कांग्रेस और बीजेपी दोनों इसके वादे कर रही हैं.
पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस और ओडिशा की बीजू जनता दल दो ही ऐसी पार्टियां हैं जिन्होंने क्रमशः 41 फीसद और 33 फीसद टिकट दिए हैं महिलाओं को.
लेकिन बिहार में जिन सीटों पर महिलाएं लड़ रही हैं, उनका गणित क्या है?
बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं. इनमें से 25 सीटें ऐसी हैं जिनमें महिला वोटरों की संख्या ज्यादा है. ऐसा इकॉनोमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट का दावा है. इन 40 सीटों में से 8 पर महिलाएं कंटेस्ट कर रही हैं. इनमें शामिल हैं शिवहर, सिवान, वैशाली, मुंगेर, सासाराम, सुपौल, नवादा, पाटलिपुत्र.
अब आते हैं इन सीटों पर लड़ने वाली महिलाओं पर. अगर ध्यान से देखा जाए तो इन सीटों पर उतरने वाली कई महिलाओं के पतियों के ऊपर क्रिमिनल केसेज यानी आपराधिक मामले चल रहे हैं. थोड़ा और करीब से देखा जाए तो पता चलता है कि जिन सीटों पर ये उतर रही हैं, उन पर इनके पतियों का काफी दबदबा है.
उदाहरण के तौर पर कविता सिंह को ले लें. इनके पति अजय सिंह की मां यानी इनकी सास जगमातो देवी बिहार के दरौंदा से विधायक थीं. 2011 में जब उनकी मृत्यु हुई, तो उपचुनाव होने तय हुए. अजय सिंह जदयू के पास पहुंचे टिकट के लिए. लेकिन उनके ऊपर कई संगीन आरोप थे. मामले चल रहे थे. नीतीश कुमार ने मना कर दिया. लेकिन साथ में एक उपाय भी सुझाया. शादी कर लेने का. फिर क्या था. जल्दी-जल्दी अखबार में ऐड देकर लड़की ढूंढी गई, और पितृपक्ष में शादी कर दी गई ताकि उनकी पत्नी नॉमिनेशन फाइल कर सकें. (पितृपक्ष यहां इसलिए बताया गया क्योंकि हिन्दू परिवार पितृपक्ष के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य करने से बचते हैं. इसलिए शादियां भी इस समयावधि में नहीं होती हैं). पत्नी थीं कविता सिंह जो उस उपचुनाव में जीत गईं. 2015 के विधानसभा चुनावों में भी जीत गईं, और अब सिवान से चुनाव लड़ने वाली हैं. लोकसभा के.
शादी के विज्ञापन में ये कहा गया था कि लड़की 25 साल से ऊपर की हो, वोटर आईडी उसके पास हो और वोटर लिस्ट में नाम हो. तस्वीर: फेसबुक
यही हाल कई दूसरी कैंडिडेट्स का भी है.
नीलम देवी मुंगेर से कांग्रेस के टिकट पर लड़ रही हैं. इनके पति अनंत सिंह को मोकामा के लोग दबंग मानते हैं. इनको टिकट नहीं दिया गया, तो अब इनकी पत्नी नीलम देवी उतरी हैं चुनाव में. विभा देवी की भी यही गाथा है. राष्ट्रीय जनता दल से टिकट मिला है. नवादा से चुनाव लड़ेंगी. इनके पति राजबल्लभ यादव पर बलात्कार का आरोप सिद्ध हो चुका है. 2015 में राजद की तरफ से यादव को विधानसभा का टिकट मिला था. सजा सुनाई गई तो सदस्यता ख़त्म कर दी गई. राजबल्लभ को आईपीसी (IPC – इंडियन पीनल कोड – भारतीय दंड संहिता) की धारा 376 एवं पॉक्सो की धारा 4 व 8 के तहत दोषी करार दिया गया था. इसके बाद विधायकी भी वापस ले ली गई. इस वक़्त वो नवादा जेल में उम्रकैद की सज़ा काट रहा है. पहले बेउर जेल में था, वहां से गवाही शुरू होने के बाद कोर्ट के आदेश से उसे नवादा जेल शिफ्ट कर दिया गया. विभा को टिकट मिलना भी उनके पति के कनेक्शन की वजह से है. क्योंकि इससे पहले राजनीति के फील्ड में उनकी उपस्थिति कहीं दिखाई नहीं देती. सिवान में ही कविता सिंह के सामने हिना शहाब उतर रही हैं. हिस्ट्रीशीटर शहाबुद्दीन की पत्नी हैं. सिवान में शहाबुद्दीन के नाम से लोग थर-थर कांपते हैं. उम्रकैद की सजा दी जा चुकी है शहाबुद्दीन को. खुद चुनाव नहीं लड़ सकते. लेकिन बीवी को लड़वा रहे हैं.
तस्वीर: फेसबुक
ये हाल सिर्फ विधानसभा या लोकसभा का नहीं है. पंचायतों को लेकर भी ऐसी खबरें आती रहती हैं. जो सीटें महिला सरपंचों के लिए आरक्षित होती हैं, वहां पुरुष अपनी पत्नियों को खड़ा कर देते हैं चुनाव में. ऐसी कई खबरें मीडिया में भी देखने को मिली हैं जहां पर सरपंच के पद के लिए चुनाव लड़ रहीं महिलाओं को खुद ही नहीं पता होता कि उनकी जिम्मेदारियां क्या हैं. या उनकी पब्लिसिटी उनके पति के नाम पर होती है. इतना ही नहीं , मीटिंग और पद की जिम्मेदारियों से जुड़े कामों में भी पति ही पहुंच जाते हैं. इन्हीं की वजह से ‘प्रधान पति’ जैसा शब्द चलन में आया है.
इसे प्रॉक्सी कैंडिडेचर कहा जा सकता है. प्रॉक्सी यानी किसी और के बदले में मौजूद होना. वो कहते हैं न अटेंडेंस में प्रॉक्सी लगा देना. वही बात. ये पुरुष, जिनको अखबारी भाषा में ‘बाहुबली’ कहा जाता है, अपने ऊपर संगीन मामलों की वजह से चुनाव नहीं लड़ पा रहे. तो अपनी जगह अपनी पत्नियों को खड़ा कर देते. ये पत्नियां उनकी प्रॉक्सी हो जाती हैं. क्योंकि उस क्षेत्र के लोग भी जानते हैं, वोट पत्नी को भले दे लें, सत्ता तो पति के हाथ में ही रहनी है.
नीतीश कुमार के आने के बाद से कई ऐसे कदम उठाये गए जिनके कारण राज्य की महिलाओं को फायदा हुआ. स्कूल जाने वाली बच्चियों को साइकल देने की योजना ने उन्हें काफी फायदा पहुंचाया, ये रिपोर्ट्स भी मानती हैं. महिलाओं में नीतीश सरकार को लेकर एक पॉजिटिव आउटलुक देखा जा सकता है. और ये भी कहा जाता है कि नीतीश के इलेक्शन और री इलेक्शन में महिला वोटरों का काफी योगदान रहा है. वैसे राज्य में जहां महिलाओं के लिए इतना कुछ किया गया हो, वहां चुनाव के समय इस तरह के निर्णय बिल्कुल अच्छे नहीं लगते. महिला सशक्तीकरण का झांसा देकर पावर हड़पी जा रही है जो वहीं टिकेगी जहां दशकों से टिकती आई है. ऐसे में इन महिलाओं का चुनाव में उतरना कोई बदलाव ला सकता है, कहना मुश्किल है.
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