चंदा कोचर को ICICI बैंक ने बर्खास्त किया, मगर वो मामला क्या है जो रोज अखबार में आया पर हमने पढ़ा नहीं
उस कर्ज की कहानी, जिसने चंदा कोचर और ICICI बैंक का रिश्ता तोड़ दिया.
चंदा कोचर, आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ और पूर्व प्रबंध निदेशक हैं. इन्होंने पिछले साल अक्टूबर में खुद को आईसीआईसीआई बैंक से अलग कर लिया था. इस्तीफा दे दिया था. 4 अक्टूबर को बैंक ने इस्तीफा मंजूर भी कर लिया था. लेकिन अब इसमें नया मोड़ आ गया है. बैंक बोर्ड के निदेशक, अब कोचर के इस्तीफे को बर्खास्तगी के तौर पर ले रहे हैं.
लेकिन क्यों? क्योंकि जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट आ गई है. ये समिति वीडियोकॉन ग्रुप को कर्ज देने के मामले में, कोचर पर लगे आरोपों की जांच कर रही थी. समिति ने जांच में पाया कि चंदा कोचर ने इस ग्रुप को कर्ज देने के मामले में, बैंक की आचार संहिता का उल्लंघन किया है. साथ ही ये भी कहा गया, कि 3,250 करोड़ रुपए का कर्ज देने में 'हितों का टकराव' यानी 'कॉनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट' का आचरण भी सामने आया है. क्योंकि कोचर की रजामंदी से इस कर्ज का एक हिस्सा, उनके पति दीपक कोचर की मालिकाना हक वाली कंपनी को भी दिया गया था.
चंदा कोचर. फोटो- रॉयटर्स
समिति की रिपोर्ट आने के बाद बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का फैसला आया. जिसमें ये कहा गया कि कोचर का इस्तीफा उन्हें 'कंपनी से हटाया जाने' के तौर पर लिया जाएगा. यानी 'Termination for Cause' माना जाएगा. यानी बैंक ये मानेगा कि कोचर ने इस्तीफा नहीं दिया, बल्कि उन्हें नौकरी से निकाला गया है. जिसका सीधा मतलब ये हुआ, कि कोचर को बैंक से भविष्य में मिलने वाले सारे फायदे रुक जाएंगे. फिर चाहे वो बोनस हो, इनक्रीमेंट हो, मेडिकल बेनिफिट हो या फिर स्टॉक ऑप्शन हो.
एक और जरूरी बात. बैंक उनसे सारे बोनस भी वसूलेगा. साल 2009 से 2018 के बीच कोचर को बैंक से जो भी बोनस मिला है, वो उन्हें वापस करना होगा. श्रीकृष्णा समिति की जांच रिपोर्ट में ये भी कहा गया है, कि कोचर ने बैंक को सालाना घोषणाएं बताने में भी ईमानदारी नहीं बरती.
ICICI Bank: Chanda Kochhar was in violation of ICICI Bank Code of Conduct, its framework for dealing with conflict of interest&fiduciary duties.Board of Directors has decided to treat separation of Chanda Kochhar from Bank as ‘Termination for Cause’ under Bank’s internal policies pic.twitter.com/ODLpACrx9l
— ANI (@ANI) January 30, 2019
बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के फैसले के बाद चंदा कोचर का भी रिएक्शन आ गया है. कोचर का कहना है कि वो इस फैसले से काफी निराश और हैरान हैं. वो कहती हैं, 'मुझे रिपोर्ट की कोई कॉपी भी नहीं दी गई. मैं दोहराना चाहती हूं कि कर्ज देने का कोई भी फैसला एकतरफा नहीं है. सामूहिक फैसले लिए जाते हैं. संस्थान की बनावट और संरचना ऐसी है कि हितों के टकराव की संभावना है ही नहीं. मैंने पिछले 34 साल में कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ आईसीआईसीआई की सेवा की है. इसके हित में कभी जरूरत पड़ी तो कड़े फैसले लेने में कभी नहीं हिचकी. बैंक के इस फैसले ने काफी दुखी किया है.'
जून से चली गई थीं छुट्टी पर
संदीप बक्शी बैंक के नए एमडी और सीईओ हैं. 5 साल तक सीईओ रहेंगे संदीप. वैसे तो वो जून से ही बैंक के सीईओ की तरह काम कर रहे थे, क्योंकि चंदा कोचर तभी से छुट्टी पर थीं. वीडियोकॉन ग्रुप को लोन देने के मामले की स्वतंत्र जांच चल रही थी, इसलिए चंदा को छुट्टी पर भेज दिया गया था.
बैंक ने चंदा कोचर के इस्तीफे पर एक बयान भी दिया था. कहा था कि उन्होंने अनुरोध किया था, इसलिए इसे एक्सेप्ट कर लिया गया. बैंक ने कहा था, 'मामले की जांच चल रही है. चंदा कोचर के कदम का इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा.'
ICICI बैंक चंदा कोचर पर लगे आरोपों की जांच एक स्वतंत्र इंटरनल कमिटी से करा रहा था. अब चंदा कोचर पर कौन से आरोप लगे हैं. ये पूरा मामला क्या है, पहले ये समझ लेते हैं.
'चंदा कोचर' ये नाम अखबार की सुर्खियों में इतना छाया हुआ है कि आप भले ही ना जानती हों कि ये औरत कौन है. पर अब तक इनका चेहरा तो पहचान ही गई होंगी. अगर गूगल पर सिर्फ चंदा सर्च करें, तो चंदा मामा नहीं चंदा कोचर सर्च रिज़ल्ट में नज़र आएंगी. आईसीआईसीआई बैंक सबसे ऊंचे पद से इस्तीफा देने वाली चंदा कोचर का इस बैंक से रिश्ता बहुत पुराना है.
अपने करियर की शुरुआत चंदा कोचर ने इसी आईसीआईसीआई कंपनी से की थी. कंपनी इसलिए क्योंकि तब तक आईसीआईसीआई बैंक नहीं बना था. सन 1984 की बात है, जब चंदा ने ये कंपनी जॉइन की थी. तब ये कंपनी कपड़ा, पेपर और सीमेंट का कारोबार करती थी. इस कंपनी में चंदा को बतौर मैनेजमेंट ट्रेनी के पद पर नियुक्त किया गया था. पर इच्छाएं किसकी नहीं होती. जैसे राहुल गांधी ने अपनी इच्छा जताई PM बनने की. इसी तरह से इस कंपनी की भी इच्छा थी एक बैंक बनने की.
इसलिए 1993 में एक टीम बनाई गई. जो इस सपने को पूरा करने में मदद करती. इस टीम का हिस्सा चंदा कोचर भी थीं. 1994 में जब ये बैंक बना, तब चंदा कोचर को इस बैंक का असिस्टेंट जनरल मैनेजर बनाया गया. और बस उस दिन के बाद से चंदा ने कभी पलट के नहीं देखा. वो तरक्की की सीढ़ियां चढ़ती गईं. और जिस बैंक की वो कभी मैनेजर हुआ करती थीं. उस बैंक के सबसे बड़े पद पर पहुंच गईं. उस बैंक की सीईओ बन गईं.
तो फिर दिक्कत कहां आई?
पैसे का चक्कर बाबू भैया.. पैसे का चक्कर. बैंक के आमतौर पर दो ही काम होते हैं. पैसा लेना या देना. ये मामला है लोन का. जो कि आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप को दिया था. कंफ्यूजिंग हो गया. छोड़ो शुरू से समझो. हम जैसे आम लोगों के लिए लाख-दो लाख रुपये बहुत बड़ी रकम होती है. पर ये जो बड़े लोग होते हैं ना ये हज़ार-हज़ार करोड़ रुपयों में बात करते हैं. ऐसा ही है एक वीडियोकॉन ग्रुप. हां, वही वीडियोकॉन जिसके टीवी, वॉशिंग मशीन सब आते हैं. इस कंपनी के मालिक का नाम है वेणुगोपाल धूत. धूर्त नहीं धूत. तो वेणुगोपाल को पड़ी पैसे की ज़रूरत, वो भी 10-20 करोड़ नहीं बल्कि सीधे 40 'हज्जार' करोड़.
साल 2012 में वेणुगोपाल की कंपनी ने 20 अलग-अलग बैंकों से 40,000 करोड़ रुपयों का लोन लिया. जिसमें कि एक बैंक आईसीआईसीआई भी था. वेणुगोपाल की कंपनी ने आईसीआईसीआई बैंक से 3,250 करोड़ रुपयों का लोन लिया. पर इसमें से 2810 करोड़ रुपयों का लोन ये कंपनी आईसीआईसीआई को लौटा नहीं पाई. और इस लोन का भी वही हाल हुआ जो देश के हर बड़े आदमी के लोन का होता है. वो आदमी बच जाता है. और उसके लोन को एनपीए घोषित कर दिया जाता है. और बैंक की किताबों में बस एक भूली-बिसरी याद बनकर रह जाता है. पर कहानी पुरी सुनने से पहले हर छोटी चीज़ समझती चलो. तभी माज़रा क्या है समझ पाओगी कि NPA होता क्या है.
एनपीए क्या है?
आप किसी को पैसे उधार देती हो. किसी की मदद करने के लिए. या फिर ब्याज़ कमाने के लिए. कुछ दिनों बाद अगर पैसा फंस जाए तो मन में बस एक ही बात रहती है कि ब्याज़ छोड़ो वो औरत मूलधन ही लौटा दे, वो ही बहुत है. और इसी तरह से हम ये उम्मीद छोड़ देती हैं कि ये पैसा कभी वापस लौट के आएगा. इसी तरह से बैंकों का है. वो किसी को लोन देते हैं. मगर एक बार उनका पैसा फंस जाए. उन्हें ये लगने लगे कि ये पैसा वापस लौट के नहीं आएगा. तो उस कर्ज़े पर दिए पैसे को NPA घोषित कर देते हैं.
मगर ये कोई टीवी का सीरियल नहीं है. जहां वो अपने मन की बात सुनते हैं. और उस हिसाब से तय करते हैं, कि इस पैसे को एनपीए करना है या नहीं. इसका एक प्रोसीजर है.
चलो इसे एक कहानी की तरह समझते हैं. हमारी कहानी की हीरोइन है प्रिया. तो प्रिया ने जमनाबाई बैंक से कुछ पैसे लोन लिए. जमनाबाई बैंक ने बड़े उम्मीदों से प्रिया को सब लिखाई-पढ़ाई कराके पैसे उधार दे दिए. आज की तारीख में प्रिया को ब्याज़ की किश्त भरनी थी मगर उसने नहीं भरी. बैंक के नियम के अनुसार अगर कोई व्यक्ति तय की गई तारीख से 1 से 30 दिन के अंदर पैसे नहीं भरता है तो उसके खाते को स्पेशल मेंशन अकाउंट-0 के नाम से डाल दिया जाता है. ऐसा ही जमनाबाई बैंक ने प्रिया के खाते के साथ भी किया. उसके खाते को स्पेशल मेंशन अकाउंट-0 में डाल दिया.
अगला नियम ये है कि अगर मूलधन या ब्याज़ का भुगतान 31 से 60 दिन के अंदर ना हो तो, उस खाते को स्पेशल मेंशन अकाउंट-1 कहा जाता है. इसी तरह से पैसे का भुगतान 61 से 90 दिन के अंदर ना हो तो उसे स्पेशल मेंशन अकाउंट- 2 कहा जाता है. बैंकों ने उससे कहा भी कि चलो मूल धन ना सही, ब्याज़ की किश्तें ही भरती रहो. मगर प्रिया ने ना ही बैंक को मूल धन लौटाया ना ही ब्याज़ की किश्त. अब 90 दिन बीत चुके थें. बैंक को याद आया कि नियम के अनुसार अगर कोई 90 दिन तक मूलधन या ब्याज़ की किश्त नहीं लौटाता है तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होगा. तो नियम के अनुसार जमनाबाई बैंक ने प्रिया के पैसे को एनपीए में तो डाल दिया. मगर पैसा आने की उम्मीद अभी भी नहीं छोड़ी.
90 दिन बीत चुके हैं. अब साल भर होने को आया. बैंकों ने अब दूसरा नियम याद किया. जिसमें अगर कोई लोन खाता 1 साल या इससे कम टाइम के लिए एनपीए की श्रेणी में रहता है. तो उसे सबस्टेंडर्ड असेट्स कहा जाता है.
अब प्रिया का लोन सबस्टेंडर्ड असेट्स में आ गया. मगर प्रिया के लोन को सबस्टेंडर्ड असेट्स श्रेणी में आए हुए भी 1 साल बीत गया. तो जमनाबाई बैंक को इसे डाउटफुल असेट्स में डालना पड़ा. अब इसके बाद जब भी जमनाबाई बैंक ये मान लेगा कि प्रिया उनके पैसे नहीं लौटाएगी. बैंक इसे लॉस एसेट्स में डाल देगा.
लोन तो 40 हज़ार करोड़ का है, तो फिर 3,250 करोड़ को इतनी तवज्जो क्यों?
हमने आपको बताया कि ये वीडियोकॉन ग्रुप के मालिक ने आईसीआईसीआई बैंक से लिया था. इस कंपनी के मालिक का नाम है वेणुगोपाल धूत. चंदा कोचर के पति दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत के पुराने बिज़नेस संबंध है. बस इसी बात ने आग में घी का काम किया. मीडिया में ये मुद्दा कुछ इस तरह उठाया गया कि एक सोची-समझी नीयत के तहत चंदा कोचर ने वेणुगोपाल धूत को ये लोन दिया. इसके पीछे की एक कहानी बताई सबने:
दीपक कोचर की एक कंपनी है जिसका नाम है पिनेकल एनर्जी ट्रस्ट. ये ऊर्जा के क्षेत्र में काम करती है. वेणुगोपाल की वीडियोकॉन के अलावा एक और कंपनी है जिसका नाम है सुप्रीम एनर्जी. ये भी ऊर्जा के क्षेत्र में काम करती थी. 2008 में दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत ने मिलकर एक कंपनी बनाई. इस कंपनी का नाम रखा गया न्यूपावर रिन्यूएबल प्राइवेट लिमिटेड. इस कंपनी में ये दोनों बराबर के हिस्सेदार थे.
लेकिन जून 2009 में कंपनी को जब 1 महीने ही हुआ था, वेणुगोपाल ने डायरेक्टर पद से इस्तीफ़ा दे दिया. और उनकी आधी हिस्सेदारी दीपक कोचर को बेच दी. मगर 2010 में दीपक कोचर को न्यूपावर के लिए पैसे की ज़रूरत पड़ी. वो ज्यादा दूर नहीं गए. बल्कि वेणुगोपाल से 64 करोड़ का लोन ले लिया. मगर लेन-देन के धंधे में कोण किसका सगा होवे है. तो वेणुगोपाल ने शर्त रखी कि पैसे तो लेलो मगर बदले में न्यूपावर को सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड में हिस्सेदारी दे दो.
दीपक कोचर ने ये शर्त मान ली. और अपनी, अपने पिता की कंपनी पेसिफिक कैपिटल, और चंदा कोचर के भाई महेश आडवाणी की पत्नी की न्यूपावर कंपनी में जो भी हिस्सेदारी थी. उसे पूरी तरह सुप्रीम एनर्जी को दे दिया. मगर ये कंपनी कम, गेंद ज्यादा लग रही थी जो इधर से उधर लुढ़क रही थी. क्योंकि 8 महीने तक सुप्रीम एनर्जी ने न्यूपावर को चलाया. मगर 8 महीने के बाद सिर्फ न्यूपावर ही नहीं बल्कि सुप्रीम एनर्जी को वेणुगोपाल ने अपने सहयोगी महेश चन्द्र पूंगलिया को ट्रान्सफर कर दिया. पर महेश चन्द्र से भी ये कंपनी नहीं संभली. उन्होंने एक साल के बाद ही 29 सितम्बर 2012 से 29 अप्रैल 2013 के बीच में अपनी पूरी हिस्सेदारी पिनाकेल एनर्जी, जो कि दीपक कोचर की कंपनी है उसको बेच दी. वो भी सिर्फ 9 लाख रुपये में.
लोन का अमाउंट 3,250 करोड़ नहीं, बल्कि 3,910 करोड़ था
सबने ये ही बताया कि लोन का अमाउंट 3,250 करोड़ है. मगर लोन की अमाउंट असल में 3,910 करोड़ था. क्योंकि इन 3,250 करोड़ रुपये के अलावा आईसीआईसीआई बैंक ने 660 करोड़ का लोन दिया था Tuskar overseas inc. को. Caymand islands में एक tuskar overseas inc. नाम की कंपनी है. ये कंपनी वीडियोकॉन ग्रुप का ही हिस्सा है. इस कंपनी को आईसीआईसीआई बैंक की यूनाइटेड स्टेट्स और कनाडा की ब्रांच से 660 करोड़ का लोन दिया गया. ये सारी जानकारी हमें अरविंद गुप्ता की चिट्ठी से मिली है. इस लोन की गारंटी वीडियोकॉन ग्रुप की ही 6 इंडियन कंपनियों ने दी थी. नवम्बर 2015 में लाइव मिंट में छपी एक खबर के मुताबिक देश की प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने वीडियोकॉन को इस लोन के चलते एक शोकॉज़ नोटिस भी भेजा था. क्योंकि इस कंपनी ने जो लोन लिया था वो इन्वेस्टमेंट के तौर पर इंडिया में वीडियोकॉन की ही एक कंपनी में लगा दिया था.
2001 से हैं इनके बीच संबंध
लाइव मिंट में एक खबर छपी थी जिसके मुताबिक चंदा कोचर और उनके परिवार के बीच 2001 से व्यावसायिक संबंध हैं. 1995 में क्रेडेंशियल फाइनेंस लिमिटेड नाम की एक छोटी कंपनी थी. 2001 में इस कंपनी में चंदा कोचर और उनके परिवार के 6 सदस्यों के 2 फीसदी शेयर थे. 1995 में इस कंपनी में कोचर परिवार के तीन सदस्य डायरेक्टर पद पर नियुक्त थे. 2001 में ही वीडियोकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड ने 17.74 फीसदी और उसकी सहायक कंपनी जॉय होल्डिंग ने 0.8 फीसदी के शेयर लिए हुए थे क्रेडेंशियल फाइनेंस लिमिटेड के.
2009 में चंदा कोचर आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ बनी. और 2010 तक वो इस कंपनी के शेयर या तो बेच चुकी थीं, या ट्रान्सफर कर चुकी थीं. क्योंकि 2010 के बाद उनके इस कंपनी से जुड़े रहने के कोई रिकॉर्ड नहीं है. इस कंपनी में भी दीपक कोचर, उनके भाई राजीव कोचर और चंदा कोचर के भाई की पत्नी मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर थीं.
चंदा कोचर को इस मामले में क्यों गलत बताया गया?
बार-बार इस मामले में एक टर्म इस्तेमाल किया जा रहा था, वो था 'कॉनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट'. कॉनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का मतलब है जब किसी इंसान का काम से जुड़ा कोई फैसला उसके निजी काम से प्रभावित हो. सीधे-सीधे कहें तो उसे उसमें अपना फायदा नज़र आ रहा हो. चंदा कोचर पर यही आरोप लगा था कि इन्होंने अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए वीडियोकॉन कंपनी को लोन दिया. क्योंकि उनके पति और वीडियोकॉन ग्रुप के मालिक के व्यावसायिक संबंध थे. सबसे पहले इस लोन वाले मामले में झोल होने की आशंका अरविंद गुप्ता ने जताई थी.
अरविंद ने 15 मार्च 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर इस मामले में निष्पक्ष जांच करने के लिए कहा था. अरविंद गुप्ता एक व्हिसल ब्लोअर हैं. एक व्हिसल ब्लोअर का काम होता है अपने आसपास हो रहे फ्रॉड, या गलत काम को जनता के सामने या ऊपरी सरकारी ऑथोरिटी के सामने लाना. अरविंद गुप्ता ने प्रधानमंत्री को ये भी लिखा कि भले ही वीडियोकॉन ग्रुप ने पिछले साल भारतीय जनता पार्टी को 5 लाख का डोनेशन दिया. और इस साल इसी ग्रुप ने बीजेपी को 11.1 करोड़ का डोनेशन दिया. बावजूद इसके सरकार को एक निष्पक्ष जांच करानी चाहिए, जिससे वो आईसीआईसीआई बैंक में आने वाले संकट को रोक सकें. उन्होंने ये भी बताया कि वीडियोकॉन ग्रुप बहुत बुरी स्थिति से गुज़र रहा है. और ये जल्द ही बैंकों पर NPA के रूप में एक बोझ बन जाएगा.
बैंक का रुख
मगर बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने इस मामले में शुरू से ही चंदा कोचर का साथ दिया था. बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने 28 मार्च को एक प्रेस रिलीज़ जारी की थी. इसमें उन्होंने कहा था कि बैंक ने सभी नियमों का पालन करते हुए वीडियोकॉन ग्रुप को लोन दिया था. साथ ही जिस क्रेडिट कमिटी ने ये लोन दिया है, चंदा कोचर उस कमिटी की मुखिया नहीं थीं. बस उस कमिटी का हिस्सा थीं.
इसके अलावा 7 मई को आईसीआईसीआई के साल के आखिरी क्वार्टर के रिज़ल्ट आए. इसमें प्रेस से बात करते हुए चंदा कोचर ने हर सवाल का एक ही जवाब दिया 'कि बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स ने इस मामले में अपना रुख पहले ही साफ कर दिया है'. और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने उन पर पूरा भरोसा दिखाया है. साथ ही जब चंदा से अगली मीटिंग के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा कि ये बोर्ड मीटिंग हर साल जैसे होती है वैसे ही होगी, जिसमें हम बैंक की आने वाले साल की नीतियों पर ध्यान देंगे.
नियम से लोन पास हुआ मगर ये कैसा नियम है?
ठीक है, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने पूरा लोन एक प्रक्रिया के हिसाब से दिया. मगर ये कैसी प्रक्रिया है, जो कहती है कि आप एक ऐसी कंपनी को 650 करोड़ का लोन दे दो, जिसकी पिछले साल की कमाई सिर्फ 94 लाख हो. जिन 5 कंपनियों का ज़िक्र अरविंद गुप्ता अपनी चिट्ठी में करते हैं, उसमें से एक कंपनी EVANS FRASER AND CO. (INDIA) LIMITED भी है.
फर्स्ट पोस्ट में छपी खबर के मुताबिक आईसीआईसीआई बैंक ने साल 2012 में Evans fraser को 650 करोड़ का लोन दिया. मगर साल 2011 में इस कंपनी की टोटल सेल 75 करोड़ थी. और प्रॉफिट सिर्फ 94 लाख रुपये.आईसीआईसीआई बैंक ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि आईसीआईसीआई ने किसी भी कंपनी को अलग-अलग लोन नहीं दिया है. लोन देते वक्त तय कर लिया गया था कि अगर कोई एक कंपनी पैसे नहीं दे पाती है. ऐसे में वीडियोकॉन की सभी बारह कंपनियां बाध्य होंगी लोन का भुगतान करने के लिए.
समिति की रिपोर्ट अब आ चुकी है. जिसके बाद चंदा को बैंक ने बर्खास्त कर दिया है.
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