महिला सांसद को विकसित देश में भी मां होने की सज़ा मिली, संसद से बाहर निकलने को कहा गया

क्या मांएं देश नहीं चला सकतीं?

लालिमा लालिमा
मार्च 22, 2019
स्पीकर पिया जेर्सगार्ड (लेफ्ट). सांसद मेते अबिल्डगार्ड अपनी बेटी के साथ (राइट). फोटो- फेसबुक

डेनमार्क, इंडिया से करीब 7000 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक देश है. एक विकसित देश है. औरतों के अधिकारों पर यहां काफी काम हुआ है. औरतों के रहने के लिए एक अच्छा देश माना जाता है. अब इसी देश से काफी हैरान करने वाला एक मामला सामने आया है. जो डेनमार्क की इमेज से काफी उलट है.

यहां एक सांसद हैं मेते अबिल्डगार्ड. कन्जर्वेटिव पीपल्स पार्टी की ग्रुप लीडर हैं. इनकी 5 महीने की एक बेटी है. हाल ही में मेते अपनी बेटी को लेकर पार्लियामेंट चैंबर पहुंचीं. ये बात स्पीकर पिया जेर्सगार्ड को पसंद नहीं आई. जिसके बाद स्पीकर ने मेते को आदेश दिया कि वो अपनी बेटी को पार्लियामेंट से बाहर करें. स्पीकर ने एक असिस्टेंट के जरिए मेते तक ये मैसेज पहुंचाया. जेर्सगार्ड ने कहा, 'पार्लियामेंट चेंबर में तुम अपने बच्चे के साथ नहीं आ सकती.'

इस मामले में मेते ने फेसबुक पर एक पोस्ट भी डाला. जिसमें मेते ने बताया, कि उन्होंने पहले देखा था कि एक कलीग अपने बच्चे को लेकर पार्लियामेंट आ चुकी है, इस वजह से उन्हें लगा कि अगर वो अपनी बच्ची को लेकर जाएं, तो कोई दिक्कत नहीं होगी. और यही कारण था कि उन्होंने इसके लिए परमिशन नहीं ली. मेते पहली बार अपनी बच्ची को लेकर पार्लियामेंट पहुंची थीं. इससे पहले उन्होंने ऐसा नहीं किया था. और उन्हें मजबूरी में अपनी बेटी को लाना पड़ा था, क्योंकि उस दिन उसके पिता देखभाल नहीं कर सकते थे.

mette-abildgaard-2_750x500_032219024219.jpgमेते अबिल्डगार्ड पहली बार अपनी 5 महीने की बेटी को लेकर पार्लियामेंट चैंबर पहुंची थीं. फोटो- फेसबुक

खैर, जब मेते को पिया ने मैसेज पहुंचाया. तब उन्होंने अपनी बेटी को एक असिस्टेंट के हवाले किया, और फिर अपने चैंबर लौट गईं. इस मामले में जब पिया जेर्सगार्ड, जो कि दक्षिणपंथी डेनिश पीपुल्स पार्टी की पूर्व नेता रह चुकी हैं, उनसे सवाल किया गया. तब उन्होंने कहा कि वो केवल नियमों का पालन कर रही थीं. साथ ही ये भी कहा, 'चैंबर में सांसदों को होना चाहिए. उनके बच्चों को नहीं.' इसके अलावा ये भी जानकारी दी कि वो इस मामले पर जल्द ही एक स्पष्ट गाइडलाइन जारी करेंगी.

डेनमार्क, दुनिया के शांत देशों में शुमार है. यहां लैंगिक समानता और औरतों के अधिकार को काफी बढ़ावा दिया जाता है. बच्चे के जन्म के समय यहां पिता को भी छुट्टी मिलती है. माता-पिता दोनों को मिलाकर, जन्म के समय 32 हफ्तों की छुट्टी मिलती है, इसे वो अपने हिसाब से बांट सकते हैं.

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इस मामले ने सबसे बड़ा सवाल वर्किंग वीमन्स के लिए खड़ा किया है. कामकाजी महिलाओं के लिए वैसे भी अपने बच्चों को पालना काफी मुश्किल काम होता है. भले ही ऑफिस की तरफ से कुछ दिनों के लिए मेटर्निटी लीव मिल जाती है, लेकिन छुट्टियां खत्म होने के बाद काम के साथ-साथ बच्चों की देखभाल करना बड़ा चैलेंज हो जाता है. ऐसे में जरूरी ये है कि हर ऑफिस में एक क्रेश की सुविधा तो होनी ही चाहिए. ये एक अच्छा विकल्प है.

पार्लियामेंट में भी क्रेश की सुविधा होनी चाहिए. ताकि मांएं अपने बच्चों को वहां पर छोड़ सकें. एक सुरक्षित माहौल में उनका बच्चा रहे. भारत के कुछ ऑफिस में क्रेश की सुविधा है, लेकिन आज भी पार्लियामेंट में ये सुविधा नहीं है. महला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को साल 2017 में एक लेटर लिखा था. जिसमें ये मांग की गई थी कि पार्लियामेंट में भी क्रेश की सुविधा होनी चाहिए. जिस पर साल 2018 में ये खबर आई थी, कि पार्लियामेंट में जल्द ही क्रेश की सुविधा दी जाएगी. लेकिन अभी तक ये सुविधा मिलना शुरू नहीं हुई है. इस पर हमारी टीम ने ये जानने की कोशिश की, कि आखिर क्रेश बनाने की प्रक्रिया कहां तक पहुंची है? इसके लिए हमने महिला एवं 1ल विकास मंत्रालय को कॉल लगाया. हमें हर कोई एक-दूसरे का नंबर पास करता गया. लेकिन किसी ने जानकारी नहीं दी.

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