कामुक संतुष्टि के लिए हम पॉर्न देखते हैं, पर उसकी ये डरावनी सच्चाई नहीं देख पाते

ऐसी सच्चाई जिसे हमारे बच्चे भुगतते हैं.

ऑडनारी ऑडनारी
जुलाई 16, 2018
10 में से चार रेप विक्टिम्स बच्चे होते हैं. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

आज यानी 16 जुलाई को 5 लड़के जुवेनाइल कोर्ट में पेश हुए. जुवेनाइल कोर्ट, यानी नाबालिग क्रिमिनल्स की सजा तय करने वाला कोर्ट. 9 से 14 साल की उम्र के इन 5 बच्चों को चोरी, पॉकेटमारी या नशे के चलते गिरफ्तार नहीं किया गया था. इन्होंने रेप किया था.

13 जुलाई 2018. देहरादून के पास एक गांव में 8 साल की बच्ची अपने घर के बाहर खेल रही थी. उस समय उसके घर पर कोई नहीं था. लड़की की मां काम पर गई थीं. पिता ऑटो चलाते थे, सो वो भी बाहर थे. तभी बगल में रहने वाले ये 5 लड़के उसके घर आए. लड़की को टॉफी देने के बहाने अपने घर बुलाया. घर ले जाकर उन्होंने उस लड़की का रेप किया. जब उन्हें लगा कि कोई आ रहा है तो वो सब भाग गए. पुलिस जांच में पता लगा कि इन बच्चों को रेप का आइडिया पॉर्न फिल्म देखकर आया था.

इंटरनेट पर पॉर्न देखना बहुत आसान है. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay इंटरनेट पर पॉर्न देखना बहुत आसान है. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay

पॉर्न, जिज्ञासा और रेप

1. कुछ दिनों पहले कानपुर में भी ऐसा ही कुछ हुआ. चार नाबालिग लड़कों ने एक चार साल की लड़की का रेप किया. इन लड़कों की उम्र 7 से 12 साल थी. पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि बच्चे वो कर के देखना चाहते थे जो उन्होंने थोड़ी देर पहले एक पॉर्न फिल्म में देखा था.

2. बीते हफ़्ते हैदराबाद शहर में 7 साल के एक बच्चे ने ट्यूशन क्लास के दौरान 4 साल की बच्ची के प्राइवेट पार्ट में पेंसिल डालकर उसे घायल कर दिया. वजह पूछने पर बताया कि उसे जिज्ञासा थी.

3. जबसे मेमोरी या स्टोरेज वाले फोन आने शुरू हुए, पॉर्न फिल्मों का सेवन बढ़ा ही है. और साथ में बढ़े हैं जुवेनाइल रेपिस्ट. 2003 से 2013 के बीच जुवेनाइल रेपिस्ट, यानी रेप करने वाले नाबालिगों की संख्या 288 फीसद यानी लगभग 3 गुना बढ़ी है.

4. इंडिया का आईटी एक्ट 'चाइल्ड पॉर्न' बनाने, देखने, बेचने और फैलाने को गुनाह बताता है. ऐसा करने पर पांच साल की सजा और 10 लाख तक का फाइन भरना पड़ सकता है. इंडिया में पॉर्न बेचना यूं भी गुनाह है.

5. मगर इंटरनेट पर कानून लगाना हवा को बांधने जैसा है. हम जो कर सकते हैं, वो बस इतना है कि कम से कम अपने बच्चों को रेपिस्ट न बनने दें. न ही उन्हें रेप का शिकार होने दें.

कानपुर में चार नाबालिग लड़कों ने एक चार साल की लड़की का रेप किया. फ़ोटो कर्टसी: Reuters कानपुर में चार नाबालिग लड़कों ने एक चार साल की लड़की का रेप किया. फ़ोटो कर्टसी: Reuters
 

बच्चों का रेप

नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 के डाटा के मुताबिक:

1. 10 में से चार रेप विक्टिम्स बच्चे होते हैं. इनकी उम्र पैदा हुए बच्चे से लेकर 17 साल तक की होती है.

2. साल 2016 में 2,116 ऐसी लड़कियों का रेप हुआ जिनकी उम्र 11 साल से कम थी.

3. लगभग 95 फीसद रेप के केसेज में पीड़ित बच्ची रेपिस्ट को जानती थी.

4. महज 2016 में अमूमन हर दिन 100 केस POCSO के तहत दर्ज किए गए थे. कुल मिलाकर एक ही साल में 36 हज़ार से ज्यादा केस रिपोर्ट किए गए थे.

5. डाटा दिखता है कि पिछले पांच सालों में बच्चों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा दुगनी हो गई है.

6. बच्चों के हित में काम करने वाले NGO, CRY के मुताबिक़, जो बच्चे बस्ती, झोपड़ी, या ऐसी किसी जगह रहते हैं जहां कोई भी आसानी से घर अंदर आ जाता है, रेप के ज्यादा खतरे में रहते हैं.

10 में से चार रेप विक्टिम्स बच्चे होते हैं. फ़ोटो कर्टसी: Reuters 10 में से चार रेप विक्टिम्स बच्चे होते हैं. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

जब किसी बच्चे के साथ ऐसा होता है तो उसकी दिमागी हालत कैसी होती है?

1. NGO सेव द चिल्ड्रेन के साथ काम करने वाली अंजलि ने बताया, बच्चा/ बच्ची गहरे सदमे में होता/होती है.

2. अगर पुलिस या मनोविज्ञानिक उनसे बात करते करते हैं, तो वो अंदर ही अंदर बात दबाकर रखते हैं. जवाब नहीं देते. बहुत आराम से, बहुत प्यार से, धीरे, धीरे पूछना पड़ता है कि ‘उस लड़के ने कहां छुआ’?

3. मां-बाप भी बच्ची को दोष देते हैं. जैसे ‘तुम वहां क्यों गईं’. ‘तुम वहां क्यों खेल रही थीं.’ ख़ुद को भी दोष देते हैं कि क्यों जाने दिया.

4. उनका स्कूल जाना भी छुड़वा देते हैं. छोटी जगाहों में स्कूल और आस-पास पता होता है क्या हुआ. मां-बाप शर्मिंदगी के मारे बच्चे को स्कूल नहीं भेजते.

5. चाइल्ड साइकोलोजिस्ट नीलम वशिष्ठ के मुताबिक़, बच्चों को ऐसे हादसे के बाद नींद आने में दिक्कत होती है. वे नींद में चिल्लाते हैं. सोते-सोते पेशाब कर देते हैं.

6. अकेले और खोए-खोए रहते हैं.

ऊपर हमने जिन तीन वाकयों की बात की, उनमें सिर्फ रेप के शिकार ही नहीं, रेप करने वाले भी बच्चे थे. क्या होता है उन बच्चों का, जो अपराधी होते हैं?

मां-बाप भी बच्ची को दोष देते हैं. फ़ोटो कर्टसी: Reuters मां-बाप भी बच्ची को दोष देते हैं. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

कैसा होता है इन अपराधियों का दिमाग

1. चाइल्ड साइकोलोजिस्ट नीलम वशिष्ठ के मुताबिक़, जुवेनाइल दो तरीके के होते हैं. एक, पढ़े लिखे परिवारों से, जिनके मां-बाप के पास पैसे होते हैं. दूसरे, बेघर, गरीब, स्कूल न जाने वाले या झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले.

2. बच्चों को उन चीजों को ‘मिमिक’ करने की नैसर्गिक इच्छा होती है, जो वो देखते हैं. इसलिए चाइल्ड रेपिस्ट और पोर्न में गहरा संबंध है.

3. गरीब बच्चों के ग्रुप होते हैं. छोटे लड़कों के इस ग्रुप में अक्सर एक 18-19 साल का लड़का होता है जो इनका सेक्स गुरु होता है. वो इनके फैसलों को गलत इनफॉर्मेशन देते हुए प्रभावित करता है. इसी गलत इनफॉर्मेशन से बच्चों की सोच बिल्ड होती है. किसी समझदार व्यक्ति से इनकी बात नहीं होती. ये बच्चे इसलिए खुले घरों, झुग्गियों, बस्तियों या फुटपाथ पर रहने वाले दूसरे बच्चों पर हमला करता हैं.

4. पढ़े-लिखे घरों के बच्चे भी भले कितना भी पढ़ लें, उनका सेक्स एक्सपोज़र कम होता है. ऐसे में पढ़े-लिखे बच्चे भी एक्सपेरिमेंट करते हैं.

5. पैसे वाले घरों में मर्दानगी का भी रौला रहता है. वो घरों में मां को पिता से दबते हुए देखते हैं और सोचते हैं कि अपने से कमज़ोर को दबाना नॉर्मल है. इसलिए वे हिंसक बनते हैं.

बच्चों को चीजों को ‘मिमिक’ करने की नैसर्गिक इच्छा होती है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters बच्चों को चीजों को ‘मिमिक’ करने की नैसर्गिक इच्छा होती है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट

वकील विभोर आनंद ने हमसे साझा किया:

1. 2015 में सुधार के बाद पास हुए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में 16 से 18 की उम्र के अवयस्कों को वयस्क की तरह सज़ा देने का प्रावधान बनाया गया. ये उसी मामले में लागू होगा जब उस अवयस्क ने कोई ‘जघन्य अपराध’ किया हो. जघन्य अपराध क्या होगा, और उसकी क्या परिभाषा होगी, यह कोर्ट का निर्णय होगा.

2. 7 साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया गया कोई भी अपराध, अपराध नहीं माना जाएगा.

3. 7 से 12 साल की उम्र के बच्चे द्वारा किया गया कोई भी अपराध, अपराध नहीं होगा अगर उसकी सोच और समझ इतनी विकसित नहीं हुई है कि वो अपनी हरकतों के परिणाम समझ सके. इसका निर्णय कैसे होगा? इसका निर्णय केस पर निर्णय लेने वाले जज करेंगे, जिनको डॉक्टरों, मनोवैज्ञानिकों जैसे लोगों की सहायता मिलेगी.

4. 12 से 16 साल तक की उम्र तक कोई ख़ास प्रावधान नहीं है. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत ही सज़ा मिलेगी.

5. एक बात जो काबिल ए गौर है इस पूरे प्रावधान में, वो ये है कि जिन भी बच्चों को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत मुक़दमे में लाया जाता है, उनको अपराधी नहीं कहा जाता. उनको अभियुक्त भी नहीं कहा जाता. उनको कहा जाता है, 'चिल्ड्रेन इन कंफ्लिक्ट विद लॉ'.

7 साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया गया कोई भी अपराध, अपराध नहीं माना जाएगा. फ़ोटो कर्टसी: Shutterstock 7 साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया गया कोई भी अपराध, अपराध नहीं माना जाएगा. फ़ोटो कर्टसी: Shutterstock

तो हम क्या करें?

चाइल्ड साइकोलॉजी की स्कॉलर अर्चना अपराजिता के मुताबिक़,

1. शारीरिक आकर्षण स्वाभाविक है. अच्छा या बुरा है, ये बच्चे को पता नहीं होता. हम बच्चों को बताएं कि शरीर से जुड़ी किसी भी तरह की जिज्ञासा मन में हो तो मां-बाप के पास आएं. न कि किसी दोस्त या स्कूल के सीनियर या उम्र में बड़े दोस्त के पास.

2. टीनेज बच्चे कहते हैं कि उन्हें क्रश हो गया. या प्यार हो गया. इतना स्पेस रखें कि वे इस तरह कि बातें आपको अत सकें. आज ये बताएंगे तो कल बड़ी बातें बताने में भी नहीं झिझकेंगे.

3. बच्चे अक्सर जानना चाहते हैं कि जिस अंग से वे पेशाब करते हैं कि वो भाई और बहन में अलग-अलग क्यों होता है. हम उन्हें बताएं कि ये नेचुरल है. ये भी बताएं कि ये अलग क्यों है.

बच्चों को सेक्स एजुकेशन देना ज़रूरी है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters बच्चों को सेक्स एजुकेशन देना ज़रूरी है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

4. सेक्स एजुकेशन देने की कोई एक उम्र नहीं हो सकती. जैसे-जैसे उनके मन में सवाल आएं, वैसे-वैसे उनके जवाब दें. ये ने सोचें कि एक दिन में ही बैठकर सब बताना है. ये पेरेंटिंग है. इसे हर दिन करना होगा.

*दुनिया की आधी नाबालिग युवा जनसंख्या इंडिया में है. गिनें, तो लगभग 25 करोड़ युवा. ये हमारे ऊपर है कि 25 करोड़ की इस फ़ौज को हम रेप के शिकार और शिकारियों के तौर पर तैयार करें, या 'अच्छे दिन' की आस लगाए इस देश में पढ़े-लिखे, दिमागदार, मेहनतकश मानव संसाधन की तरह.

 

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