श्रुति चौधरी: हरियाणा के पूर्व CM बंसीलाल की पोती, जो पुश्तैनी जायदाद के लिए 12 साल से केस लड़ रही हैं

कांग्रेस ने भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से टिकट दिया है.

लालिमा लालिमा
अप्रैल 24, 2019
लोकसभा सांसद रह चुकी हैं, तीसरी बार मैदान में हैं. फोटो- फेसबुक

श्रुति चौधरी. कांग्रेस की नेता हैं. बड़ी नेता हैं. पूर्व लोकसभा सांसद हैं. भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट को साल 2009 से 2014 के बीच लोकसभा में रिप्रेजेंट कर चुकी हैं. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल की पोती हैं. पूर्व सांसद सुरेंद्र सिंह की बेटी हैं. कांग्रेस ने एक बार फिर इन पर भरोसा जताया है. भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से इन्हें लोकसभा का टिकट दिया है. इस सीट पर 12 मई के दिन चुनाव होंगे. यानी छठवें चरण में वोटिंग होगी. श्रुति ने नामांकन दाखिल कर दिया है. और इस वक्त वो चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं.

कैसे आईं पॉलिटिक्स में ?

श्रुति की दिलचस्पी वैसे तो वकालत में थी. आगरा की बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी से उन्होंने एलएलबी भी कर रखी है. लेकिन फिर सवाल आता है कि वो राजनीति में कैसे आईं? जवाब है उनका परिवार. बचपन से ही उन्होंने राजनीति करीब से देखी थी. क्योंकि दादा बंसीलाल मुख्यमंत्री थे, पिता सुरेंद्र भी राजनीति में एक्टिव थे. माने श्रुति का बैकग्राउंड राजनीतिक ही था. लेकिन फिर भी उन्होंने थोड़ी अलग राह पकड़ी, और वकालत शुरू कर दी. फिर हुआ ये कि उनके पिता सुरेंद्र सिंह की मौत हो गई. 31 मार्च 2005 के दिन एक चॉपर इमरजेंसी लैंडिंग के वक्त क्रैश हो गया. इस चॉपर में सुरेंद्र सिंह थे. घटना में उनकी मौत हो गई.

56480387_453440095392519_286281307107885056_n_042419060949.jpgश्रुति चौधरी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल की पोती हैं. फोटो- फेसबुक

पिता की मौत के बाद श्रुति राजनीति में आईं. कांग्रेस ने इन्हें 2009 लोकसभा चुनाव में टिकट दिया. इन्हें भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से उतारा. ये सीट बंसीलाल परिवार की ही मानी जाती है. क्योंकि इस सीट से बंसीलाल तीन बार सांसद बने थे. वहीं उनके बेटे सुरेंद्र सिंह भी दो बार लोकसभा चुनाव जीते थे. इसलिए कांग्रेस ने बंसीलाल के पोती पर भरोसा जताने का फैसला किया. श्रुति पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव में उतरीं और जीत भी गईं. इन्होंने इंडियन नेशनल लोक दल के अजय सिंह चौटाला को 55 हजार वोटों से हराया. लेकिन 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में श्रुति को हार का सामना करना पड़ा. अब तीसरी बार फिर कांग्रेस ने इसी सीट पर श्रुति को टिकट दिया है. श्रुति चुनाव जीतेंगी या नहीं, ये तो नतीजों के बाद ही पता चलेगा.

वैसे तो श्रुति ने 2009 में पहली बारी लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन वो खबरों में साल 2006 में ही आ गई थीं. क्यों? दादा बंसीलाल की मौत के बाद उनकी वसीयत की वजह से.

57076343_456038541799341_1779267108052402176_n_042419061414.jpgश्रुति चौधरी इस वक्त प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं. फोटो- फेसबुक

हुआ ये कि सुरेंद्र सिंह की मौत के एक साल बाद बंसीलाल की भी मौत हो गई. 28 मार्च 2006 को बंसीलाल ने आखिरी सांस ली, वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बंसीलाल की मौत के बाद उनकी वसीयत का मामला सामने आया. दो वसीयतें सामने आईं. एक रजिस्टर्ड थी, दूसरी अनरजिस्टर्ड थी, यानी उसका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था. रजिस्टर्ड वसीयत में 19 जुलाई 2005 की तारीख लिखी गई थी. उस वसीयत के मुताबिक चौधरी बंसीलाल की मौत के बाद उनकी पूरी प्रॉपर्टी उनकी पत्नी विद्या देवी के नाम होनी थी. पूरी प्रॉपर्टी में कोठी भी शामिल थी. साथ ही ये भी लिखा था कि बंसीलाल की मौत के बाद उनके नाम का ट्रस्ट बनाया जाए.

इस वसीयत को श्रुति चौधरी ने चैलेंज किया. 24 अगस्त 2006 के दिन, श्रुति ने एक सिविल सूट फाइल किया, अपनी दादी विद्या देवी और अंकल रणवीर महेंद्रा के खिलाफ. रणवीर, बंसीलाल के बड़े बेटे हैं, और सुरेंद्र सिंह के बड़े भाई हैं. वो विधायक भी रह चुके हैं. और बीसीसीआई, यानी बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया के चीफ भी रह चुके हैं.

bansi-lal-750x500_042419062350.jpgचौधरी बंसीलाल चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे. फोटो- फेसबुक

सिविल सूट पेश करते हुए श्रुति ने ये दावा किया कि रजिस्टर्ड वसीयत झूठी है. एक दूसरी वसीयत अदालत में पेश की, इस वसीयत में 6 जून 2004 की तारीख डली हुई थी. ये अनरजिस्टर्ड थी. इसके अलावा श्रुति ने ये दावा किया कि 2004 वाली वसीयत बंसीलाल और सुरेंद्र ने साथ में बनाई थी, और श्रुति के हक में बनाई थी.

12 साल बाद इस मामले पर दिसंबर 2018 में एक फैसला आया. इस केस में सिविल जज जूनियर डिविजन आशुतोष शर्मा ने एक फैसला सुनाया. विद्या देवी और रणवीर महेंद्रा के हक में फैसला सुनाया, रजिस्टर्ड वसीयत को सही करार दिया, और श्रुति चौधरी की वसीयत को डिसमिस कर दिया. इस फैसले के बाद श्रुति की तरफ से सेशन कोर्ट में याचिका दायर की गई. और जज के फैसले को चुनौती दी गई. मामला अभी भी चल ही रहा है.

इसी केस के बीच ही कांग्रेस ने श्रुति को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया साल 2009 में. और उसके बाद जो कुछ भी हुआ, आप पहले ही जान चुके हैं.

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